जिस चीन के कर्ज के जाल में फँस बर्बाद हुआ श्रीलंका, अब फिर उसी से डील: हंबनटोटा में तेल रिफाइनरी प्रोजेक्ट लगाएगी चीनी कंपनी

हंबनटोटा बंदरगाह (साभार: maritimeintelligence)

चीन के कर्ज के जाल में फँसकर पिछले साल अराजकता झेल चुके श्रीलंका में अब चीनी कंपनी तेल के उत्पादन में निवेश करेगी। इसके लिए वह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और भारत के लिए बेहद अहम हंबनटोटा बंदरगाह निवेश करेगी। इस कंपनी नाम सिनोपेक (Sinopec) है। वर्तमान में यह कंपनी श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर बंकरिंग सेवाएँ प्रदान करती है।

सिनोपेक चीन की राजधानी बीजिंग में मुख्यालय वाली चीन की सरकारी तेल कंपनी है। यह तेल और गैस की खोज और उत्पादन में लगी हुई है। यह फॉर्चुन ग्लोबल लिस्ट 2022 में पाँचवें नंबर पर है। यह दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी कंपनी और तीसरी सबसे बड़ी केमिकल कंपनी है। इसे चाइना पेट्रोकेमिकल कॉरपोरेशन के नाम से भी जाना जाता है।

सिनोपेक ग्रुप और चाइना मर्चेंट्स ग्रुप के एक शीर्ष प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में कोलंबो में पेट्रोलियम, बंदरगाह और औद्योगिक पार्क संचालन सहित अन्य व्यापार में सहयोग और निवेश का पता लगाने के लिए श्रीलंका का दौरा किया था। प्रस्तावित निवेश पर दोनों पक्षों के बीच फिलहाल बातचीत चल रही है। हंबनटोटा को पेट्रोलियम वितरण केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।

लंका इंडियन ऑयल कंपनी इस समय श्रीलंका में रिटेन फ्यूल ट्रेड करने वाली एकमात्र विदेशी कंपनी है। यह भारत की प्रमुख ऑयल कंपनी इंडियन ऑयल की श्रीलंका में सहायक कंपनी है। इसकी स्थापना साल 2003 में की गई थी और आज यह श्रीलंका की आठवीं सबसे बड़ी कंपनी है।

श्रीलंका के बिजली और ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकरा ने कहा कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए देश के खुदरा बाजार में तीन वैश्विक आपूर्तिकर्ता कंपनियाँ प्रवेश करेंगी। प्रस्तावित निवेश को लेकर उन्होंने को ट्वीट किया, “एक बार जब राष्ट्रीय ऊर्जा समिति अपनी मंजूरी दे देती है तो इसे कैबिनेट के सामने पेश किया जाएगा।”

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने इसके पूर्व वाली सरकार ने 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश के बाद हंबनटोटा को चीन की इस सरकारी कंपनी को 99 साल के लीज पर दे दिया था। इस बंदरगाह शहर में चीन 15,000 एकड़ में औद्योगिक जोन स्थापित करना चाहता है।

वहीं, श्रीलंका ने पूर्वी जिले के बंदरगाह शहर त्रिकोंमाली को दक्षिण एशिया का ऊर्जा हब बनाना चाहता है। इसके लिए उसने समझौता किया है। यह समझौता भारत की सरकारी कंपनी ऑयल इंडिया द्वारा किया गया है। श्रीलंका को उम्मीद है कि इन दोनों बंदरगाहों के विकास के बाद उसे काफी मुनाफा होगा और वह आर्थिक संकट से निकल जाएगा।

दरअसल, आर्थिक संकट को दूर वित्तीय अनिश्चितता से निकलने के लिए श्रीलंकाई सरकार हाथ-पैर मार रही है। श्रीलंका को वर्तमान में IMF से $2.9 अरब के बेलआउट पैकेज की प्रतीक्षा है। उसे 9 मार्च को इस मामले में श्रीलंका को चीन का समर्थन मिला था।

बता दें कि साल 2018 में चीन की कंपनी ने 1.1 अरब डॉलर का ऋण देकर हंबनटोटा को वर्ष 2117 के लिए खरीद लिया था। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सरकार ने हंबनटोटा के निर्माण के लिए चीनी बैंकों से 8 बिलियन डॉलर का ऋण लिया था। महँगा ब्याज चुकाने के कारण श्रीलंका आर्थिक संकट में फँस गया।

श्रीलंका के ऐसे हालात हो गए वहाँ देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और लोगों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा तक कर लिया। तब भारत ने महत्वपूर्ण पड़ोसी देश होने के नाते भारत ने श्रीलंका को करोड़ों डॉलर की आर्थिक मदद दी थी। श्रीलंका अब भी लिए गए ऋण का भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया