पाकिस्तान में ‘जबरन धर्मांतरण विरोधी’ बिल के विरोध में खुलेआम उतरे मौलवी और इस्लामी कट्टरपंथी, इमरान खान को दी धमकी

मौलवियों ने जबरन धर्मांतरण विरोधी बिल का विरोध किया (प्रतीकात्मक फोटो)

इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान सरकार के जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश करने के फैसले ने पाक में इस्लामी कट्टरपंथियों, मौलवियों को नाराज कर दिया है। डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामाबाद में धार्मिक मामलों के मंत्रालय द्वारा जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक के मसौदे पर चर्चा के लिए बुलाई गई बैठक में भाग लेने वाले मौलवियों और धार्मिक विद्वानों ने विधेयक पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की है। उन्होंने इमरान खान सरकार को धमकी दी है कि इसे अपने वर्तमान स्वरूप में लागू नहीं किया जा सकता है।

मंत्रालय ने सोमवार (23 अगस्त) को बैठक करने के लिए केवल मुस्लिम हितधारकों को आमंत्रित किया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) या उसके अध्यक्ष चेला राम के सदस्यों को बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था।

बैठक की अध्यक्षता पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्री पीर नूरुल हक कादरी ने की। सरकार ने काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (CII) के अध्यक्ष डॉ. किबला अयाज, सीआईआई के अन्य अधिकारियों और कुछ स्थानीय मौलवियों को बैठक में आमंत्रित किया था।

आमंत्रित लोगों में से एक ने कहा कि उन्हें ‘जबरन धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021’ के मसौदे पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया था। एक वरिष्ठ मौलवी ने कहा, “मसौदे की कॉपियाँ साझा की गईं और कमरे में सभी के दस्तावेज देखने के बाद चर्चा हुई।”

मसौदे को पढ़ने के बाद मौलवियों और धार्मिक विद्वानों ने धर्मांतरण की न्यूनतम आयु सहित कई धाराओं पर गंभीर आपत्ति जताई। मौलवियों ने 18 साल से कम उम्र के बच्चों के जबरन धर्मांतरण को अपराध घोषित करने के खिलाफ आपत्ति जताई और कहा कि यह आयु वर्ग घरेलू हिंसा विधेयक के मसौदे के अलग था, जो वर्तमान में कानून मंत्रालय के पास है।

मौलवियों में से एक को यह कहते हुए कोट किया गया था, “जब माता-पिता अपने बच्चों को घरेलू हिंसा बिल के तहत डांट भी नहीं सकते, तो क्या वे अपने बच्चों को इस्लाम अपनाने से रोक सकते हैं?”

रिपोर्टों के अनुसार, कोई भी गैर-मुस्लिम जो बच्चा नहीं है और धर्मांतरण के लिए सक्षम व इच्छुक है, वह उस क्षेत्र के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश से धर्मांतरण प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकता है।

मसौदा कानून इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि आवेदक को अपने आवेदन में नाम, पता, परिवार का विवरण, उनका वर्तमान धर्म और नए धर्म में परिवर्तित होने का कारण सहित सभी विवरण शामिल करने होंगे।

मसौदा कानून में कहा गया है कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्म परिवर्तन के लिए एक आवेदन प्राप्त होने के सात दिनों के भीतर एक इंटरव्यू के लिए तिथि निर्धारित करेगा। उस तिथि पर न्यायाधीश यह सुनिश्चित करेगा कि धर्म परिवर्तन किसी के दबाव में, जबरन या फिर छल से तो नहीं किया जा रहा है।

प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि न्यायाधीश गैर-मुसलमानों को धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करने और न्यायाधीश के पास वापस लौटने के लिए 90 दिनों का समय दिया जाएगा। इसके बाद न्यायाधीश विस्तृत अध्ययन के बाद धर्म परिवर्तन का प्रमाण पत्र प्रदान करेंगे।

इसके अंतर्गत 5 से 10 साल की सजा और 1,00,000 रुपए से लेकर रुपए तक का जुर्माना भी है। इसमें यदि किसी व्यक्ति का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है, तो 2,00,000 रुपए तक के जुर्माना देने का प्रावधान है

बता दें कि पाकिस्तान न केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों, बल्कि अपने ही देश के भीतर जातीय अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए जाना जाता है। जबरन धर्मांतरण कार्यक्रम अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से पाकिस्तान में रहने वाले ईसाइयों, सिखों और हिंदुओं के खिलाफ अत्यंत क्रूरता के साथ शुरू किए गए हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया