आँकड़ों के इस महाजाल से होकर जाता है मालदीव की बर्बादी का रास्ता, जो वहाँ की चीनपरस्त सरकार ने खुद चुना: यूँ ही नहीं PM मोदी के लक्षद्वीप दौरे से बेचैन हुआ इस्लामी मुल्क

दुबई में पीएम मोदी के साथ मोहम्मद मुउज्जू (साभार: मालदीव सरकार)

भारतीय उपमहाद्वीप में हिंद महासागर में एक बेहद खूबसूरत द्वीपसमूह देश है, जिसका नाम है मालदीव (Maldives)। करीब 1200 द्वीपों में फैले सुन्नी मुस्लिम बहुल देश मालदीव एशियाई महाद्वीप की मुख्य भूमि से लगभग 750 किलोमीटर की दूरी पर श्रीलंका और भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। नैसर्गिक छँटा बिखेरने वाला देश मालदीव भारत और यहाँ के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी के कारण चर्चा में है।

मालदीव भारत का पड़ोसी देश है, जिसके भारत के साथ ऐतिहासिक रूप से मधुर संबंध रहे हैं। हालाँकि, बदले भू-राजनीतिक परिदृश्य में मालदीव अपनी पारंपरिक नीतियों से अलग हटकर विपरीत दिशा में राह पकड़ लिया है, जिसके कारण भारत के साथ उसके रिश्तों में खटास पिछले कुछ दिनों से स्पष्ट रूप से दिख रही है।

बात शुरू होती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय केंद्रशासित राज्य लक्षद्वीप की यात्रा से। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 जनवरी 2024 को लक्षद्वीप की यात्रा की वहाँ पर स्थानीय लोगों से मुलाकात की। इसके बाद वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ उठाते हुए फोटो एवं वीडियो साझा किए। इसके बाद सोशल मीडिया पर यूजर इसे मालदीव से सुंदर बताते हुए इसे यहाँ आने की लोगों से आह्वान करने लगे।

सोशल मीडिया के यूजर, खासकर X (पूर्व में ट्विटर) पर लोग कहने लगे कि जो भारतीय अपनी छुट्टियाँ मनाने के लिए मालदीव जाते हैं, उन्हें मालदीव के बजाय लक्षद्वीप जाना चाहिए। इसके बाद वहाँ की सरकार की मानसिकता दिखने लगी। मालदीव की सरकार में मंत्री इसको लेकर भारत एवं प्रधानमंत्री मोदी पर कई ओछी टिप्पणी कर दी। सोशल मीडिया पर आलोचना झेलने के बाद आखिरकार उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया।

इसके बाद मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद का एक बयान आया। उन्होंने रविवार (7 जनवरी 2024) को पोस्ट करके अपने देश की मंत्री मरियम शिनुआ द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लेकर की गई टिप्पणी को भद्दा बताया है। इसके साथ ही उन्होंने मुइज्जू सरकार को सलाह दी कि वे अपनी मंत्री के बयानों से सरकार को अलग करें।

उन्होंने एक्स पर लिखा, “मालदीव की सरकार की एक मंत्री ने एक प्रमुख सहयोगी देश, जो कि हमारी सुरक्षा और समृद्धि के लिए जरूरी है, के प्रमुख के लिए किस तरह की भद्दी भाषा का इस्तेमाल किया है। मोहम्मद मुइज़्ज़ू की सरकार को इस बयान से अपने आप को अलग कर लेना चाहिए और भारत को यह बताना चाहिए कि यह हमारी सरकारी नीति नहीं है।”

मामले को बढ़ता हुआ देखकर आखिरकार मालदीव की सरकार ने अपने मंत्री के बयान से खुद को अलग कर लिया। मालदीव सरकार ने बयान जारी कर कहा, “मालदीव सरकार विदेशी नेताओं और उच्च पदस्थ व्यक्तियों के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अपमानजनक टिप्पणियों से अवगत है। ये राय व्यक्तिगत हैं और मालदीव सरकार के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं… इसके अलावा, सरकार के संबंधित अधिकारी ऐसी अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेंगे।”

दरअसल, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू हैं। पिछले अक्टूबर में उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कॉन्ग्रेस पार्टी को जीत मिली थी। पीपुलिस नेशनल कॉन्ग्रेस को चीन का समर्थक और भारत का विरोधी माना जाता है। आमतौर पर मालदीव में कोई भी सरकार बनती है तो वहाँ के राष्ट्रपति सबसे पहले पड़ोसी देश भारत की यात्रा करते हैं, लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ।

राष्ट्रपति बनने के बाद मोहम्मद मुइज्जू ने सबसे पहले चीन जाने का निर्णय लिया। वे 8-12 जनवरी तक चीन की सरकारी यात्रा पर रहेंगे। इस दौरान चीन हिंद महासागर में अपनी ताकत बढ़ाने के तहत मालदीव को डोरे डालने की कोशिश करेगा। इसके पहले श्रीलंका में चीन ऐसा कर चुका है। चीन अपनी ऋण की जाल में फँसाकर श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह ले चुका है, जो भारत को चिंतित करने वाली बात है।

चूँकी मुइज्जू की सरकार भारत विरोधी है और वहाँ से भारतीय सेना की टुकड़ी को हटाने की माँग वो पहले भी करते रहे हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि चीन के साथ मिलकर वो ऐसे फैसले ले सकते हैं, जो भारत के हित के खिलाफ हो। इसके लिए चीन लगातार प्रयास कर रहा है, लेकिन मुइज्जू से पहले वाली इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शासन में चीन कामयाब नहीं हो पाया था, क्योंकि सालिह भारत समर्थक माने जाते हैं।

ऐसे में भारत को जब इसकी भनक लगी तो भारत सतर्क हो गया। इसके पहले भारत मालदीव को 100 मिलियन डॉलर की सहायता दे चुका है। मोहम्मद मुइ्ज्जू की भारत विरोधी नीतियों एवं चीन की यात्रा की जानकारी भारत को परेशान करने का कारण बन गया, क्योंकि सबसे पहले चीन की राजकीय यात्रा करने का अर्थ है, भारत के मुकाबले चीन को ज्यादा तरजीह देना। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल लक्षद्वीप में देकर मालदीव को एक संदेश देने की कोशिश की।

दरअसल, मालदीव की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है। यहाँ सबसे अधिक जाने वाले लोगों में भारतीय शीर्ष पर हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर आते हैं रूसी। साल 2023 में मालदीव सरकार ने जितनी उम्मीद की थी, उससे अधिक लोग मालदीव पहुँचे। मालदीव सरकार को 18 लाख लोगों को आने की उम्मीद थी, लेकिन पहुँचे 1,878,537 लोग। वहीं, साल 2022 में यह संख्या 16 लाख थी।

पिछले साल यानी 2023 में 2,09,100 भारतीय मालदीव गए थे। इतने ही रूसी भी वहाँ भ्रमण के लिए गए। इस तरह इन पर्यटकों के लिए 176 रिसॉर्ट, 809 गेस्टहाउस, 146 सफारी और 14 होटल का कारोबार चला। इन पर्यटकों की बदौलत मालदीव के 5,50,000 लोगों का जीवन-यापन चलता है। विश्व बैंक के अनुसार, मालदीव की अर्थव्यवस्था में पर्यटन क्षेत्र का एक-तिहाई योगदान है।

पर्यटन आय में वृद्धि के बावजूद महंगे तेल आयात और बड़ी निवेश परियोजनाओं के लिए पूँजी आयात के कारण मालदीव का साल 2022 में चालू खाता घाटा दोगुना होकर सकल घरेलू उत्पाद का 16.5 प्रतिशत हो गया। उच्च आयात लागत और विदेशी ऋण पुनर्भुगतान ने सकल विदेशी भंडार पर जबरदस्त दबाव डाला है। इस तरह जनवरी में 790 मिलियन अमेरिकी डॉलर से गिरकर जुलाई 2023 में यह 594.1 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

इतना ही नहीं, चीन के जाल में फँसे मालदीव को निकालने के लिए भारत ने पिछले साल नवंबर में 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 816 करोड़ रुपए) की आर्थिक मदद भी दी। IMF की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, मालदीव को सबसे अधिक कर्ज देने वाला देश चीन है, जिसने मालदीव को 1.5 बिलियन डॉलर (10,510 करोड़ रुपए) का कर्ज दे रखा है। मालदीव के कु विदेशी कर्ज का 20 प्रतिशत अकेला चीन ने दिया है।

ऐसे में अगर मालदीव की जगह भारतीय लक्षद्वीप जाना शुरू कर दें तो इससे ना सिर्फ पहले से खस्ताहाल और चीन के कर्ज में फँसा मालदीव बर्बादी के कगार पर आ जाएगा, बल्कि भारत में लक्षद्वीप एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित होगा। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के कारण दूसरे देश को लोग भी मालदीव के बजाय लक्षद्वीप की ओर आने लगेंगे। मालदीव ने इसे एक संकेत के रूप में लिया है।

सुधीर गहलोत: इतिहास प्रेमी