चीन देता है श्रमिकों को असहनीय यातना, सड़ा खाना और बस 2-4 घंटों की नींद, तब बनता है सस्ता ‘मेड इन चाइना’ माल

'मेड इन चाइना' के इतने सस्ते होने की वजह क्या है?

हम अक्सर सोचते हैं कि आखिर ‘मेड इन चाइना’ लिखा सामान इतना सस्ता कैसे होता है। आखिर अन्य देश के मुकाबले चीन ऐसी कौन सी क्वालिटी का सामान इस्तेमाल करता है कि उनके उत्पाद की कीमत बाकी ब्रांडों से कम होती है। वास्तविकता ये है कि इसका कारण कम्युनिस्ट राष्ट्र चीन का कोई नया संसाधन या प्रणाली नहीं है, बल्कि उनका तानाशाही रवैया ही है, जिनके चलते वह एक व्यक्ति को मजदूर बनाकर इतना काम करवाता है कि उनके लिए चीजों की कीमत नगण्य रह जाती है।

न्यूऑर्क टाइम्स में आज एक बुक रिव्यू प्रकाशित हुआ है। इसमें अमेलिया पाँग (Amelia Pang) की किताब ‘मेड इन चाइना’ (Made in China) का जिक्र है। उन्होंने चीन में जबरन मजदूरी कराने की प्रथा पर काम किया है और उनकी इस किताब के 5 अध्याय इसी विषय को समर्पित हैं। इसमें बताया गया है कि कैसे कोई भी चीज तैयार करवाने के लिए मजदूरों से से दिन रात काम करवाया जाता है। वह मुश्किल से दो-चार घंटे सो पाते हैं। हालात इतनी बुरी होती है कि सपने में भी उन्हें सिर्फ़ वही काम दिखाई देता है। लोगों से ऐसे काम करवाने के लिए चीन में बाकायदा एक कैंप है जिसका नाम- ‘मसंजिया’ रखा गया है।

इसमें ‘सुन ई’ नाम के मजदूर से जुड़े किस्से का उल्लेख है। जिन्हें पेपर मशरूम बनाने का काम दिया गया और प्रति दिन उनके लिए लक्ष्य 160 पेपर मशरूम तैयार करने का रखा गया। इसमें बताया गया कि कैसे सुन ई के हाथ कागज रगड़ते-रगड़ते हाथ छिल जाते हैं। लेकिन वह फिर भी काम करते रहते हैं।  बदले में उन्हें खाने में घटिया बदबू वाला सब्जियों का सूप पीने को मिलता है। वहीं इतने काम के बाद नींद लेने के लिए उनके पास सिर्फ़ 2 से 4 घंटे का समय होता है। जिसमें उन्हें सपने भी फोल्डिंग पेपर मशरूम के आते हैं।

मालूम हो कि साल 2020 में डिटेंशन की घटनाओं और जबरन मजदूरी कराने की घटनाओं में बहुत विस्तार हुआ है। पांग ने अपनी किताब में इसी पर गौर करवाया है। उन्होंने बताने की कोशिश की है कि जो पेपर मशरूम या हैलोइन डेकोरेशन हम देखते हैं उसके पीछे उसे बनाने वाले के साथ हुआ अत्याचार और कई जटिलताएँ होती हैं।

इसमें एक पोर्टलैंड में रहने वाली महिला का भी जिक्र है जिसे सुन ई ने हैलोईन डेकोरेशन के पैकेज में पत्र छिपाकर भेजा था। जब महिला ने पैकेज खोला तो वह नोट उसे मिला। इसमें लिखा था कि अगर आप किसी अवसर पर इस उत्पाद को खरीदती हैं तो कृपया इसे विश्व मानवाधिकार संगठन को भेज दें। यह पत्र कथित तौर पर सुन की रिहाई यानी साल 2010 से दो साल बाद मिला। पांग ने इसी केस पर रिसर्च की है। इसके अलावा साल 2018 में इस पत्र पर ‘लेटर फ्रॉम मसंजिया’ नाम से डॉक्यूमेंट्री भी बनी है।

खबर के अनुसार, पीड़िता सुन ई की रिहाई के लिए उनकी माँ और बहन ने बहुत मेहमत की थी क्योंकि कैद में उन्हें असहनीय प्रताड़ना दी जा रही थी। पांग के लिए दुखद यह रहा कि जब तक उन्होंने अपनी किताब पूरी की तब तक सुन की मृत्यु हो गई थी। उन्हें केवल 2017 में उनसे मिलने का मौका मिला था।

पांग लिखती हैं कि चीन में सांस्कृतिक क्रांति ने लाखों लोगों को मार डाला और चीन की अर्थव्यवस्था को खराब कर दिया है। यही कारण है कि आधुनिक मुख्य धारा के चीनी आदर्श मानवाधिकारों की तुलना में सामाजिक स्थिरता पर अधिक जोर देते हैं। उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि कैसे जेल में बंदियों से काम करवाया जाता है और कैसे हमारी खर्च करने की आदतों के कारण आज लगातार ऐसे रास्ते खोजे जा रहे हैं जिससे उत्पाद के डिजाइन, मैनुफेक्चर और वितरण के बीच का समय कम हो।

वह कुछ रिटेलर्स का जिक्र करके कहती हैं कि तेजी से बदलती माँगों से चीन कंपनियों पर जब दबाव बनता है तो वह पैसे बचाने वाले लेबर सॉल्यूशन की ओर आगे बढ़ते हैं जो उन्हें जेलों में मिल जाते हैं। सामान की घटती बढ़ती घटनाओं पर पांग समझाती हैं कि कैसे खरीद करते हुए किसी सामान के प्रोडक्शन की बात लोगों के दिमाग में होने चाहिए। वह कहती हैं,

“कीमत कम होने पर हम खुशी महसूस करते हैं। अगर कीमत बहुत अधिक है तो हमें दर्द होता है। जब हम खड़े होते हैं … एक कंप्यूटर स्क्रीन की चमक के सामने, हम उन श्रमिकों की पीड़ा को महसूस नहीं करते हैं जिन्होंने हमारी इच्छाओं को महसूस करने के साथ ही हमारे लिए उत्पादों को गहराई से बनाया है।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया