दिवाली पार्टी के बहाने अमेरिका में इकट्ठा हो रहा PAK के जेहादी संगठन के लिए धन: बांग्लादेश में नरसंहार के लिए था जिम्मेदार, हमास का भी है मददगार

JeI प्रमुख सिराज-उल हक और दिवाली का पोस्टर (फोटो साभार: Andadolu agency)

पाकिस्तान स्थित एक जिहादी संगठन के लिए धन जुटाने के लिए रविवार (23 अक्टूबर 2022) को न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन के ‘द बेल हाउस’ में दिवाली पार्टी का आयोजन किया जा रहा है। पाकिस्तान में बाढ़ पीड़ितों के लिए धन जुटाने के बहाने इस आयोजन से होने वाली आय अल खिदमत फाउंडेशन (कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी की चैरिटी विंग) को दी जा रही है।

इस मामले को सबसे पहले ‘स्टॉप हिंदू हेट एडवोकेसी नेटवर्क (SHHAN)’ ने उस समय उठाया, जब ‘द बेल हाउस’ ने एक ट्वीट करके इसके बारे में जानकारी दी। इसके बाद इसकी सोशल मीडिया पर आलोचना होने लगी।

अपने ट्वीट में द बेल हाउस ने लिखा, “इस रविवार 10/23, आरती गोलापुडी और माया देशमुख दिवाली पार्टी 2022 पेश कर रहे हैं! अपर्णा नानचेरला, सुनीता मणि, प्रोमा खोसला, पूजा रेड्डी और जुबी अहमद, डीजे रेखा और कार्डडममी के संगीत के साथ! पाकिस्तान में राहत प्रयासों का सहयोग करने के लिए इसकी आय अल खिदमत फाउंडेशन को जाएगी।”

यह कार्यक्रम रविवार (23 अक्टूबर) को ‘द बेल हाउस’ में शाम 7:30 बजे (स्थानीय समयानुसार) से आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम में सामान्य प्रवेश के लिए प्रति व्यक्ति $19.72 (INR 1,627 के बराबर) लिया जा रहा है।

इस कार्यक्रम का पोस्टर इंटरनेट पर खूब वायरल हो रहा है। सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना होने के बाद ‘द बेल हाउस’ ने बिना किसी स्पष्टीकरण के अपने ट्वीट को तुरंत डिलीट कर दिया। हालाँकि, लेखन के समय टिकट का लिंक अभी भी लाइव था।

अल खिदमत फाउंडेशन का आतंकवाद से नाता

राबा टाइम्स की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, अल खिदमत फाउंडेशन इस्लामवादी पाकिस्तान के राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी (JeI) के चैरिटी विंग के रूप में कार्य करता है। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान बंगाली आबादी के नरसंहार के लिए यह संगठन जिम्मेदार था।

2006 में JeI ने कथित तौर पर यहूदियों और इज़राइल के खिलाफ जिहाद को जारी रखने के लिए आतंकवादी संगठन हमास को 1,00,000 डॉलर (लगभग 83 लाख रुपए) भेजे थे। राबा टाइम्स ने बताया था कि यह कैसे संगठन ‘हेल्पिंग हैंड फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट (HHRD)’ नाम के एक मुस्लिम अमेरिकी चैरिटी संगठन के साथ मिलकर काम कर रहा है।

पिछले साल जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख सिराज-उल हक ने पाकिस्तान में मंदिर निर्माण के लिए वहाँ के लोगों के पैसे का उपयोग करने का विरोध किया था। हक ने पाकिस्तान के सभी करदाताओं को केवल ‘मुस्लिम’ मानते हुए कहा था कि पैसे का इस्तेमाल शरीयत के दिशा-निर्देशों और देश में मुस्लिम आबादी के विवेक के खिलाफ नहीं किया जा सकता।

सिराज-उल हक के बयान की आलोचना करते हुए पाकिस्तान के हिंदू कार्यकर्ता कपिल देव ने ट्वीट किया था, “सिराज-उल-हक इस देश में पाँच मिलियन (50 लाख) हिंदू करदाता हैं। इसे उनके पैसे से बनाया जाएगा। मंजूर न भी हो तो हमारे नाम से शराब खरीदने-बेचने से मिलने वाले टैक्स से कर दो। यदि नहीं तो बंदोबस्ती विभाग बंद कर दीजिए और मंदिरों एवं गुरुद्वारों के किराए से निर्माण कीजिए।”

लाहौर में अबुल आला मौदूदी द्वारा स्थापित जमात-ए-इस्लामी विभाजन के तुरंत बाद जमात-ए-इस्लामी (हिंद) और पाकिस्तान में विभाजित हो गया था। इससे पहले ऑपइंडिया की एक रिपोर्ट में हमने खुलासा किया था कि यह संगठन भारत में कट्टरपंथी इस्लाम फैलाने के लिए सऊदी अरब से कैसे धन प्राप्त कर रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया