लड़की का पीरियड आ गया तो अपहरण और जबरन निकाह जायज: शरिया के हिसाब से कोर्ट का फ़ैसला

नाबालिग हुमा यूनुस का अपहरण कर के जबरन निकाह करा दिया गया

पाकिस्तान में हुमा यूनुस नामक लड़की का अपहरण कर लिया गया था। अपहरण के बाद उसका जबरन निकाह भी करा दिया गया था। अब पाकिस्तानी कोर्ट ने इन अपराधों को सिर्फ़ इसीलिए जायज ठहरा दिया है क्योंकि इस्लामिक क़ानून के अंतर्गत ये सब सही है। 14 वर्ष की हुमा ईसाई धर्म से ताल्लुक रखती हैं। वो कोर्ट में सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं थी क्योंकि उसे अपनी जिंदगी का डर है। जजों ने पुलिस को मेडिकल रिपोर्ट्स की जाँच करने को कहा है, जिसके बाद 4 मार्च को फिर सुनवाई होगी। पाकिस्तान में जबरन मजहबी धर्मान्तरण अपराध नहीं है।

सिंध हाईकोर्ट ने हुमा के जबरन मजहबी धर्मान्तरण और निकाह को अवैध ठहराने से मना कर दिया। क्योंकि ये दोनों ही इस्लामिक क़ानून के तहत जायज हैं। इस्लामिक क़ानून के मुताबिक़, अगर किसी लड़की को पहली बार पीरियड्स आ जाते हैं तो उसका निकाह कराया जा सकता है। हुमा के वकील तबस्सुम युसूफ ने ईसाई लड़की के साथ हुई इस हरकत को शर्मनाक बताया है लेकिन वहाँ का क़ानून इससे कत्तई सहमत नहीं है। ये घटना अक्टूबर 2019 की है।

पाकिस्तान में न्यायपालिका की स्थिति ये है कि सुनवाई के दौरान हुमा को अपने माँ-बाप से मिलना तो दूर, देखने तक नहीं दिया गया। मात्र 5 मिनट की सुनवाई के बाद कोर्ट ने कह दिया कि हुमा के साथ जो भी हुआ, वो जायज है। हुमा के वकील का कहना है कि वो न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएँगी। हुमा का तब अपहरण किया गया था, जब उसके माँ-बाप उससे 600 किलोमीटर दूर रह रहे थे। उसका परिवार कराची के जिया कॉलोनी में रहता है जबकि अपहर्ता पंजाब के डेरा गाजी ख़ान का निवासी है।

जजों ने शरिया क़ानून का हवाला देकर लड़की के साथ हुई क्रूरता को सही ठहरा दिया क्योंकि उसके पीरियड्स आ चुके थे। उसके माँ-बाप कोर्ट में ही रोने लगे। हुमा के परिजनों का कहना है कि ये मुक़दमा कई दिनों से चल रहा है और वो लोग कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन एक बार भी हुमा को कोर्ट में पेश नहीं किया गया। उनका पूछना है कि हुमा को कोर्ट में बुला कर उसका बयान क्यों नहीं लिया जा रहा? जजों का कहना है कि उसे अपने जान का डर है, इसीलिए वो कोर्ट नहीं आई।

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हुमा के अपहर्ता ने ख़ुद को उसका शौहर बताते हुए कहा कि वो बालिग है और अपने हिसाब से फ़ैसले सकती है। आरोपित ने कहा कि हुमा ने अपनी इच्छा से उसके साथ शादी की है। बता दें कि पाकिस्तान में बाल-विवाह पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है और वहाँ की संसद में इससे जुड़ा बिल अटका पड़ा है। आप परिवार उम्र को लेकर ही आरोपित को कोर्ट में घेर सकता है क्योंकि जबरन धर्मान्तरण तो पाकिस्तान में ग़ैर-क़ानूनी है ही नहीं। इस घटना से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति का भी पता चलता है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया