चर्च में शादी नहीं कर सकते समलैंगिक, पर अब पादरी दे सकेंगे आशीष: पोप फ्रांसिस का फैसला, कभी वेटिकन ने बताया था पाप

समलैंगिक जोड़ों को आशीष दे सकेंगे पादरी, पोप फ्रांसिस ने दी अनुमति (फोटो साभार: newindianexpress.com)

एलजीबीटीक्यू समुदाय को लेकर वेटिकन ने महत्वपूर्ण फैसला लिया है। पोप फ्रांसिस ने समलैंगिक जोड़ों को आशीष देने की इजाजत पादरियों को दे दी है। हालाँकि इस तरह की शादी अब भी चर्च में नहीं होंगी। इससे पहले 2021 में वेटिकन इस तरह के संबंधों को ‘पाप’ बताया था।

पोप फ्रांसिस ने नए फैसले में कहा है कि भगवान से प्यार और दया की आस रखने वालों को नैतिकता के पैमाने पर नहीं आँकना चाहिए। यह वेटिकन के दो साल पुराने फैसले के ठीक उलट है। तब कहा गया था कि समलैंगिक जोड़ों को आशीष नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि भगवान ‘पाप’ को आशीष नहीं देते। अब पोप फ्रांसिस ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को कुछ शर्तों के साथ आशीष दिया जा सकता है। इसके तहत ऐसे लोग को आशीष तब ही मिलेगा जब वे चर्च में शादी के मकसद से न आएँ।

इन शर्तों के तहत समलैंगिक जोड़ों को आशीष मजहबी तरीकों के तहत नहीं दिया जाएगा। किसी भी तरह से इसे विवाह समारोह का रूप नहीं दिया जाएगा। साथ ही विवाह कराने वाले वाली पादरियों की पारंपरिक पोशाक वेस्टमेंट में नहीं होंगे। पादरियों को इस तरह की भाषा और भंगिमाओं का इस्तेमाल भी नहीं कर सकेंगे जिससे लगे कि वे शादी करवा रहे हैं। इसके अलावा समलैंगिक जोड़ों को आशीष देते वक्त जो प्रार्थना और शब्द बोले जाएँ वो कहीं लिखे नहीं जाएँगे।

पोप फ्रांसिस ने सोमवार (18 दिसंबर 2023) को यह अनुमति दी। उनके फैसले से जुड़ा दस्तावेज वेटिकन डॉक्ट्रिन ऑफिस (Doctrine Office) ने जारी किया है। बताते चलें की पोप फ्रांसिस ने दो कंजर्रवेटिव कार्डिनलों को इस बारे में विस्तार से बताते हुए एक पत्र लिखा था।

ये पत्र अक्टूबर में पब्लिश हुआ था। इसमें पोप फ्रांसिस ने सुझाव दिया कि कुछ हालातों में ऐसे आशीष दिए जा सकते हैं, लेकिन ये शादी के मजहबी तरीकों की तरह नहीं दिए जाने चाहिए। इन आशीषों को समलैंगिकों के शादी संस्कार समझने का भ्रम नहीं पालना चाहिए।

यही वजह रही कि पोप फ्रांसिस की तरफ से जारी किए गए नए दस्तावेज में समलैंगिक विवाह और एक पुरुष तथा महिला के बीच होने वाली शादी में अंतर साफ कर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि विवाह एक पुरुष और महिला के बीच ताउम्र के लिए होने वाला मजहबी संस्कार है जो कभी टूट नहीं सकता है। यही वजह है कि समलैंगिक को दिया जाने वाला आशीष एक महिला या पुरुष के शादी की तरह नहीं लिया जा सकता है। लेकिन ऐसे जोड़ों को आशीष दिया जा सकता है, क्योंकि भगवान की प्रेम और दया पाने के लिए उनका आशीष पाने का सबको हक है।

इससे साफ है कि पोप फ्रांसिस ने समलैंगिक विवाह को सशर्त मंजूरी दी है। ये लोग विवाह तो कर सकते हैं, लेकिन चर्च में धार्मिक रीति-रिवाजों के तहत इनका विवाह नहीं हो सकता है। चर्च में पादरी इन जोड़ों को केवल आशीष दे सकते हैं। उनका विवाह नहीं करा सकते।

ये पहली बार नहीं है जब पोप फ्रांसिस ने इस तरह का फैसला लिया है। इससे पहले वो महिलाओं को चर्च में अहम भूमिकाएँ सौंपने जैसे फैसले भी ले चुके हैं। उनकी पहल से ही वेटिकन सिटी में उच्च पदों पर महिलाओं की नियुक्ति का रास्ता साफ हुआ है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया