अमेरिका ने चीन की 28 संस्थाओं को किया ब्लैकलिस्ट, उइगर मुस्लिमों के साथ अत्याचार करने पर लिया एक्शन

अमेरिका ने किया चीन के चार अधिकारियों को प्रतिबंधित

चीन के शिनजियांग क्षेत्र में उइगर मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ होते अत्याचार को देखते हुए अमेरिका के वाणिज्य मंत्रालय ने चीन की 28 संस्थाओं को सोमवार को ब्लैकलिस्ट कर दिया। खुद अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस ने इस फैसले की घोषणा की। जिसके बाद अब चीन की ये 28 संस्थाएँ अमेरिकी सामान नहीं खरीद पाएँगी।

वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस ने उइगर मुस्लिमों का हवाला देते हुए कहा कि अमेरिकी सरकार और वाणिज्य विभाग चीन में अल्पसंख्यकों का निर्मम उत्पीड़न बर्दाशत नहीं कर सकते और न ही करेंगे। उन्होंने अपने इस कदम पर कहा कि इस फैसले से ये सुनिश्चित होगा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मुक्त उद्यम के माहौल में बनी उनकी तकनीक का उपयोग लाचार अल्पसंख्यकों की आबादी के दमन के लिए न हो।

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मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में ये स्पष्ट कहा गया है कि ये कार्रवाई चीन के शिनजियांग क्षेत्र में उइगर और अन्य अल्पसंख्यक मुस्लिमों के मानवाधिकारों का हनन करने में संलिप्तता के चलते लिया गया है।

जानकारी के अनुसार, अमेरिका द्वारा जिन कंपनियों को ब्लैक लिस्ट किया गया है, उनमें मुख्य रूप से सर्विलांस और एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से संबंधित कंपनियाँ हैं। जिनमें दहुआ और हाईकेविजन जैसी कंपनियाँ हैं जो निगरानी रखने के लिए उपकरण बनाती हैं और आईफ्लाईटेक एवं मेग्वी जैसी संस्थाएँ हैं जो फेस और वॉयस रेकॉगनाइजेशन वाली तकनीक पर काम करती हैं।

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इस प्रतिबंध के बाद हाईकेविजन के एक प्रवक्ता ने अमेरिका के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। प्रवक्ता का कहना है कि अमेरिका के वाणिज्य विभाग द्वारा लिए गए इस फैसले से वैश्विक कंपनियों द्वारा पूरी दुनिया में मानवाधिकारों की बेहतरी के लिए किए जा रही कोशिशों पर प्रभाव पड़ेगा।

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यहाँ बता दें कि चीन के ख़िलाफ अमेरिका ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है, जब चीन के साथ उसका ट्रेड वॉर चल रहा है और पूरे विश्व की नजर दोनों देशों पर है।

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अधिकार समूहों (right groups) की मानें तो पश्चिमी शिनजियाँग क्षेत्र के शिक्षा शिविरों में 10 लाख उइगरों और अन्य मुस्लिमों को चीन ने अपनी हिरासत में लिया हुआ है। जो कि वाशिंगटन के अनुसार नाजी जर्मनी की याद दिलाता है।

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हालाँकि, इस पर चीन शुरुआत में ऐसे शिविरों के अस्त्तिव के होने से इंकार करता रहा था, लेकिन अब उसने खुलकर दावा किया है कि ये शिविर व्यावसायिक प्रशिक्षण स्कूल हैं, जो आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए जरूरी हैं। विश्व भर में होती आलोचनाओं पर चीन ने इस पूरे मामले को आतंरिक करार दिया है और कहा है कि वे इस मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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गौरतलब है कि 28 संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने से पहले भी अमेरिका इसी वर्ष चीन के टेलीकॉम उपकरण निर्माता कंपनी हुवावे के ख़िलाफ़ भी ऐसा ही मिलता-जुलता कदम उठा चुका है। जब हुवावे पर इरान के ख़िलाफ़ अमेरिका के प्रतिबंधों का उल्लंघन करने और अमेरिकी तकनीक को चुराने का आरोप लगा था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया