‘कॉलेजियम के फ़ैसले ने बढ़ा दी है चिंताएँ, एक साल बाद भी कुछ नहीं बदला’

जस्टिस लोढ़ा भारत के 41वें मुख्य न्यायाधीश थे। इससे पहले वो पटना उच्च न्यायालय में चीफ़ जस्टिस थे। (फोटो साभार: डीएनए)

कॉलेजियम की सिफ़ारिशों पर चल रहे विवाद के बीच दिल्ली हाईकोर्ट के जज संजीव खन्ना और कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी बुधवार (जनवरी 16, 2019) को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए। कॉलेजियम की सिफ़ारिशों पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी हस्ताक्षर किए। बता दें कि कॉलेजियम ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंद्राजोग की पदोन्नति की सिफ़ारिश की थी। बाद में कॉलेजियम ने उन दोनों की जगह जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस खन्ना को प्रमोट करने की सिफ़ारिश की।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढ़ा ने संजीव खन्ना की पदोन्नति पर सवाल करते हुए कहा कि उन्हें नहीं लगता कि पिछले एक साल में कुछ भी बदला है। जस्टिस लोढ़ा ने क़रीब एक वर्ष पहले हुए चार जजों के प्रेस कॉन्फ्रेंस की बात करते हुए कहा कि उस समय जो चिंताएँ ज़ाहिर की गई थी वो अब भी जस की तस बानी हुई है।

जस्टिस लोढ़ा ने कहा: “12 जनवरी 2018 को चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने तब दूसरे सबसे वरिष्ठ जज के तौर पर तत्कालीन चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए थे, उसमें जजों की नियुक्ति का मुद्दा भी शामिल था। चिंताएँ अब भी जस की तस बनी हुई हैं। हाल ही में कॉलेजियम के फ़ैसले ने इसे और बढ़ा दिया है। मुझे नहीं लगता कि एक साल बाद भी कुछ बदला है।”

ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के चार जजों- जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ़ ने जनवरी 2018 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उच्चतम न्यायालय के प्रशासन पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने मुक़दमों के आवंटन और जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा पर सवाल खड़े किए थे। यह भारतीय न्यायिक इतिहास में पहला मामला था जब जजों ने सार्वजनिक तौर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जस्टिस गोगोई अब भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) हैं।

जस्टिस लोढ़ा के अलावे और कई रिटायर्ड और कार्यरत जजों ने भी दोनों की नियुक्तियों पर सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन कौल ने CJI रंजन गोगोई को पत्र लिख कर नाराज़गी जताई। वहीं दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज कैलाश गंभीर ने राष्ट्रपति को पत्र लिख कर इन दोनों नियुक्तियों के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज़ कराया। बार काउन्सिल ऑफ इंडिया ने भी कॉलेजियम की सिफ़ारिशों पर आपत्ति दर्ज़ कराते हुए चेतावनी दी कि वो सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करेंगे।

आज तक के सूत्रों के मुताबिक़ जस्टिस कौल का मानना है कि इन नियुक्तियों से बार एसोसिएशन और अन्य कार्यरत जजों में अच्छा सन्देश नहीं गया है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया