बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने एक बार फिर से जबरदस्त जीत हासिल की तो वहीं महागठबंधन को करारी हार मिली। चुनाव नतीजों से असंतुष्ट प्रोपेगेंडाबाज फर्जी नैरेटिव से जदयू, बीजेपी और एनडीए में शामिल अन्य दलों द्वारा कड़ी मेहनत से हासिल की गई जीत को मटियामेट करने की कोशिश में जुटे हैं।
कॉन्ग्रेस, राजद और अन्य पार्टी के महागठबंधन के जीतने की कामना करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों में से कई ऐसे बुद्धिजीवी हैं जिनके लिए इस जीत को पचा पाना काफी मुश्किल हो रहा है। बिहार चुनावों में जदयू और बीजेपी के खिलाफ ध्रुवीकरण अभियान चलाने के बाद अब ये लोग नया प्रोपेगेंडा लेकर आए हैं। इस बार उनका इरादा पीएम मोदी, बीजेपी और जेडीयू को मुस्लिम विरोधी के रूप में दिखाने का है। उन्होंने कहा कि एनडीए से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं बना।
https://twitter.com/khanumarfa/status/1328535520591286273?ref_src=twsrc%5Etfwवामपंथी ऑनलाइन वेबसाइट ‘द वायर’ की पत्रकार ने ‘द टेलीग्राफ’ की एक रिपोर्ट शेयर करते हुए बिहार विधानसभा में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं बनने के लिए एनडीए गठबंधन को ‘मुस्लिम विरोधी’ बताने का प्रयास किया। आरफा ने ट्वीट किया, “आजादी के बाद बिहार में पहली बार ऐसा हुआ है जब अपने सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के एक भी विधायक के बिना सत्ताधारी गठबंधन बना।”
कई अन्य वामपंथी ‘बुद्धिजीवी’ और मीडिया पोर्टलों ने भी बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को मुस्लिम विरोधी साबित करने के लिए इसी लाइन को आगे बढ़ाया है। उनका यह प्रयास ये दिखाने के लिए था कि भाजपा देश के समुदाय विशेष को असंतुष्ट करने का काम कर रही है।
उनका यह प्रयास स्वाभाविक रूप से देश के समुदाय विशेष के बीच के फैले छद्म भय को ट्रिगर करने के लिए किया जाता है ताकि उन्हें भाजपा और उसके सहयोगियों के खिलाफ वोट करने के लिए जुटाया जा सके। इसी तरह का पैंतरा उस समय भी आजमाया गया था जब बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को निरस्त कर दिया और नागरिकता संशोधन अधिनियम को पारित किया था। वामपंथियों द्वारा भाजपा को एक ऐसी पार्टी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया, जो मुस्लिमों की विरोधी है। ऐसा करके, वे अपने पसंदीदा दलों- कॉन्ग्रेस और अन्य वामपंथी दलों को उबारने की कोशिश कर रहे हैं, जो भारतीय राजनीतिक परिदृश्य के भितरघात के कारण पतन की ओर अग्रसर हैं।
हालाँकि, जब मीडिया संगठनों और वामपंथी विचारकों ने बिहार विधानसभा चुनावों में जदयू-भाजपा गठबंधन पर शून्य मुस्लिम प्रतिनिधित्व का दोष लगाया, तो यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि उन्होंने जो दोष लगाया है, उसके पीछे कोई तर्क भी है या फिर वो सिर्फ सच्चाई को छुपाने के लिए ऐसा कर रहे हैं।
सच्चाई यह है कि एनडीए गठबंधन के सबसे बड़े गठबंधन सहयोगियों में से एक, जदयू ने हाल ही में संपन्न बिहार विधानसभा चुनावों के लिए 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। हालाँकि, इनमें से एक भी मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत हासिल नहीं हो सकी।
बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू द्वारा मैदान में उतारे गए मुस्लिम उम्मीदवारों का प्रदर्शन
सबा जफर ने जदयू के लिए अमौर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और 22.72 प्रतिशत वोट हासिल किए। हालाँकि, वह एआईएमआईएम उम्मीदवार अख्तरुल ईमान से हार गईं, जिन्होंने 51 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया।
अररिया में, कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार अबिदुर रहमान ने जेडीयू उम्मीदवार शगुफ्ता अजीम पर व्यापक जीत दर्ज की।
ठाकुरगंज में जदयू के मोहम्मद नौशाद आलम ने 11.46 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि राजद उम्मीदवार ने 41.48 प्रतिशत वोट हासिल कर विधानसभा चुनाव जीत लिया।
जदयू द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार के लिए कोचाधामन की कहानी भी निराशाजनक थी। जदयू के मुजाहिद आलम एआईएमआईएम उम्मीदवार मुहम्मद इज़हार असफी से हार गए, जिन्होंने लगभग 50 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किए।
बिहार के कांति में राजद के उम्मीदवार मुहम्मद इजरायल मंसूरी ने जदयू के उम्मीदवार मोहम्मद जमाल को पटखनी दी।
सिकटा विधान सभा क्षेत्र से जदयू के खुर्शीद फिरोज अहमद को सीपीआई (एमएलएल) के उम्मीदवार बीरेंद्र प्रसाद गुप्ता को लगभग 14,000 वोटों के अंतर से हराया।
जदयू के एक और मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद शरफुद्दीन राजद उम्मीदवार चेतन आनंद से शेहर निर्वाचन क्षेत्र में हार गए।
दरभंगा ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र में राजद प्रत्याशी ललित कुमार यादव और जदयू के फारुकी फातमी के बीच घनिष्ठ चुनावी रस्साकशी देखने को मिली। हालाँकि, अंत में यादव विजयी होकर उभरे।
मरौरा जिले में, राजद के जितेंद्र कुमार रे ने जदयू के अल्ताफ आलम को काफी अंतर से हराया।
महुआ में चुनाव परिणाम मारहरा से अलग नहीं था। यहाँ भी मुकेश कुमार रौशन ने जदयू के मुस्लिम उम्मीदवार अश्मा परवीन को करारी हार दी।
बिहार के डुमरांव में, सीपीआई (एमएलएल) के उम्मीदवार अजीत कुमार सिंह ने चुनाव जीता, जदयू की अंजुम आरा को बढ़िया अंतर से हराया।
राजनीतिक दल उम्मीदवारों की जीत को प्राथमिकता देते हैं
इस तरह से उपरोक्त परिणामों से स्पष्ट है, एनडीए गठबंधन के सहयोगियों द्वारा मैदान में उतारे गए मुस्लिम उम्मीदवारों में से कोई भी विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुआ। जदयू ने 43 सदस्यों को विधानसभा भेजा। अगर जदयू के सभी 11 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीत जाते, तो उनके पास विधानसभा की 54 सीटें होतीं, और उनमें से 20 प्रतिशत मुस्लिम होते।
राजनीतिक दल उन उम्मीदवारों का चयन करते हैं जो चुनाव जीतने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं। बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों का चयन करना, लेकिन उनमें से एक को भी विधानसभा में नहीं लाना कहीं से भी समझदारी की रणनीति नहीं है। इसलिए, बिहार विधानसभा में एनडीए में मुस्लिम विधायकों के न होने को लेकर गुमराह किया जा रहा है। क्योंकि ऐसा उम्मीदवारों की कमी की वजह से नहीं बल्कि उनके न जीतने की वजह से हैं।