ईद पर नग्न डांस को मजबूर लड़कियाँ लेकिन तस्वीर बिहु की! INDIA TODAY की नई पत्रकारिता

इंडिया टुडे की 'मजबूरी', ईद में नग्न डांस की खबर में लगानी पड़ी बिहु की तस्वीर

बीते दिनों असम से एक शर्मसार करने वाली घटना सामने आई थी। यह घटना थी – ईद के जश्न में नृत्य करने को बुलाई गई लड़कियों को 800 लोगों की भीड़ ने जबरन नग्न अवस्था में नृत्य करने को मजबूर किया। किसी तरह जान बचाकर उस समय लड़कियाँ वहाँ से भाग निकलीं और पुलिस में इस घटना की एफआईआर दर्ज करवाई। मामले में आरोपितों की गिरफ्तारी हुई। इस खबर को लगभग हर मीडिया संस्थान ने कवर किया – कुछ ने सच्चाई को जैसे का तैसा रख कर रिपोर्ट किया, कुछ ने खबर को छिपाते हुए। इंडिया टुडे ने न सिर्फ खबर का एंगल बदला बल्कि फोटो भी ऐसी लगाई, जिससे असम की संस्कृति को चोट पहुँची है।

आमतौर पर मीडिया जगत में खबर से जुड़ी ‘तस्वीर’ को पूरी खबर का ‘संक्षिप्त सार’ कहा जाता है, जो उस घटना की गंभीरता के स्तर को बयान करती है और पाठक को अपनी ओर आकर्षित करती है। ऐसे में अगर घटना से संबंधित कोई तस्वीर खबर लिखने वाले के पास नहीं होती है तो वह ‘प्रतीकात्मक तस्वीर’ का इस्तेमाल करता है। प्रतीकात्मक तस्वीर का चलन डिजीटल मीडिया में सबसे ज्यादा है, क्योंकि कंप्यूटर के पास बैठे पत्रकार के लिए घटनास्थल से तुरंत तस्वीर ला पाना संभव नहीं होता, लेकिन खबर पोर्टल पर तुरंत अपडेट करने का दबाव भी होता है। ऐसी हड़बड़ी में खबर से मिलती-जुलती तस्वीर यानी प्रतीकात्मक तस्वीर लगाकर यह बताने की कोशिश की जाती है कि आखिर मामला क्या है, उसकी गंभीरता क्या है?

https://twitter.com/hirokjsingha98/status/1139087198639206401?ref_src=twsrc%5Etfw

इस ट्रेंड को लगभग हर मीडिया संंस्थान फॉलो करता है, ताकि तस्वीर न होने के कारण खबर न छूट जाए। हमारी अंग्रेजी साइट ने भी एक तस्वीर लगाई लेकिन वो तस्वीर उसी डांस ग्रुप की है जिसकी बात हो रही है। इंडिया टुडे भी इससे अछूता नहीं है, और इसमें कोई बुरी बात भी नहीं है। लेकिन खबर की गंभीरता को मारना और सांस्कृतिक तत्वों से छेड़छाड़ करना बुरा भी है और शर्मसार करने वाला भी। असम में घटी इस घटना की कवरेज पर इंडिया टुडे ने ‘प्रतीकात्मक तस्वीर’ में ‘बिहु’ करते कलाकारों की तस्वीर लगाई। ‘बिहु’, जो असम की संस्कृति का एक मुख्य अंग है, जिसके कारण असम की संस्कृति को पूरे देश भर में पहचान मिली हुई है, उस ‘बिहु’ की तस्वीर का प्रयोग इस खबर को दर्शाने के लिए किया गया। इसके पीछे इंडिया टुडे की संपादकीय मानसिकता क्या थी, पता नहीं। लेकिन, यह स्पष्ट है कि ‘सबसे तेज’ की दौड़ में इंडिया टुडे ने पत्रकारिता के उन मानदंडो को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया, जिसमें तस्वीर की महता को उतना ही प्रमुख बताया जाता है, जितना खबर की प्रमाणिकता को।

ट्विटर पर इस खबर की मुख्य तस्वीर को लेकर कुछ यूजर्स ने सवाल खड़े किए, जिसमें उन्होंने पूछा कि ईद के जश्न पर लड़कियों के साथ हुई इस बदसलूकी को सांस्कृतिक समारोह की तरह क्यों पेश किया जा रहा है? यूजर्स ने इस खबर से बिहु के दौरान सांस्कृतिक-सामूहिक डांस करते कलाकारों की तस्वीर को हटाने की बात कही। कुछ ने पीटीआई एजेंसी, गृह मंत्री, प्रधानमंत्री को टैग करके इंडिया टुडे की इस हरकत पर एक्शन लेने की माँग की, तो किसी ने इसे पत्रकारिता का पतन बताया।

https://twitter.com/MayankPatel1193/status/1139092002103017473?ref_src=twsrc%5Etfw

अब ऐसे में हो सकता है कि इस घटना के लिए कोई ‘जल्दबाजी’ और ‘गलती’ जैसे शब्द कहकर उलाहना देने लगें, लेकिन यदि गौर किया जाए तो इस घटना के चर्चा में आने के बाद ऑपइंडिया ने इस खबर को 9 जून को ही कवर कर लिया था। उसके बाद जब इस खबर की आड़ में प्रोपेगेंडा फैलाया गया तब भी हमने उस पर लेख लिखे। जबकि इंडिया टुडे के वेब पोर्टल ने इस खबर को 10 जून की रात 9 बजे के करीब अपडेट किया। नॉर्थ ईस्ट से आई इस खबर को प्राथमिकता देना तो छोड़ ही दें, खबर की गंभीरता को भी इंडिया टुडे के डेस्क पर बैठे किसी पत्रकार ने इतनी बुरी तरह मारा कि ट्विटर पर आम जनता को इसके लिए आवाज़ उठानी पड़ गई।

इस खबर को इंडिया टुडे की वेबसाइट पर अपडेट हुए 2 दिन हो चुके हैं। अभी तक इसकी फीचर इमेज वही है, जिसमें बिहु नृत्य का प्रदर्शन कर रहे कलाकार हैं। संपादकीय टीम ने तस्वीर के नीचे कैप्शन के साथ लिखा – प्रतीकात्मक तस्वीर। और यह मान लिया कि उनका काम हो गया। लेकिन नहीं। प्रतीकात्मक तस्वीर लिख देने से भर से संवेदनशील खबरों के साथ आपके संपादकीय दायित्व खत्म नहीं होते। बल्कि ऐसी खबरों में, जहाँ मानवीय या सांस्कृतिक मूल्यों पर चोट की गुंजाइश हो, वहाँ आपका दायित्व हर एक शब्द से जुड़ा होता है। इस खबर में एक पूरे राज्य की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है – वो भी पत्रकारिता के नाम पर! शर्मनाक है यह।