जो है बच्चों के हत्यारों/ बलात्कारियों की समर्थक, जिसके लिए हिंदू हैं भिखमंगा… उस परवीन शेख के लिए जागा इंडियन एक्सप्रेस का मजहब

परवीन शेख को याद आ रहा लोकतंत्र (फोटो साभार: इंडियन एक्स्प्रेस)

मुंबई के सबसे नामी स्कूलों में से एक सोमैया स्कूल की प्रिंसिपल पर ऑपइंडिया ने पिछले दिनों रिपोर्ट करके बताया था कि कैसे वो हिंदू घृणा से सनी हुई हैं और अभिव्यक्ति व्यक्त करने के नाम पर हमास आतंकी संगठन का समर्थक करती हैं… हमारी उस रिपोर्ट के बाद अब खबर है कि स्कूल प्रशासन ने परवीन शेख की एक्टिविटीज को देखते हुए उनसे इस्तीफा माँगा है, लेकिन परवीन शेख इसे देने से मना करने लगीं… इस संबंध में कई मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट की है, मगर इन सारी रिपोर्टों में जिसने सबसे ज्यादा तथ्यों को छिपाया है वो इंडियन एक्सप्रेस की खबर है।

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में दिखाया है जैसे स्कूल प्रशासन सिर्फ फिलीस्तीन और हमास-इजरायल के बीच तनाव पर प्रतिक्रिया देने के कारण परवीन शेख से इस्तीफा माँग रहा है। रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि परवीन के साथ ऐसा तब हो रहा है जब वो सोमैया स्कूल से 12 साल से जुड़ीं हैं और 7 साल से प्रिंसिपल भी हैं। रिपोर्ट में शेख का पक्ष डालते हुए कहा गया कि 26 अप्रैल को प्रशासन ने मुझे बुलाकर कहा था कि उनके (प्रशासन के) ऊपर दबाव बनाया जा रहा है कि वो मुझसे रिजाइन माँगें इसलिए मुझे रिजाइन देना ही होगा।”

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में प्रकाशित रिपोर्ट

आगे परवीन शेख द्वारा लोकतांत्रिक देश में रहने का हवाला दिया गया है और विचार व्यक्त करने की आजादी जैसी बातें की गई हैं। शायद ऐसा कहते हुए और इंडियन एक्सप्रेस उनका ये पक्ष छापते हुए भूल गए कि इसी लोकतांत्रिक देश में वो हिंदू भी रहते हैं जिनके प्रति खुद को काबिल प्रिंसिपल कहने वाली मास्टरनी के मन में अथाह घृणा है। परवीन शेख के एक्स अकॉउंट पर रिप्लाई और लाइक देख पता चलता है कि वो मुस्लिमों द्वारा किए गए अपराधों को कैसे जस्टिफाई करने में विश्वास रखती हैं और समय-समय पर हिंदुओं का मजाक बनाने से नहीं चूँकती।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स में मास्टरनी का सारा पक्ष डाला गया है लेकिन ये जानकारी नहीं डाली गई कि आखिर क्यों उनकी निष्ठा पर सवाल उठे हैं। उन्होंने कैसे पोस्टों को लाइक किया है और कैसे विचारों को प्रसारित करने का काम करती आई हैं। कहने को कोई भी कह सकता है कि ये सारे विचार निजी होते हैं और इनका इतना बवाल नहीं बनाया जाना चाहिए… पर एक बार इस पक्ष को सोचकर देखिए कि सबसे बड़े स्कूलों में से एक की प्रिंसिपल होने के नाते, जिनके आचार-विचार पर हजारों बच्चों का भविष्य टिका है उनके द्वारा इस तरह की बातें किया जाना क्या देश के भविष्य के लिए, यहाँ के लोकतंत्र के लिए सुरक्षित हो सकता है?

टीचर के विचारों से छात्रों का प्रभावित होना कोई ऑपइंडिया द्वारा गढ़ी हुई बात नहीं है। अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजते इसीलिए हैं ताकि टीचरों से ज्ञान ले सकें। अब ऐसे में अगर ज्ञान ये दिया जाएगा कि हमास ने जो 7 अक्तूबर को किया वो एक विरोध मात्र था कोई आतंकी हमला नहीं… तो क्या हम अपेक्षा कर सकते हैं कि बच्चे ये समझें कि दुनिया में आतंक की परिभाषा क्या है और उससे लड़ने कैसे होगा, उस मानसिकता से बचना कैसे होगा।

परवीन शेख द्वारा लाइक पोस्ट

आतंकी संगठन के लिए संवेदना जाहिर कर छात्रों को ऐसी शिक्षा देना कि हमास द्वारा 7 अक्टूबर को किया गया इजरायल में हमला (जिसमें बच्चे मरे और महिलाओं से रेप किया गया) एक विरोध का तरीका हो सकता है… तो ये कितना सही है इस पर आप खुद फैसला कीजिए।

इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट को बैलेंस दिखाने के लिए उन लोगों का पक्ष भी छापा है जो कह रहे हैं परवीन शेख एक अच्छी प्रिंसिपल हैं और उनके निजी विचारों को देखते हुए उनके इस्तीफा नहीं माँगा जाना चाहिए। हकीकत जबकि ये है कि इस मामले में एक पक्ष वो भी है जो साफ कह रहा है कि परवीन शेख के विचार स्कूल के छात्रों के लिए घातक हो सकते हैं क्योंकि वो एक टीचर हैं और उनकी दी शिक्षा से बच्चे अपनी सोच बनाएँगे।

टाइम्स नाऊ में प्रकाशित अभिभावक का पक्ष

आज के समय में पोस्ट लाइक करना आपकी सोच को समझने का एक तरीका बन गया है। ऐसे में जब परवीन की लाइक वाली लिस्ट में ऐसे हिंदू घृणा से सने तमाम ट्वीटों को लाइक होते देखा जाए, पीएम मोदी को गाली देने का काम किया जाए, छात्रों को हिजाब पहनकर शिक्षा लेने देने की पैरवी की जाए, मंदिर जाने का विरोध किया जाए… तो इससे क्या संदेश जाएगा?

इतना ही नहीं आप अगर उनके ट्वीट देखेंगे तो पता चलेगा कि वो अपने ट्वीट में मीम के माध्यम से हिंदुओं को मजाक बनाती आई हैं। एक मीम शेयर किया था जिसमें दिखाया गया था कि हिंदू भारत में रहकर मुस्लिम बॉयकॉट का नारा लगाते हैं और मिडल ईस्ट में भीख माँगते हैं।

आपको क्या लगता है कि ये सोच लोकतंत्र के दायरे में आती है या फिर हिंदू घृणा में? ऐसे ही हिंदुओं को काफिर-काफिर बताने वाले जाकिर नाइक के प्रति झुकाव क्या दर्शाता है?

इस पूरे मामले में एक सबसे बड़ी बात ये ध्यान देने वाली है कि भले ही परवीन शेख के समर्थन में इंडियन एक्प्रेस जैसे संस्थान एकतरफा पक्ष चला दें, लेकिन सच तो ये है कि ऑपइंडिया की रिपोर्ट पर उसके आलोचक भी ये मान रहे हैं कि परवीन शेख के विचार स्कूल के लिए घातक हैं।

ऑपइंडिया के आलोचक भी कर रहे परवीन शेख की सोच का विरोध

एक यूजर की प्रतिक्रिया से समझ सकते हैं कि वो भले ऑपइंडिया के विचारों से नहीं जुड़ता लेकिन उसे पता चल रहा है कि हमास आतंकी संगठन ने 7 अक्तूबर को इजरायल में जो किया उसे कोई विरोध नहीं कह सकता। लोग नरसंहार के विरोधी और इजरायल विरोधी हो सकते हैं, मगर उसके लिए उन्हें आतंकी संगठन का समर्थन करने की जरूरत नहीं। पर, परवीन शेख ने जो किया वो खुले तौर पर आतंकी संगठन की सोच को बढ़ावा देने वाला है।

इस मामले में जैसे एक धड़ा यह बताने में लगा है कि परवीन शेख अच्छी प्रिंसिपल हैं और निजी विचारों पर न ध्यान दिया जाए। दूसरा पक्ष ये भी है जो मानता है कि मुंबई जैसे शहर के स्कूल की प्रिंसिपल की यह सोच व्यापक स्तर पर प्रभाव डाल सकती है क्योंकि मुंबई ही वो शहर है जिसने 26/11 के रूप में सबसे बड़ा आतंकी हमला झेला हुआ है।