‘भाजपा से नाराज़ है संघ, फैसले लेने से पहले मंत्रियों तक से नहीं पूछा जाता’: RSS ने ‘इंडिया टुडे’ के लेख को बताया शरारत

'इंडिया टुडे' ने की थी भाजपा और संघ के बीच अनबन होने की बात

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने ‘इंडिया टुडे’ में छपे एक लेख का खंडन किया है, जिसमें संघ और भाजपा के बीच अनबन होने की बात की गई है। इस लेख में दावा किया गया है कि कभी RSS के प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के 7 साल पूरे होने तक कभी ये नहीं सोचा होगा कि संघ के साथ उनके रिश्ते इस कदर खराब होंगे। लेख के अनुसार, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाने के बावजूद कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह मई के पहले 10 दिनों में ही 40,000 लोगों की जान ली, उससे संघ नाराज़ है।

‘इंडिया टुडे’ की फरवरी 24, 2021 को जारी हुए अंक में ये लेख संस्थान के सीनियर एडिटर अनिलेश एस महाजन ने लिखा है और भाजपा व RSS में मनमुटाव की बात की है। लेख की मानें तो संघ का पूरा ध्यान राहत कार्य पर है, जबकि जमीन पर सरकार के नदारद रहने से वो नाराज़ भी है। इसमें लिखा है कि पिछले साल की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार देश को सम्बोधित भी नहीं किया है और उनके मंत्रीगण केवल सोशल मीडिया पर ही सक्रिय हैं।

https://twitter.com/SunilAmbekarM/status/1396479325373796360?ref_src=twsrc%5Etfw

साथ ही एक ‘वरिष्ठ RSS नेता’ के हवाले से लिखा है, “भारत में कोरोना की दूसरी लहर काफी विपत्तिपूर्ण रही है। पिछले साल के मुकाबले अबकी काफी ज्यादा लोग मारे गए। सभी लोग चिंतित हैं, लेकिन अभी आलोचना करने का सही समय नहीं है।” साथ ही सरसंघचालक मोहन भागवत के एक बयान “क्या जनता, क्या शासक – सभी गफलत में आ गए” का जिक्र किया गया है। साथ ही भागवत द्वारा उर्दू शब्द इस्तेमाल करने की ओर ध्यान खींचा गया है।

RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अम्बेकर ने इस लेख का खंडन करते हुए लिखा, “पाक्षिक पत्रिका ‘इंडिया टुडे’ की 31 मई, 2021 के अंक में प्रकाशित रिपोर्ट आधारहीन, मनगढ़ंत और तथ्यों के विपरीत है। उपरोक्त विषय पर RSS अधिकारियों के साथ कोई चर्चा नहीं हुई। महामारी में संघ की भूमिका पर बात हुई। सरकार की भूमिका के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। सामान्य बातचीत को सनसनी फैलाने के उद्देश्य से बिना किसी तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है।”

संघ की तरफ से आए आधिकारिक बयान में ये भी कहा गया है कि कोरोना के इस विपत्तिकाल में केवल भ्रान्ति फैलाने के उद्देश्य से लिखी गई इस शरारतपूर्ण रिपोर्ट को हम सिरे से ख़ारिज करते हैं। उक्त लेख में भाजपा से वापस संघ में बुलाए गए राम माधव के भी एक लेख का जिक्र है, जिसमें उन्होंने सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और उचित आलोचना के स्वागत की बात की थी। संघ नेताओं के हवाले से दावा किया गया है कि कोई भी निर्णय लेने में मंत्रियों तक से सलाह नहीं ली जाती है।

लेख के इस हिस्से को अब हटा दिया गया है

यहाँ तक कि इस लेख में कृषि कानूनों और ‘सार्वजनिक कंपनियों को प्राइवेट बनाने’ के लिए भी संघ को नाराज़ बता दिया गया है। साथ ही ये भी लिखा है कि RSS एक हद से आगे न बढ़ते हुए सरकार को समय दे रहा है। लेख के अनुसार, संघ को उम्मीद है कि स्थिति सुधरने के साथ पासा पलटेगा और ऑक्सीजन सप्लाई मजबूत होने से ऐसा हो भी रहा है; संघ को आशा है कि सरकार इस दिशा में आगे बढ़ेगी।

RSS के खंडन के बाद ‘इंडिया टुडे’ ने लेख को अपडेट करते हुए दवा किया है कि वो इस लेख के ‘सब्स्टांस’ के साथ अब भी खड़ा है। लेकिन, इसमें संघ के सह कार्यवाह अरुण कुमार के बयान को हटाया गया है। इसमें अरुण कुमार को देश के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के विजयराघवन पर निशाना साधते हुए बताया गया था। लिखा था कि अरुण कुमार ने पूछा है कि आखिर तीसरे लहर की आशंका जताने वाले राघवन ने दूसरी लहर को लेकर क्यों नहीं चेताया?

वैसे ये पहली बार नहीं है जब ‘इंडिया टुडे’ या इसके पत्रकारों ने इस तरह की हरकत की हो। ‘किसान आंदोलन’ के दौरान जब प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली में उत्पात मचाया था, जब चैनल के पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने एक प्रदर्शनकारी के पुलिस की गोली से मारे जाने की अफवाह फैलाई थी। और तो और, ‘इंडिया टुडे’ अपनी ही फेक न्यूज़ का फैक्ट-चेक कर चुका है। भाजपा विरोधी प्रोपेगंडा का उसका पुराना इतिहास रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया