चाटूकार NDTV को दो सीटों पर दो नंबर पर रही कॉन्ग्रेस में ‘आशा’ दिख रही है!

एनडीटीवी का कॉन्ग्रेस को एकतरफा समर्थन

उत्तर प्रदेश की 7 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कल तक भाजपा 6 सीटों पर लगातार आगे चल रही थी। वहीं बाकी बची एक सीट पर सपा प्रत्याशी को बढ़त मिली थी। रुझानों की जो तस्वीर मतगणना के दौरान टीवी चैनलों पर दिखाई जा रही थी, उससे साफ था कि नतीजे भाजपा के पक्ष में हैं और बिहार व मध्य प्रदेश की तरह यूपी में भी बीजेपी को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं।

हालाँकि, इस बीच सबसे ‘निष्पक्ष’ मीडिया चैनल एनडीटीवी, यूपी के उपचुनावों को देख कर कामना कर रहा था कि कम से कम दो सीटों पर कॉन्ग्रेस अपना कब्जा जमा ले। मगर, अफसोस ऐसा हो न सका। कॉन्ग्रेस को इन उपचुनावों में भी एक भी सीट नहीं मिली। बाद में चाटुकार एनडीटीवी ने खुद को समझाते-बुझाते एक खबर प्रकाशित की और अपने पाठकों को बताना चाहा कि उन्हें कॉन्ग्रेस में किस तरह आशा दिख रही है।

जी हाँ, एनडीटीवी को कॉन्ग्रेस में उम्मीद की किरण दिख रही है। इसका जिक्र उन्होंने अपनी हेडलाइन में ही कर दिया है। हम एनडीटीवी पर प्रकाशित इस खबर से समझ सकते हैं कि आखिर क्यों एक ओर जब हर मीडिया चैनल या तो जीते हुए प्रत्याशी पर खबर चला रहा था या फिर क्षेत्र से लड़े सभी कैंडिडेट्स के ऊपर अपना विश्लेषण दे रहा था, एनडीटीवी ने क्यों अपनी विशेष खबर को सिर्फ़ कॉन्ग्रेस का पक्ष लेकर चलाया। इस खबर में विशेष तौर पर अलग से बताया गया है कि कौन सी विधानसभा में पार्टी के दो प्रत्याशी रनर अप रहे या फिर सेकेंड आए।

NDTV की खबर और शीर्षक से समझिए ‘निष्पक्षता’

बंगरमऊ से आरती बाजपाई और घातमपुर से कृपा शंकर का नाम खबर में लिखते हुए एनडीटीवी ने बताया कि इनके रूप में उन्हें आशा दिख रही है। यूपी में कॉन्ग्रेस प्रवक्ता अशोक सिंह के बयान का उल्लेख करते हुए यह भी बताया गया कि जहाँ कॉन्ग्रेस दूसरे नंबर पर रही, वहाँ के मतदाताओं के मत में बदलाव आसानी से देखा जा सकता है। अशोक सिंह का कहना है कि उनकी पार्टी बसपा के मुकाबले दो नंबर पर रही है। बसपा सिर्फ दूसरे नंबर पर बुलंदशहर में ही रही।

आगे खबर में कॉन्ग्रेस का प्रदर्शन इन चुनावों में अच्छा दिखाने के लिए 2017 के चुनावों पर भी बात हुई। इसमें याद दिलाया गया कि तब तो कॉन्ग्रेस तीसरे नंबर पर थी और दूसरे नंबर पर एसपी का प्रत्याशी था। लेकिन अब यही स्थान बदल गए हैं।

कॉन्ग्रेस के लिए अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर करते हुए एनडीटीवी ने अपनी खबर में प्रियंका गाँधी का बखान भी किया। हाथरस का मुद्दा उठाकर बताया कि कैसे इस मामले पर कॉन्ग्रेस महासचिव लगातार योगी आदित्यनाथ पर हमले बोल रही थी। 

आगे पाठकों का ध्यान इस बात पर आकर्षित करवाया गया कि भले ही भाजपा ने चुनाव जीत लिया है लेकिन यदि 2017 के मुकाबले आँकड़े देखें तो भाजपा का वोट शेयर गिर गया है।

अन्य पार्टियों व भाजपा के वोटशेयर को दर्शाते हुए इस खबर में प्रमाणित करने की कोशिश की गई कि बांगरमऊ, देवरिया, घातमपुर, तुंडला- इन सब जगह बीजेपी के मतदाताओं का ध्यान दूसरी ओर आकर्षित हुआ है। वहीं नौगाँव में पार्टी का प्रदर्शन सुधरा है और बुलंदशहर में इसे बेहतर भी माना जा सकता है।

एनडीटीवी की इस खबर का क्या अर्थ है, क्या निष्कर्ष है? इस बारे में आप खुद सोचिए। न इसमें जीते हुए प्रत्याशियों की बात है और न ही हारे हुए प्रत्याशियों की हार का विश्लेषण। इसमें या तो कॉन्ग्रेस के लिए एनडीटीवी की आशा नजर आ रही है या फिर भाजपा की जीत के लिए निराशा।

वरना क्या वजह है कि एक जगह जब लोगों का कहना यह है कि कॉन्ग्रेस के आपसी ताल-मेल के कारण उन्हें कहीं जीत नहीं मिल पा रही है, तब एनडीटीवी ये बताना चाह रहा है कि कॉन्ग्रेस बाकी सीटें हारी तो हारी लेकिन जिन सीटों पर टक्कर दी है और दूसरे नंबर पर पार्टी प्रत्याशी रहे हैं, वह एक उम्मीद है, आशा की किरण है, जो पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की ओर इशारा करती है। इसे यदि चाटुकारिता नहीं कहा जाएगा तो क्या कहा जाएगा?

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया