PM मोदी ने भारत में नई शक्ति का निर्माण कर सांस्कृतिक बदलाव को दिया जन्म, उन्हें रोकना मुश्किल: संजय बारू

करन थापर ने संजय बारू का लिया साक्षात्कार (फोटो क्रेडिट: यूट्यूब)

पॉलिटिकल कमेंटेटर और विश्लेषक संजय बारू ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में एक नए एलीट क्लास का निर्माण किया है। उन्होंने एक ऐसे सांस्कृतिक बदलाव को जन्म दिया है, जो देश पर राज करेगा, उसके विचार, भारत के विचार होंगे। बारू ने यह बात हाल ही में वामपंथी ऑनलाइन पोर्टल द वायर के लिए पत्रकार करण थापर को दिए इंटरव्यू में कही।

इंटरव्यू में बोलते हुए उन्होंने अपनी नई किताब, “इंडियाज पावर एलीट: क्लास, कास्ट एंड ए कल्चरल रिवॉल्यूशन” को लॉन्च किया। बारू ने कहा कि नए बुद्धिजीवी अमित शाह और योगी आदित्यनाथ पूरी तरह से अलग दुनिया से हैं। उन्होंने कहा कि देश के कई हिस्सों में सरकार और नौकरशाही ने स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। इससे पहले इस पर अंग्रेजी उच्च-मध्यम वर्ग का वर्चस्व था।

संजय बारू ने इसके बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “नई एलीट पॉवर प्रांतीय है, अंग्रेजी में सहज नहीं है। मुझे लगता है कि हमारे पास दिल्ली में और भारत के कई हिस्सों में जो नौकरशाही है। वह मौखिक रूप से सोचती है। प्रशासनिक व्यवस्था में जिस तरह की उपमाओं प्रतीकवाद का उपयोग करते हैं, उसमें सांस्कृतिक क्रांति मिली हुई है। यह एक ऐसा तरीका है, जिसके बारे में शासक वर्ग गहनता से विचार करता है।”

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बारू ने कहा, “नई एलीट शक्ति पूरी तरह से क्षेत्रीय है। ये लोग बातचीत में हिंदी अथवा मौखिक भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं। ये अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत अपर-मिडिल-क्लास से आते हैं। देश में नई शक्तियां मध्यम वर्ग की हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत से ऊंचा मुकाम हासिल किया हैं। ये उन परिवारों में पैदा नहीं हुए, जिन्हें हर तरह की चीजें आसानी से मिल जाती हैं।”

उन्होंने यह भी बताया कि पीएम मोदी के सत्ता में आने से पहले नई दिल्ली में सरकार ने किस तरह से बदलाव किया? BJP के सत्ता में आने से पहले राजधानी के पावर एलीट का गठन करने वाले सामाजिक वर्ग में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं हुआ था। उन्होंने यह भी कहा कि ज्यादातर मौकों पर सत्ता के एलीट क्लास में भी समान विशेषताएं मिल जाती थीं।

पॉलिटिकल कमेंटेटर ने यह भी कहा कि पुराना एलीट क्लास अक्सर एक ही यूनिवर्सिटी अथवा स्कूल से होता था, जो कि जिमखाना या आईआईसी से होता था। बारू ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि ऐसा पहली बार है जब देश के पीएमओ में सेंट स्टीफेंस अथवा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट कोई भी अधिकारी नहीं है।

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बारू ने कहा, “पुराने जन बुद्धिजीवियों और लेफ्ट लिबरल्स को हिंदू राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों से बदल दिया गया है।”

उन्होंने ये दावा किया कि सत्ता के एलीट क्लास की उभरती हुई सांस्कृतिक क्रांति ने इंडिया को दरिकनार कर सांस्कृतिक तौर पर भारत को प्रदर्शित किया है। राजनीतिक टिप्पणीकार ने कहा कि देश में सांस्कृतिक बदलाव की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आगमन के साथ ही शुरू हो गया था। यह ठीक उसी तरह है जैसे माओ के आने से बदलाव शुरू हुआ था। बारू ने आगे कहा कि दोनों ही उदाहरणों में एक ही उद्देश्य निहित था और वो यह कि पुरानी शक्तियों को किसी भी तरह से हटाना था।

करण थापर के साथ 32 मिनट के साक्षात्कार में बारू ने जनता के बीच पीएम मोदी की लोकप्रियता और राजनीतिक सफलता के लिए उनके मंत्र का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि यह भाजपा के हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, राम मनोहर लोहिया की जाति-आधारित सामाजिक कल्याण और वामपंथी वर्ग आधारित समर्थक गरीब कट्टरपंथ से मिला-जुला है। उन्होंने कहा कि यह वामपंथियों और कुलीनों के लिए भी शत्रुतापूर्ण है।

यह पूछे जाने पर कि मोदी को किस प्रकार से चुनौती दी जा सकती है। इस पर बारू ने कहा कि विपक्ष का पुनरुद्धार या आर्थिक पतन केवल दो चीजें ऐसी हैं, पीएम मोदी को रोक सकती हैं। उन्होंने कहा कि नए आकांक्षी भारत के लोग पीएम मोदी की ओर आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि वह उन्हें पहचानते हैं। वो उन्हीं के विचारों को दर्शाते हैं। हालाँकि, बारू के मुताबिक अगर अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होता है तो पीएम मोदी के प्रति लोगों का यह अटूट समर्थन मोहभंग और हताशा में बदल सकता है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया