धूर्तता को गलती बता बहलाने की कोशिश कर रहे रवीश कुमार: फेक न्यूज का फैक्टचेक भी नहीं

सरकार को बदनाम करने के चक्कर में धान और चावल का फर्क भी भूले रवीश कुमार (फाइल फोटो)

NDTV के प्रोपेगेंडा पत्रकार रवीश कुमार अक्सर फेक न्यूज़ फैलाते पाए जाते हैं। इस बार भी उन्होंने यही किया है और बड़ी चालाकी से अपनी धूर्तता को छोटी सी गलती की तरह दिखाते हुए माफ़ी माँगने का ढोंग भी रचा है। ‘किसान आंदोलन’ की आग में घी डालने के लिए रवीश ने कृषि उत्पाद खरीद मामले में सरकार पर ही गलत आँकड़े पेश करने का आरोप मढ़ दिया था। अब वे फेसबुक पर इसे ‘गलती’ बताते हुए ‘सार्वजनिक सूचना’ दे रहे हैं।

रवीश कुमार ने एक तरह से माना है कि केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल के एक ट्वीट के विश्लेषण के चक्कर में उन्होंने झूठ बोला। केंद्रीय मंत्री ने अपनी ट्वीट में साफ़-साफ़ लिखा था कि ये आँकड़े जनवरी 10, 2021 तक के हैं। ट्वीट के टेक्स्ट में भी ये बात लिखी हुई थी और ट्वीट के साथ डाले गए पोस्टर में भी ये अंकित था। लेकिन, रवीश ने ‘बारीक अक्षरों’ पर अप्रत्यक्ष रूप से इसका दोष मढ़ते हुए ‘जवाबदेही लेने’ की बात कही है। उन्होंने लिखा:

इस पोस्टर में आप पढ़ सकते हैं कि सरकार कह रही है कि 19-20 में 423 लाख मीट्रिक टन धान की ख़रीद हुई और इस साल अब तक 543 लाख मिट्रिक टन। यानी पिछले साल की तुलना में इस साल 26 प्रतिशत अधिक हो चुकी है। अब इन्होंने पहली गलती यह की है कि धान लिखा है मगर डेटा दिया है चावल का। जब आप ‘खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग’ की साइट पर जाएँगे तो पता चलेगा कि 19-20 में कुल 519 लाख मीट्रिक टन चावल की खरीद हुई थी। इस डेटा के हिसाब से अब तक जो खरीद हुई है वो 26 प्रतिशत अधिक कैसे हो गई?”

एक तो रवीश कुमार खुद धान की खरीद के लिए चावल खरीद के आँकड़े निकालने लगे और झूठ बोलते हुए बताने लगे कि कैसे सरकार के आँकड़ों में गड़बड़ी है, ऊपर से अब वो इसे एक छोटी सी गलती की तरह दिखा रहे हैं। धान-चावल में कन्फ्यूज हुए रवीश ने ये भी नहीं समझा कि जिद्दी किसान संगठन आजकल इसी ताक में लगे हुए हैं कि कैसे किसानों को बरगला कर सरकार को बदनाम किया जा सके। सरकार ने रवीश को उनकी गलतियों की याद दिला कर उन्हें लताड़ भी लगाई।

हालाँकि, इन सब मामले में उस फेसबुक ने शायद ही कोई कार्रवाई की है, जो दक्षिणपंथियों द्वारा शेयर किए गए मजाक को भी ‘फेक न्यूज़’ मान कर उनकी पेज की रीच ही कम कर देता है। अगर किसी ऐरे-गैर वामपंथी पोर्टल ने भी फैक्ट-चेक के नाम पर रायता फैला दिया, तो भी फेसबुक आँख बंद कर ऐसी हरकत करता है। लेकिन, रवीश कुमार के मामले में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने शायद ही ऐसा कोई एक्शन लिया हो।

वहीं लिबरल गैंग में फैक्ट-चेक का मसीहा बन कर बैठे Altnews ने भी अब तक रवीश कुमार के झूठे दावे का कोई फैक्ट-चेक नहीं किया है। ये वही वेबसाइट है, जिसे चलाने वाले जुबैर पर ट्विटर पर एक छोटी बच्ची की ऑनलाइन प्रताड़ना का आरोप लग चुका है। किसी एक ने कुछ ट्वीट कर दिया तो उसे भी ‘वायरल’ बता कर फैक्ट-चेक करने वाले इस वामपंथी और इस्लामी कट्टरवादी पोर्टल ने रवीश के दावे के पोल खुलने के कई घंटों बाद भी इसका फैक्ट-चेक करने की जहमत नहीं उठाई थी।

अब आप जरा स्थिति को उलटा कर के देखिए। मान लीजिए कि सरकार की जगह किसान संगठनों ने कोई आँकड़ा दिया और सुधीर चौधरी या अर्णब गोस्वामी ने उसे गलत रूप में पेश कर दिया। फिर यही वामपंथी मीडिया उन दोनों पर किसान विरोधी होने का तमगा लगा कर हल्ला मचा रहा होता और सोशल मीडिया में भी मजाक बनाया जाता। लेकिन, चूँकि मामला रवीश कुमार का है, इसीलिए सब जानबूझ कर गहरी नींद में हैं।

ऊपर से अब जब रवीश कुमार ने ‘बड़प्पन’ दिखाते हुए अपनी ‘गलती‘ को स्वीकार करने का जो ‘साहस’ दिखाया है, उस पर जरूर पत्रकारिता के वामपंथी खेमे के कुछ लोग ताली पीटेंगे। यानी चित भी उनकी और पट भी उनकी। कभी अभिसार शर्मा धान के खेतों को गेहूँ का कहते हैं तो कभी रवीश कुमार धान को चावल समझ लेते हैं, लेकिन यूट्यूब पर इनके वीडियोज को लाखों व्यूज मिलते हैं और लिबरल मीडिया उनकी पीठ थपथपाता है।

अपनी ‘गलती स्वीकार कर’ के ‘महान’ बने रवीश कुमार

बता दें कि रवीश कुमार ने जान-बूझकर फर्जी जानकारी देने के लिए पीयूष गोयल के ट्वीट की इमेज को क्रॉप किया था और अब इसे ‘गलती’ बता कर ऐसे दिखा रहे जैसे वो नींद में थे और सोते-सोते ही उन्होंने तस्वीर को एडिट कर डाली। केंद्रीय मंत्री द्वारा साझा जानकारी में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि डेटा 10 जनवरी तक खरीद के लिए है। लेकिन सरकार को झूठा करार देने के लिए, रवीश कुमार ने पूरे साल के डेटा का इस्तेमाल किया। 

ऐसे संवेदनशील समय में जब किसान संगठनों और केंद्र सरकार की 10 दौर की वार्ताओं में भी कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया है और किसान नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट की समिति के समक्ष पेश होने से भी इनकार कर दिया है, रवीश कुमार जैसे पत्रकारों की इस तरह की हरकतों पर जब कोई हिंसा या दंगे जैसे हालात बनेंगे तो यही वामपंथी मीडिया मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए इसे ‘Pogrom’ बताएगा, जैसे दिल्ली दंगों के वक़्त किया गया था।

जब CAA और NRC के मुद्दों पर पत्रकारों और लिबरल मीडिया के अलावा कई सलेब्स ने भी एक के बाद एक झूठ फैलाए थे, उसकी परिणीति हमें दिल्ली सहित कई जगहों पर दंगों और हिंसा के रूप में देखने को मिली। अब जब किसान आंदोलन में भी खालिस्तानी ताकतों के घुसने की बात सरकार ने भी स्वीकार की है, रवीश कुमार जैसे पत्रकार जिम्मेदारी भूल कर इस ‘आंदोलन’ को और हवा देने का काम कर रहे हैं और धूर्तता को ‘गलती’ बता रहे हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया