बम बनाते उड़ गया हाथ, अब्दुल करीम से बन गया ‘टुंडा’: कोर्ट ने 1993 के सीरियल ब्लास्ट में किया बरी, इरफान और हमीदुद्दीन दोषी करार

अब्दुल करीम टुंडा (चित्र साभार: HT)

आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को 6 दिसम्बर, 1993 को हुए धमाकों के मामले में बरी कर दिया गया है। टुंडा को अजमेर की एक TADA कोर्ट ने बरी किया है। कोर्ट ने उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत ना होने की बात कही है। वह वर्तमान में अपने खिलाफ चल रहे अन्य मामलों में सजा काट रहा है।

टुंडा पर 5-6 दिसम्बर, 1993 यानी बाबरी मस्जिद विध्वंस के एक वर्ष पूरे होने पर कोटा, लखनऊ, मुंबई, कानपुर, हैदराबाद और सूरत की ट्रेनों में सीरियल धमाके करने का आरोप था। इस मामले में टुंडा पर सारी प्लानिंग करने आरोप था। हालाँकि, उसे आज महावीर प्रसाद गुप्ता की एक अदालत ने बरी कर दिया। यह धमाके राजधानी एक्सप्रेस और अन्य सुपरफास्ट ट्रेनों में हुए थे। इसी मामले में आतंकी इरफ़ान और हमीदुद्दीन को दोषी करार दिया गया है।

सरकारी वकील ने बताया है कि फैसला पढ़ने के बाद यह स्पष्ट रूप से जाना जा सकेगा कि टुंडा को क्यों बरी किया गया है। टुंडा 2013 में नेपाल सीमा से गिरफ्तार किया गया था और वह तब से अलग अलग मामलों में जेल में बंद है। उस पर 40 से अधिक धमाकों में शामिल होने का आरोप है। वह लश्कर ए तैयबा और आतंकी दाऊद इब्राहिम से भी जुड़ा रहा है।

टुंडा की उम्र वर्तमान में 80 साल है। टुंडा गाजियाबाद के पिलखुवा का रहने वाला है। टुंडा इससे पहले कई काम कर चुका है। वह होम्योपैथिक दवाई से लेकर कबाड़ बेचने और कपड़े बेचने तक धंधा कर चुका है। बताया जाता है कि 1980 के बाद वह आतंकी सगठनों के सम्पर्क में आया। टुंडा 1993 में पाकिस्तान में ISI की ट्रेनिंग लेने भी जा चुका है।

टुंडा के हाफिज सईद से भी लिंक बताए जाते हैं। टुंडा कुछ सालों तक पाकिस्तान में भी रहा है। टुंडा को कई मामलों में छोड़ा जा चुका है। हालाँकि, उसे 2017 में सोनीपत की एक अदालत ने एक धमाके के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। टुंडा कई मामलों में बरी किया जा चुका है।

अब्दुल करीम टुंडा देश के कई इलाकों में धमाकों में आरोपित है। वह वर्तमान में गाजियाबाद जेल में सजा काट रहा है। उसके नाम के पीछे की भी एक कहानी है। उसका असल नाम सैयद अब्दुल करीम टुंडा ही है। बताया जाता है कि एक बार बम बनाते हुए वह उसके हाथ में ही फट गया था। इस धमाके में उसका हाथ उड़ गया था और वह एक हाथ का ही रह गया। इसके बाद उसका नाम टुंडा ही पड़ गया और वह इसी नाम से जाना जाने लगा।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया