बिहार के जिन गाँवों में कुछ साल पहले गिनती के थे मुस्लिम, वहाँ अब हिंदू बचे नहीं: बांग्लादेशियों से बदला सीमांचल, रिपोर्ट में दावा- खरीद रहे जमीन

बिहार के सीमांचल में बदली डेमोग्राफी से हिंदू पलायन को मजबूर (प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार: HT)

बिहार के सीमावर्ती जिलों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का दबदबा इस कदर बढ़ गया है कि वहाँ के हिंदू पलायन करने को मजबूर हो गए हैं। सीमांचल कहलाने वाले बिहार के इन जिलों में बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के कारण बड़े पैमाने पर जनसांख्यिकीय बदलाव हुए हैं, जिनके कारण इन इलाकों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं।

बता दें कि बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे बिहार के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया को सीमांचल के नाम से जाना जाता है। यहाँ हिंदुओं की आबादी तेजी से कम हुई है। किशनगंज में तो हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक, 1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुस्लिमों की साझेदारी चार प्रतिशत बढ़ी है। इसी अवधि में सीमांचल में यह आँकड़ा लगभग 16 प्रतिशत है। इन जिलों में बंगाल के रास्ते बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं के आकर बसने का सिलसिला जारी है।

बता दें कि नेपाल सीमा से सटे उत्तर प्रदेश में भी स्थिति कमोबेश यही है। वहाँ सीमा पर अवैध मजारों का बड़े पैमाने पर जाल फैलाकर जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा किया जा रहा है। इतना ही नहीं, इन सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफिक बदलाव हुए हैं। इसको लेकर ऑपइंडिया ने ग्राउंड रिपोर्टिंग की एक पूरी श्रृंखला की है।

बिहार के सीमांचल की बात करें तो यहाँ के हर जिले में मुस्लिमों की आबादी तेजी से बढ़ी है। इस कारण हिंदुओं की आबादी का प्रतिशत घटा और कुछ तो पलायन कर गए। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, किशनगंज में मुस्लिमों की जनसंख्या 67.58 प्रतिशत हो गई है। यहाँ हिंदू अब सिर्फ 31.43 प्रतिशत बचे हैं।

कटिहार में मुस्लिमों की आबादी 44.47 प्रतिशत, अररिया में 42.95 प्रतिशत और पूर्णिया में 38.46 प्रतिशत हो चुकी है। सीमांचल के कई ऐसे जिले हैं, जहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हो गए और बाद में प्रताड़ना से तंग आकर वहाँ से पलायन कर गए। अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड के रामपुर गाँव के हिंदू पलायन कर दोगाँछी गाँव चले गए। यहाँ हिंदुओं की आबादी थोड़ी अधिक है।

कहा जाता है कि इलाके में मुस्लिम अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए ना सिर्फ बांग्लादेशियों को बसाने में मदद करते हैं, बल्कि उनके लिए दस्तावेज आदि का भी प्रबंध करते हैं। वहीं, हर मुस्लिम अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर मुस्लिम दबदबा बढ़ाने में व्यक्तिगत तौर पर अपना योगदान देना नहीं भूलता है।

एक-एक मुस्लिम महिला के 14 तक बच्चे हैं। वहीं, सामान्य तौर पर सबसे कम बच्चे वाली मुस्लिम महिला के भी पाँच बच्चे होते हैं। इसी तरह अगर एक मुस्लिम की दो बीवियाँ भी हैं तो उसके औसतन एक दर्जन बच्चे हो गए। अगर किसी गाँव में 20 मुस्लिम पुरूष हैं तो औसतन 250 बच्चे हो गए। इस तरह अगले 10 सालों में आबादी का पूरा सेनेरियो ही बदल जाएगा।

बता दें कि बांग्लादेश और अब तो बर्मा के रोहिंग्या पश्चिम बंगाल में घुसते हैं और वहाँ से देश के अन्य हिस्सों में जाकर बस जाते हैं। जहाँ-जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक होती है, वहाँ-वहाँ इन अवैध घुसपैठियों को प्रश्रय मिलता है।

डेमोग्राफी में बदलाव होने के साथ ही सीमांचल के ये सारे जिले राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील बन गए हैं। साल 2017 में बांग्लादेश सीमा पर एक सुरंग का पता चला था। वह बांग्लादेश की ओर से 80 मीटर भूमि की खोदाई कर कंटीले बाड़ के नीचे से भारतीय सीमा में पहुँचाई गई थी। स्पष्ट है कि वह सुरंग घुसपैठ के लिए बनी थी।

यहाँ घुसपैठ कराने से लेकर उनके जाली दस्तावेज बनवाने से लेकर उन्हें बसाने तक के लिए तस्करों का एक पूरा गिरोह काम करता है। समय-समय पर ये तस्कर पकड़े भी जाते हैं, लेकिन उनके सिंडिकेट को तोड़ पाना आसान नहीं है। इनकी पैठ बांग्लादेश और नेपाल में बैठे मुस्लिमों तस्करों तक होती है और उनके साथ मिलकर ये ऑपरेट करते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया