चायनीज ‘धोखेबाजी वार’ से बचाव के लिए भारतीय सैनिकों को सुरक्षा कवच, पहला खेप पहुँचा लेह

चीनी वार से बचने को भारतीय सैनिकों को सुरक्षा कवच (प्रतीकात्मक फोटो)

15 जून को पीएलए के साथ गालवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। इनमें से अधिकतर सैनिकों पर स्पाइक-स्टडेड क्लबों (ऐसे डंडे जिनमें कीलें धँसी थीं या कंटीली तारों से बँधे थे) से हमला किया गया था।

इस झड़प को देखते हुए सेना के उत्तरी कमान ने अपने सैनिकों को हल्के दंगा गियर से लैस करना शुरू कर दिया है। इन बॉडी प्रोटेक्टर्स में गद्देदार पॉली कार्बोनेट मटीरियल होते हैं और यह पहनने वालों को धारदार चीजों और पत्थरों से बचाता है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक फुल-बॉडी प्रोटेक्टर्स के 500 सेट की पहली खेप हवाई जहाज से लेह के लिए ले जाया गया। मुंबई के सप्लायर से लिए गए यह सूट एलएसी पर तैनात सैनिकों के बीच वितरित किया जाना है।

संदीप उन्नीथन की रिपोर्ट के मुताबिक एक वरिष्ठ सैन्य विश्लेषक ने यह जानकारी दी। सैनिकों के वीरगति को प्राप्त होने पर चिंता व्यक्त करते हुए सैन्य विश्लेषक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर पर बताया कि सैनिकों को दंगा नियंत्रण वाली किट दी जा रही है। ऐसा करके जवानों की मानसिकता को पुलिसकर्मियों की तरह बनाया जा रहा है।

सेना की योजना एलएसी पर तैनात अपने सैनिकों को नुकीले क्लबों से लैस करने की भी है। इससे LAC पर तैनात सैनिक आगे से और भी सतर्क रहेंगे और धोखा नहीं खाएँगे।

15 जून को भारतीय सैनिकों पर धोखे से किए गए हमले के दौरान भी पीएलए (चीन) के सैनिक स्पाइक्स (ऐसे डंडे जिनमें कीलें धँसी थीं या कंटीली तारों से बँधे थे) से लैस थे। भारतीय सैनिक तब हैरान रह गए थे, जब पिछले महीने पीएलए के सैनिकों ने पैंगोंग झील के किनारे हुई झड़पों में भारतीय सैनिकों को निशाना बनाने के लिए कंटीले तारों से लिपटे क्लबों का इस्तेमाल किया था। उस दौरान कई भारतीय सैनिक घायल और कुछ गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

वैसे देखा जाए तो आधुनिक युद्ध में मध्यकालीन हथियारों का उपयोग कोई नया नहीं है। पिछली शताब्दी में हुए प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए तात्कालिक हथियारों में विशेष प्रकार के चाकू भी शामिल थे। इन्हें एक जड़े हुए धातु के हैंडगार्ड में लंबा चाकू और काँटेदार तार लगाकर गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

भारत और चीन के बीच हुए कई समझौतों में से एक प्रमुख प्रावधान को दरकिनार करते हुए पीएलए के सैनिकों ने बिना किसी गोली के भारतीय सैनिकों की जान ले ली। सीमाओं पर शांति कायम रखने के लिए दोनों पक्षों की ओर से फायरिंग करने वाले हथियारों को न रखने पर सहमति बनी थी। आखिरी बार भारत-चीन सीमा पर 45 साल पहले गोली चली थी। तब पीएल के एक गश्ती दल ने असम राइफल्स की एक टुकड़ी पर घात लगाकर हमला कर चार सैनिकों की हत्या कर दी थी।

1993 में भारत-चीन सीमा समझौते के बाद से सीमा पर हथियारों को नहीं दिखाया जाता है। इतना ही नहीं, अभ्यास के दौरान भी राइफल की नाल को जमीन की ओर झुकाकर पीठ पीछे रखा जाता है। इसके बाद भी सीमा पर हुए गतिरोधों के दौरान धक्का-मुक्की के साथ सैनिकों के बीच झड़पें तो देखने को मिलती रही हैं, लेकिन किसी ने भी अपने हथियार से गोलीबारी नहीं की।

इन सब के बीच 15 जून को हुई घटना ने सारी सीमाओं को लाँघ दिया। 16 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिए राज्य के मुख्यमंत्रियों को संबोधित करते हुए एक तरह से पूरे देश को संबोधित कर कहा, “हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया