राम-राम कहने पर मुँह में डाल दी लाठी, छाती में गोली मार सड़क पर घसीटी लाश: कारसेवक कमलाकांत पांडेय, मुलायम सरकार में छीना गया जिनका ‘मंगलसूत्र’

राम-राम कहने पर कारसेवक कमलाकांत (बाएँ) को गोली मार कर लाश को घसीटा गया था अयोध्या की सड़कों पर

लोकसभा चुनाव के दौरान इस समय देश की राजनीति में ‘मंगलसूत्र’ शब्द चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा सरकार आने पर घुसपैठियों से देशवासी महिलाओं के मंगलसूत्र की रक्षा करने का भरोसा दिया है। हालाँकि, विपक्ष भी मंगलसूत्र पर अपनी सोच के मुताबिक सत्ता पक्ष पर हमला कर रहा है। इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भरी जनसभाओं में समाजवादी पार्टी से साल 1990 में अयोध्या में बलिदान हुए कारसेवकों की विधवाओं के मंगलसूत्र को ले कर सवाल पूछा है।

ऑपइंडिया ने उन तमाम गुमनाम बलिदानी कारसेवकों में एक एक अन्य परिवार को खोज निकाला। प्रयागराज जिले के निवासी कमलाकांत पांडेय की विधवा का मंगलसूत्र भी 1990 के राम मंदिर आंदोलन में छिन गया था।

प्रयागराज के रहने वाले थे कमलाकांत पांडेय

ऑपइंडिया ने अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दौरान कई बलिदानी परिवारों को खोज कर उनके बारे में और वर्तमान हालातों को विस्तार से बताया था। उसी कड़ी में एक अन्य बलिदानी हैं कमलाकांत पांडेय। कमलाकांत पांडेय उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में थाना क्षेत्र नवाबगंज के निवासी थे। उनके गाँव का नाम खिदिरपुर है। यह गंगा नदी के किनारे बसा है, जो कि दांडी पुलिस चौकी क्षेत्र में आता है।

साथी संग अंतिम बार साथ में खाया था पान

प्रयागराज के कौड़िहार बाजार में बुदौना गाँव निवासी रामेश्वर प्रसाद उपाध्याय ने ऑपइंडिया से बात की। उनको ठीक से याद है कि बलिदान होने से 2 दिन पहले 28 अक्टूबर को ही कमलाकांत पांडेय अयोध्या कूच कर गए थे। अंतिम बार कमलाकांत पांडेय कौड़िहार बाजार में रामेश्वर उपाध्याय उर्फ़ लल्लू से मिले थे। दोनों ने एक साथ पान खाया था। इसके बाद कमलाकांत पांडेय विदा ले कर अयोध्या की तरफ निकल गए थे। रामेश्वर प्रसाद को ये नहीं पता था कि कमलाकांत से उनकी वो मुलाकात अंतिम साबित होगी।

कमलाकांत की पत्नी, न पति देख पाईं न राम मंदिर

ऑपइंडिया ने कमलाकांत के बेटे शिवभूषण पांडेय से बात की। उन्होंने बताया कि उनकी माँ का देहांत 2 साल पहले हो गया। अब 42 साल के हो चुके शिवभूषण के अनुसार, पिता के बलिदान के बाद उनकी माँ ने ही परिवार को सँभाला। परिवार में 3 बेटों और 2 बेटियों की जिम्मेदारी उनके सिर पर आ गई थी। घर चलाने के लिए उन्होंने आंगनबाड़ी की नौकरी की और इसके साथ खेतीबाड़ी भी सँभाली। कमलाकांत उत्तर प्रदेश होमगार्ड विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन बलिदान होने से कुछ समय पहले उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी।

कमलाकांत के घर की स्थिति अच्छी नहीं थी। चिंता में बलिदानी की विधवा को कैंसर हो गया। बीमारी ले कर वो काफी समय तक जिन्दा रहीं लेकिन आखिरकार राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा देखने से पहले ही 2022 में उन्होंने प्राण त्याग दिए। शिवभूषण बताते हैं कि उनकी माँ को मरने से पहले तक लगातार उम्मीद बँधी थी कि उनके पति लौट कर ज़रूर आएँगे। हालाँकि देहांत से पहले कमलाकांत की पत्नी अपने सभी बेटी-बेटों का शादी-ब्याह कर चुकीं हैं। उनके बच्चे खेती-बाड़ी और प्राइवेट काम कर के घर का गुजारा कर रहे हैं।

हर चौखट पर की फरियाद, कहीं नहीं हुई सुनवाई

कारसेवक कमलाकांत पांडेय अपने परिवार में 2 दिन बाद लौट आने का भरोसा दे कर गए थे। हालाँकि, वो फिर कभी लौट कर नहीं आए। जब वो नहीं लौटे तो उनकी पत्नी ने तमाम अधिकारियों की चौखट पर अपने पति के कुशल-क्षेम के लिए दौड़ लगाई पर उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई। कारसेवक के बेटे शिवभूषण ने हमें साल 1990 में DM (जिलाधिकारी) से ले कर तत्कालीन मुख्यमंत्री तक को भेजे गए पत्रों की प्रतियाँ दिखाईं। तब शिवभूषण महज 9 या 10 साल के थे पर उन्हें अपनी माँ का संघर्ष और आँसू ज्यों के त्यों याद हैं।

लाश भी नहीं देख पाया परिवार

शिवभूषण बताते हैं कि जब कुछ दिनों तक उनके पिता लौट कर नहीं आए तब अधिकारी उनकी माँ से कहने लगे कि उनके पति अब दुनिया में नहीं हैं। इसके बाद अपने पति का शव देखने और उनका विधिवत अंतिम संस्कार करने की चाह ले कर कमलाकांत की पत्नी कम से कम 20 बार अयोध्या गईं। यहाँ वो गली-गली, अस्पतालों के साथ नदी, तालाबों और श्मशान घाट के आसपास कई दिनों तक भटकती रहीं, पर उन्हें उनके पति न जीवित दिखे न उनका मृत शव मिला।

प्रयागराज से लगभग 150 किलोमीटर दूर अयोध्या आने-जाने के लिए कारसेवक की पत्नी के पास पैसे नहीं होते थे। वो कभी लोगों से उधार माँगती थी तो कभी कई-कई किलोमीटर पैदल चलती थीं।

राम-राम कहने पर मुँह में डाल दी गई थी लाठी

शिवभूषण पांडेय बताते हैं कि जब वो बड़े हुए तो उन्होंने अपने पिता के बारे में खुद से खोजबीन की। इस खोजबीन में उनको कुछ ऐसे रामभक्त मिले तो उनके पिता के जत्थे में कारसेवा करने गए थे। इन्हीं में से कुछ लोगों ने बताया कि 30 अक्टूबर 1990 को तमाम रामभक्तों के साथ कमलाकान्त भी राम-राम करते हुए जन्मभूमि की तरफ बढ़े थे। इसी दौरान पुलिस की वर्दी पहने कुछ लोगों ने जत्थे को रोका। इन्होंने राम का नाम न लेने की चेतावनी दी और जत्थे को रोक दिया। हालाँकि रुकने के बावजूद कमलाकांत राम-राम रटते रहे।

गोली मार कर घसीटी गई लाश

शिवभूषण ने बताया कि राम-राम कहने से नाराज पुलिस की वर्दी पहने लोगों ने उनके पिता के मुँह में लाठी खोंस दी थी। मुँह में लाठी डालने के बाद कमलाकांत से पूछा गया कि क्या फिर वो राम का नाम लेंगे। इसके जवाब में घायल कमलाकांत ने ‘हाँ’ कहते हुए सिर हिलाया। बताया गया कि इस से नाराज हो कर वर्दी पहने हथियारबंद कुछ लोगों ने कमलाकांत के सीने पर बंदूक रख कर गोली मार दी। घायल कमलाकांत वहीं छटपटाने लगे। घायल कमलाकांत को अस्पताल ले जाने के बजाय सड़क पर घसीटा गया और उनके जत्थे में शामिल अन्य लोगों में दहशत बनाई गई।

शिवभूषण आगे बताते हैं कि उनके पिता के जत्थे में शामिल लोगों ने अंतिम बार लाश को खाकी वर्दी पहने कुछ लोगों द्वारा घसीट कर ले जाते देखा। इसके बाद से कमलाकांत पांडेय को कभी किसी ने नहीं देखा। बलिदानी कारसेवक के परिजन यह मानते हैं कि उनके पूर्वज गुमनाम ढंग से राम के काम आ गए। राम मंदिर बनने से अपने परिवार और रिश्तेदारों को बेहद खुश बताते हुए शिवभूषण ने बताया कि ये कदम उनके पिता और माता की आत्मा को शांति देने वाला है।

मोदी और योगी को दिया धन्यवाद

कमलाकांत का एक बेहद सामान्य परिवार है। हाल ही में कच्चा घर से कर्ज आदि ले कर उनके बेटों ने पक्का मकान बनवाया है। यह परिवार हर दिन मेहनत करता है अगले दिन खाने के इंतजाम के लिए। माता और पिता की ही तरह यह परिवार बेहद धार्मिक है जो हर दिन पूजा-पाठ करता है। कमलाकांत के बेटे शिवभूषण पांडेय ने नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद करते हुए कहा कि उनकी ही वजह से उनके बलिदानी पिता का सपना पूरा हो पाया।

राहुल पाण्डेय: धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।