‘The Wire’ की पत्रकार आरफा खानम को लोगों ने समझाया जर्मनी-भारत का फर्क, कहा- हिटलर के विरोध के बाद…

आरफा खानम को फिर याद आया 'हिटलर'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर से करना हमेशा से ही लिबरलों का पसंदीदा टॉपिक रहा है और जो कोई भी ‘सेकुलर लिबरलों’ के इस विचार से असहमत होता है, उसे ‘नाजी एनबलर’ (Nazi enabler) करार दे दिया जाता है। पीएम मोदी ने 2014 के अपने दूसरे कार्यकाल में प्रचंड बहुमत और बड़े जनादेश के साथ वापसी की। इसके बाद से बयानबाजी और भी ज्यादा बढ़ गई है।

https://twitter.com/khanumarfa/status/1216353306529927168?ref_src=twsrc%5Etfw

द वायर की पत्रकार आरफा खानम शेरवानी ने रविवार को ट्विटर पर लिखा, “1930 के नाजी जर्मनी और वर्तमान समय के भारत के बीच क्या अंतर है?”

https://twitter.com/Shonkho/status/1216425709696094211?ref_src=twsrc%5Etfw

एक ट्विटर यूजर ने 1930 के जर्मन और अभी के भारत के बीच का अंतर बताते हुए लिखा, “1930 के जर्मनी में सरकार का विरोध करने के बाद एक दिन भी जिंदा नहीं बचती, जबकि 2020 के भारत में तुम सरकार की छवि को लगातार धूमिल कर रही हो।”

हालाँकि नेटिजन्स ने उनकी जिज्ञासा को शांत करने में भरपूर मदद की। उन्होंने आरफा को न केवल यह बताया कि उनका इस तरह से तुलना करना त्रुटिपूर्ण है, बल्कि उन्होंने वामपंथी पत्रकार को यह भी समझाया कि कैसे भारत नाजी जर्मनी के एकदम विपरीत है।

https://twitter.com/LiberalHermes/status/1216357201146720256?ref_src=twsrc%5Etfw

शशांक नाम के एक अन्य यूजर ने आरफा की जानकारी को सही करते हुए लिखा कि जर्मनी के लोग विरोध नहीं कर सके। जैसे ही उन्होंने इसका प्रयास किया, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि भारत में अभी भी लोकतंत्र है। संविधान आपको विरोध करने का अधिकार देता है। भारत और जर्मनी के बीच समानताएँ दर्शाना मूर्खता है।

कुछ लोगों ने उन्हें यह भी बताया कि कैसे भारत में दूसरे समुदाय का डर निराधार है।

https://twitter.com/Singh2639/status/1216381166187499520?ref_src=twsrc%5Etfw

वहीं कुछ लोगों ने जर्मनी के यहूदियों की दुर्दशा और सर्वनाश की तुलना भारत के अल्पसंख्यकों से करना अपमानजनक बताया। क्योंकि भारत के अल्पसंख्यक न केवल यहाँ सुरक्षित हैं, बल्कि समान अधिकार का भी लाभ उठा रहे हैं और कभी-कभी तो ये समान अधिकार से भी अधिक लाभ उठा लेते हैं।

https://twitter.com/arifaajakia/status/1216378779024707585?ref_src=twsrc%5Etfw

एक यूजर ने दोनों के बीच के अंतर बताते हुए लिखा, “1930 के जर्मनी में विपक्ष और अल्पसंख्यक कंसंट्रेशन कैंप में रहते थे, जबकि भारत में आप जैसे अल्पसंख्यक नेशनल टीवी पर नफरत फैलाते हो और पेरिस में छुट्टियाँ मनाते हो, न कि कंसंट्रेशन कैंप में।”

https://twitter.com/bjplao/status/1216378514795925505?ref_src=twsrc%5Etfw

एक अन्य यूजर ने लिखा, “आंटी जर्मन तानाशाह से किस बेस पर भारत के चुने हुए लोकप्रिय प्रधानमंत्री की तुलना कर रही हो? आंटी 1930 पर पहुँच गई 1975 याद नहीं? जब पत्रकारों सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में ठूँस दिया, क्या आपने कभी 1975 इमरजेंसी लगाने वाली प्रधानमंत्री की तुलना जर्मनी के तानाशाह से की?”

https://twitter.com/BasantA49182115/status/1216356968077545475?ref_src=twsrc%5Etfw

एक ने लिखा, “जिस दिन फर्क समझ में आ जाएगा उस दिन सही मायने में पत्रकार बन जाओगी जेहादन बी।’ एक अन्य ने लिखा, “मोहतरमा जितनी आलोचना वामी और आप जैसे लोग मौजूदा सरकार की करते हैं और सुरक्षित हैं और मुक्त हैं यह अंतर हैं और मोहतरमा नाजी सरकार तक ना जाएँ इंदिरा गाँधी की आलोचना करने वालों का हश्र याद कर लें।”

https://twitter.com/RajivPa64534116/status/1216355570128687110?ref_src=twsrc%5Etfw

ट्विटर यूजर ने यह भी बताया कि शायद भारत में एकमात्र घटना, जिसकी कुछ हद तक यहूदियों के सर्वनाश से तुलना की जा सकती है, वो है इस्लामियों द्वारा कश्मीरी पंडितों का पलायन। इस्लामियों ने 1990 के दशक में घाटी में रेप किया, हत्या किया और कश्मीरी पंडितों को उनके घर से भगा दिया। या फिर 1984 का वो सिख विरोधी दंगा। जहाँ कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं ने इंदिरा गाँधी की हत्या का बदला लेने के लिए सिखों का नरसंहार कर दिया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया