बाबा का ढाबा: बूढ़े दंपति की आँखों में आँसू देख मदद को उमड़े लोग, लौट आई खुशी

मालवीय नगर स्थित 'बाबा का ढाबा' पर मदद को उमड़े लोग

पिछले एक दो दिनों से सोशल मीडिया पर एक बूढ़े दंपति का वीडियो खूब चर्चा में है। जितना चर्चा में रहा उतना ही लोगों ने उस वीडियो पर संवेदना जताई और उस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। दंपति दिल्ली स्थित मालवीय नगर में एक छोटा सा ढाबा चलाते हैं और उस पर सामान्य भोजन देते हैं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दोनों बेहद भावुक और असहाय नज़र आ रहे हैं।  

https://twitter.com/iashutosh23/status/1313856719051603968?ref_src=twsrc%5Etfw

दरअसल, वृद्ध दंपति आर्थिक तंगी के दौर से गुज़र रहे हैं और किसी इंटरनेट यूज़र ने उनका वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर साझा कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ बूढ़े दंपति के लिए मदद माँगने का सिलसिला, जिसके तहत सोशल मीडिया पर मौजूद लाखों लोग वीडियो साझा करते हुए उनकी मदद के लिए आगे आए। एक ही दिन के भीतर बूढ़े दंपति का वीडियो लाखों करोड़ों तक पहुँच गया। बहुत से लोगों ने उनका निजी तौर पर सहयोग किया जिससे उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में ग्राहक मिलें। 

https://twitter.com/ThePlacardGuy/status/1313912834720317440?ref_src=twsrc%5Etfw

गुरूवार (8 अक्टूबर 2020) की सुबह तक बहुत से लोग मदद के लिए खुद मालवीय नगर स्थित उनके ढाबे पर पहुँचे। आम लोगों ने इस घटना के ज़रिए साबित कर दिया कि इंसानियत पर भरोसा बरकरार रहना चाहिए। जहाँ एक तरफ यह घटना संवेदना और सहयोग की मिसाल है वहीं इस पर हमें आत्म चिंतन करने की भी आवश्यकता है। हमारे घर और मोहल्लों के आस-पास इस तरह के तमाम ‘बाबा का ढाबा’ होंगे, शायद यही सही समय है उन तक पहुँचने का। 

पड़ोस की कोई आम दुकान ही क्यों न हो? उसमें कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर होगा जो प्रतिदिन हमारे इस्तेमाल में आता है। चीन से फैले कोरोना वायरस ने हम सभी को बुरी तरह प्रभावित किया है, इस मुश्किल दौर में सभी संघर्ष कर रहे हैं। बहुत से लोगों का व्यापार बंद हो चुका है, बहुत से लोगों की नौकरियाँ छूट गई हैं। सभी के लिए हालात सामान्य नहीं हैं। ऐसे में यह सबसे सही समय है पड़ोस के उन अंकल के पास जाने का जो साइकिल पर छोले-भठूरे बेचते हैं या पड़ोस में इडली बेचने वाले कोई अंकल। छोटी से छोटी चीज़ों के हमारे आस-पास मौजूद चीज़ें, हम वहाँ जा कर उनकी मदद कर सकते हैं। 

भले कोरोना वायरस के चलते हालात बदतर ही क्यों न हों अगर सालों नहीं तो हालात सामान्य होने में महीनों लगने ही वाले हैं। यह भी हो सकता है कि हालात पहले की तरह होना इतना आसान भी न हो, जब से मास्क हमारे लिए सामान्य इकाई बना है। महामारी ने हमें एक चीज़ सिखाई है कि जीवन पूरी तरह अप्रत्याशित है। हमारी तरफ से की गई मदद की छोटी सी कोशिश भी बहुत कुछ बदल सकती है। महामारी के इस मुश्किल दौर से अगर कोई चीज़ हमें बाहर निकाल सकती है तो वह सिर्फ हमारी दयालुता ही है। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया