‘घर आ जाओ राम… क्षमा कर दो हमारी वो भूल… कैकयी ने 14 बरस का वनवास दिया, हमने 37 साल ताले में रखा’

भगवान राम के लिए मनोज की कविता

राम मंदिर निर्माण की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, हर कोई राम-भक्ति के माहौल मे लीन होता दिख रहा है। वैसे तो सोशल मीडिया पर आए दिन भगवान राम और राम मंदिर के ऊपर कई कविताएँ, कई नारें, कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं। मगर, इनमें कुछ कविताएँ ऐसी भी होती हैं, जिन्हें बार-बार सुनने की इच्छा करे। 

कुछ ऐसी ही रचना गीतकार, लेखक और कवि मनोज मुन्तशीर ने की है। इस कविता का शीर्षक है ‘घर आ जाओ राम’।

https://twitter.com/manojmuntashir/status/1356465069278646272?ref_src=twsrc%5Etfw

बता दें कि गीतकार मनोज ने अपनी इस रचना को वीडियो रूप में प्रस्तुत किया है। पीछे उनकी आवाज सुनाई दे रही है। इसे ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा, “’हमने वो सूरज अँधेरे में फेंक दिया, जिसने पूरी सृष्टि को उजाले में रखा… कैकयी ने तो सिर्फ़ 14 बरस का वनवास दिया था, हमने 37 साल तुम्हें ताले में रखा।”

वीडियो मे देख सकते हैं कि राम भक्त, राम मंदिर और राम चित्रण को दर्शाया गया है। इसमें वह कहते सुनाई पड़ते हैं:

आसमानों से झाँकते तुमने कई सदियाँ गुजार दीं, अब धरती को बना लो अपना धाम…
घर आ जाओ राम… पधारो अपने निवास में और क्षमा कर दो हमारी वो भूल
जो अंकित है इतिहास में…

हमने वो सूरज अंधेरे में फेंक दिया, जिसने पूरी सृष्टि को उजाले में रखा…
कैकयी ने तो सिर्फ़ 14 बरस का वनवास दिया था, हमने 37 साल तुम्हें ताले में रखा। हम वचन देते हैं तन मन और प्रण से…
तुम्हारा घर बनाएँगे… बड़े शौक और बड़ी शान से…
दीवारें इतनी मजबूत कि भेदभाव का रावण भेद न पाए… दरवाजे इतने ऊँचे कि ऊँच नीच के दानव से लाँघा न जाए।

तुम्हारा शयन कक्ष वहाँ होगा, जहाँ किसी बेबस की सिसकियाँ नींद में भी सुनाई दें…
और तुम्हारी छत इतनी खुली होगी कि तीज का चंद्रमा और ईद का चाँद दोनों दिखाई दे…
तुम्हारी खिड़कियों पर बैठे परिंदे दोहराएँगे विश्व शांति की सरगम… महल के प्रवेश द्वार पर लिखा होगा वसुधैव कुटुंबकम!

एक आँगन भी होगा। वहाँ बैठ कर गाए जाएँगे कीर्तन भजन और खड़े होकर जण-गण-मण…
तुम्हारी प्राचीरों पर जलती मशालें मौन घोषणाएँ करेंगी कि अब किसी का छप्पर फूँका न जाए…
सीता की रसोई भरी होगी अनाज और अनुराग से ताकि राम की चौखट से कोई भूखा न जाए।

हमने रख दिया तुम्हारे भवन की नींव का पहला पत्थर…
अब और न सताओ धनुरधर…
अनगिनत केवट, शबरी और सीताओं को प्रतीक्षा है तुम्हारी…
घर आ जाओ मेरे राम…मेरे मंगल भवन अमंगलहारी।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया