कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी की फुलटाइम ट्रोल और पार्ट टाइम अभिनेत्री मोना अम्बेगाँवकर ने ट्विटर पर एक सूची बनाई है। यह सूची इस बात को लेकर बनाई गई है कि अगर भविष्य में उन्हें भारत का अगला प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलेगा, तो वो क्या-क्या करेंगी।
मोना अम्बेगाँवकर को अभिनेत्री के रूप में पहचाना जाना पसंद है। वह कहती हैं कि सबसे पहले वह सत्ता के हर पद से हर उस शख्स को बाहर निकालेंगी, जिनके पास संघी प्रभाव हो सकते हैं। मोना का कहना है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर प्रतिबंध लगाएँगी और अगले पीएम बनने का मौका मिलने पर सभी संघियों को जेल में डाल देगी।
मोना अम्बेगाँवकर ने यह बातें वामपंथी कार्टेल के एक अन्य स्थायी सदस्य मेघनाद के ट्वीट का जवाब देते हुए कहा था। बता दें कि मेघनाद वामपंथी वेबसाइट न्यूजलॉन्ड्री के एक स्तंभकार हैं। इन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर ट्विटर पर पूछा था, “यदि आप भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं, तो आप पहली चीज क्या करेंगे?”
https://twitter.com/Memeghnad/status/1306818973392990208?ref_src=twsrc%5Etfwयह एक निर्विवाद तथ्य है कि जो चीज इन तथाकथित वामपंथी ‘उदारवादियों’ को एक साथ बाँधती है, वह है मोदी और उनका समर्थन करने वाले सभी लोगों के लिए उनकी नफरत। और चूँकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी हैं और राष्ट्रीय नीति पर प्रभाव रखते हैं, इसलिए यह संगठन और इससे जुड़े लोग भी लिबरलों के निशाने पर रहते हैं।
शायद यही कारण है कि कॉन्ग्रेस और AAP की हमदर्द मोना अम्बेगाँवकर ने फर्जी खबरों को फैलाने के लिए वामपंथी गिरोह में शामिल हो गई कि कंगना रनौत बिहार चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार करेंगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि कंगना रनौत प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करती हैं और काफी मुखर हैं। इससे पहले भी, इस वामपंथी कार्टेल के दोनों स्थायी सदस्य- मोना और मेघनाद इंडिगो उड़ानों पर अर्नब गोस्वामी के प्रति प्रोपेगेंडिस्ट कुणाल कामरा के बुरे व्यवहार का समर्थन करने के लिए ब्रिगेड में शामिल हुए थे।
तत्कालीन कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने 2019 आम चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता में आने के बाद आरएसएस पर संभावित कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए थे। उन्होंने आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड नामक एक आतंकवादी संगठन से की थी, जिसके खिलाफ सरकारी कार्रवाई चल रही है।
इस सबसे पता चलता है कि लिबरलों को उन लोगों पर नकेल कसने में कोई परहेज नहीं है जिन्हें वे अपनी सत्ता के लिए खतरा मानते हैं। वे पहले गालियों का एक अभियान चलाते हैं और फिर जब इसके लिए जमीन तैयार होने के बाद उपयुक्त अवसर पैदा होता है, तो राजनीतिक विरोधियों पर कठोर कार्रवाई की जाती है। आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने भी यही किया था। इसलिए, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और ‘संघियों’ पर क्रूर हमले की आशंका एक स्थायी संभावना बनी हुई है।