केदारनाथ फिल्म से एक्ट्रेस के रूप अपनी पहचान बनाने वाली सारा अली खान ने सोमवार को अपने इंस्टाग्राम पर गणपति के साथ एक फोटो शेयर की। इस तस्वीर के नीचे उन्होंने गणपति बप्पा मोरया लिखते हुए लोगों को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ दी और उनके अच्छे स्वास्थ्य-भविष्य की कामना की।
https://twitter.com/iAnkurSingh/status/1168568560915927043?ref_src=twsrc%5Etfwयह पोस्ट और शुभकामना देने का तरीका बहुत ही आम था। लेकिन विशेष समुदाय के लोगों की भावना इससे आहत हो गई और वह सारा से सोशल मीडिया पर ही गाली-गलौच पर उतर आए। इन लोगों ने सारा के मजहब पर अपना दुख प्रकट किया और उन्हें जमकर ज्ञान दिया।
किसी ने उनसे बहुत उदास मन से पूछा कि क्या वो वाकई समुदाय विशेष की हैं? तो किसी ने उन्हें समझाया कि वो पढ़ी-लिखी हैं, उन्हें समझना चाहिए भगवान कुछ नहीं कर सकता। इसलिए वो अल्लाह पर यकीन करें, क्योंकि अल्लाह सब कुछ दे सकता है, बस उसपर यकीन बनाने की जरूरत हैं। एक शांतिदूत ने तो सारा से सवाल भी किया कि ये मिट्टी का बुत क्या कर सकता है? और जब इतने पर भी मन नहीं भरा तो केवल गणपति के साथ खड़े होने पर उन्हें गंदी-गंदी गाली दे डाली गई।
अब सोचने वाली बात है…सारा अली खान ने ऐसी क्या गलती की थी कि उन्हें मजहब विशेष के बंधुओं द्वारा ट्रोल किया जाने लगा और सबसे बड़ी हैरानी की बात कि किसी भी लिबरल गिरोह के व्यक्ति ने इस अभद्रता पर सवाल नहीं उठाए। उन्हें गंदी-गंदी गालियाँ दी गई लेकिन किसी भी लिबरल चेहरे को ये याद नहीं आया कि सारा भी एक धर्मनिरपेक्ष देश की नागरिक हैं, उनके हिस्से भी कुछ मानवाधिकार आते हैं, उनके पिता भले ही मजहब के हैं, लेकिन उनकी माँ अमृता सिंह हिंदू हैं। उनका तो अधिकार है कि वो जितना अल्लाह को मानें उतना हिंदू भगवानों के प्रति भी समर्पित रहे। फिर क्यों ओछी हरकत पर आँखे बंद कर ली गई? आखिर क्यों कमेंट से हेडलाइन बनाने वाले दौर में सारा के सोशल अकाउंट पर किसी की नजर नहीं गई?
हिंदू की संलिप्तता देखते ही हर विषय की बखिया उधेड़ देने वाले लिबरलों ने आखिर समुदाय विशेष को इतनी आजादी क्यों दी है कि वे किसी के धर्म और भगवान के बारे में अपशब्द बोले और उनके औचित्य पर सवाल उठाए।
हम मानें चाहे न मानें लेकिन बीते कुछ सालों में सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चला है। जिसके मुताबिक अगर आप हिंदू हैं और अपने धर्म के बारे में नियमित कुछ न कुछ लिखते, पढ़ते और बोलते हैं तो आप असहिष्णुता और कट्टरता का चेहरा हैं। वहीं अगर आप विशेष मजहब से हैं और सोशल मीडिया पर गंद भी परोस रहे हैं तो आप देश का वो अल्पसंख्यक चेहरा हैं, जो बेचारा खुद के अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहा है। उसे अधिकार है कि वो खुद के मजहब को बचाने के लिए किसी के भी धर्म-त्योहारों को गाली दे।
एक देश के दो समुदायों के लिए ये विशेष परिभाषा गढ़ने वाला कोई और नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर पसरा लिबरल मीडिया गिरोह है। जो एक समय तक लुप्त था लेकिन अब वह खुलकर एक पटल पर एक साथ है। इस मीडिया गिरोह की खास बात है कि अगर किसी घटना में हिंदू शामिल है तो वो घटना के आखिरी तह तक तफ्तीश करेंगे और किसी भी रूप में हिंदू को खतरे का चेहरा बता देंगे। लेकिन वहीं अगर एक निश्चित समुदाय का व्यक्ति अपने कुकर्मों पर लताड़ा जाए तो इनकी इंसानियत और मानवता जाग पड़ती है। ये न केवल उसके लिए अपनी संवेदनाएँ प्रकट करते हैं, बल्कि उसकी मानसिकता को अपने पोर्टल और अपनी खबर का हिस्सा बनाने से भी बचते हैं।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। जब भी समुदाय विशेष के सेलिब्रिटी ऐसा कुछ करते हैं जिसे सेक्युलर कहा जा सके तो उन्हें इस तरह सोशल मीडिया में जलील किया जाता है। न केवल गंदी-गंदी गालियॉं दी जाती हैं, बल्कि रेप तक की भी धमकी देने से समुदाय विशेष के लोग गुरेज नहीं करते।