‘हिन्दू फासिस्ट’ से लिबरल-दुलारी हुई शिव सेना, उद्धव बने आँख के तारे: ‘मीडिया गिरोह’ ने जमकर उड़ेला प्यार

इत्ती इज्जत मेरे अक्खे खानदान को नई दिया होगा तुम लोग, जितना मुझे एक घंटे में दे दिया

हमारे समय की राजनीति किस तरह से नरेंद्र मोदी और भरतीय जनता पार्टी के पक्ष और विपक्ष पर शुरू और खत्म हो रही है, आज (8 नवंबर, 2019 को) शाम ट्विटर इसकी नज़ीर बन गया। कल तक जो शिव सेना ‘कट्टर हिंदूवादी’ की छवि के नाम पर लिबरल गैंग की दुश्मन थी, भाजपा से अलग होते ही लिबरल गैंग की डार्लिंग हो गई। जो उद्धव ठाकरे एक फ़ासिस्ट पार्टी के प्रमुख थे, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना साधते ही ‘शेर’ की उपाधि से नवाज़े जाने लगे।

यहाँ तक कि गोलवलकर-सावरकर के समय के संघ और आडवाणी काल की भाजपा से भी अधिक नफरत मीडिया गिरोह जिन बाला साहेब ठाकरे से करता था, महज़ इसलिए कि कुछ हिन्दू उन्हें ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ कहते थे और वह कश्मीरी पंडितों और राम मंदिर के समर्थक थे, अचानक से वह भी याद किए जाने लगे। उद्धव ठाकरे के विशुद्ध राजनीतिक दाँव और उनकी ‘रैंटिंग‘ अर्थात भड़ास की पीठ थपथपाई जाने लगी कि बाला साहेब की ‘छवि’ दिख रही है उद्धव में।

सबसे ज़्यादा खुश स्वाति चतुर्वेदी नज़र आईं जिनकी खुशी ताबड़तोड़ ट्वीट पर ट्वीट में बहती नज़र आई। उद्धव को ‘सॉफ़्ट स्पोकन’ से लेकर ‘शेर’ तक बता डाला। बताने लगीं कि उद्धव ने दिखा दिया कि भाजपा और उसके अध्यक्ष अमित शाह का मुकाबला कैसे किया जाना है। और यह भूल गईं कि इनकी लिबरल गैंग विचारधारा में हिन्दू हितों के पैरोकार होने के चलते उद्धव भी उतने ही अस्पृश्य हैं जितने कभी भाजपा और संघ रहे थे और जिसके बारे में वाजपेयी ने ‘राजनीतिक अस्पृश्यता’ शब्द ईजाद किया था।

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स्वाति चतुर्वदी का आज बस चलता तो वे राहुल गाँधी समेत विपक्ष के नेताओं को उद्धव के निवास ‘मातोश्री’ में ट्यूशन लेने भेज देतीं।

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सागरिका घोष की ख़ुशी ट्विटर पर बल्लियों उछल कर बाहर आ रही थी। वे शायद वह समय भूल गईं जब उनके लिबरल गैंग ने इन्हीं उद्धव ठाकरे के पिता को हत्यारा, फासिस्ट और न जाने क्या-क्या कहा था।

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यही हाल स्वाति चतुर्वेदी का भी था। वे न केवल उद्धव की शान में एक के बाद एक कसीदे पढ़ रहीं थीं, जैसे कि मानो उद्धव सेक्रेड गेम्स 2 के अंत में सैफ अली खान के किरदार की जगह न्यूक्लियर बम डिफ्यूज करने के लिए रुक गए हों, बल्कि उनकी बाला साहेब से तुलना भी तारीफ़ के ‘सेंस’ में कर रहीं थीं।

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बीबीसी वाले खांडेकर जी ‘अलग एंगल’ निकालने के चक्कर में 280 कैरेक्टरों के ट्वीट में एक ही साथ उद्धव के बर्ताव को सही साबित करते, क्योंकि कथित तौर पर बाला साहेब ठाकरे भी ऐसे ही करते थे, और इसे भाजपा के पिछले 5 साल के न जाने कौन से दुर्व्यवहार का ‘दंड’ बताते नज़र आए।

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अभिसार शर्मा की तो ख़ुशी इतनी ज़्यादा थी शायद कि विह्वल होकर उनके मुखण्डल से शब्द ही नहीं फूटे। सो स्वाति चतुर्वेदी को केवल एक मूक रीट्वीट देने में वे बुक्का फाड़कर दिवाली मनाते दिखे।

अशोक स्वाइन (जिनके नाम की स्पेलिंग में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है, बाला साहेब की कसम!) की सूई अमित शाह के आगे ही नहीं बढ़ी, वहीं मर्या शकील एक तरफ महायुति की मैरिज काउंसिलिंग करने लगीं, और दूसरी ओर उसी के साथ सेना-एनसीपी-कॉन्ग्रेस का ‘संयुक्त परिवार’ की बाट भी साथ में जोहना चालू कर दिया।

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