‘नमामि गंगे’, गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों की रक्षा के लिए अग्रणी अभियान में से एक है। 2014 में मोदी सरकार ने एक साहसिक कदम उठाया और गंगा नदी के लिए एक अलग मंत्रालय बनाया। गंगा के लिए मंत्रालय जो गंगा और उसकी सहायक नदियों की शुद्धता और निर्मलता को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रित था। यह गंगा नदी की रक्षा के लिए एक सहयोगी और वैज्ञानिक पहल है।
यह नदी के तट के पास सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के निर्माण को शामिल करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि सभी गंदे नाले जो नदी की धारा में गिरते हैं, उन्हें अच्छी तरह से शुद्धिकरण करके ही नदी में प्रवाहित किया जाना चाहिए। अपने अपशिष्टों को सीधे नदी में डालने वाले उद्योगों के लिए एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ETP) स्थापित किए गए हैं। जहाँ गंदे जल को शुद्ध करने के बाद ही गंगा में प्रवाहित करने का सख़्त आदेश है। गंदे नाले से अभिप्राय उन बड़े नालों से है जिससे करोड़ों लीटर कचरा नदी में सीधा गिरा दिया जाता है।
पिछले 3-4 वर्षों में कई नए STP और ETP की स्थापना की गई है। ये जहाँ से गंगा गुजराती हैं, उन शहरों के अलग-अलग हिस्सों में, बंद पड़े प्लांट को फिर से चालू किया गया है या नए स्थापित किये गए हैं। उत्तराखंड से शुरू करके कोलकाता तक कई ऐसे ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किये गए हैं। हाल ही में कानपुर में सबसे बड़े गंदे नाले को चिन्हित किया गया है, जो लाखों लीटर सीवेज को सीधे गंगा की धारा में प्रवाहित करता था। वाराणसी में तीन नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) शुरू किए गए हैं।
कई ऐसे उद्योगों पर जो गंगा में कचरा सीधे प्रवाहित करते थे, प्रतिबंधित किया गया है। यही कारण है कि अभी कुछ महीने पहले तक लोगों ने इस मंत्रालय के अस्तित्व और प्रोजेक्ट के लिए स्वीकृत बजट पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। लोग ये नहीं समझ पा रहे हैं कि सीधे नदी की सफ़ाई करने से पहले उसमें करोड़ों लीटर गिरते हुए कचड़े को रोकना, उसे दूसरी तरफ़ मोड़ना, उसे रसायनों एवं अन्य तरीकों से ट्रीट करना सबसे पहला कदम है। साथ ही, पहला कदम सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हो जाए तो नदी के पानी को साफ़ करना बेहद आसान हो जायेगा। इसी क्रम में दूसरा कदम गंगा की सहायक नदियों में मिलने वाले गंदे नाले को रोकना और ट्रीटमेंट प्लांट की मदद से उनका परिष्करण करना है।
गंगा नदी की सफाई को एक बड़ा बढ़ावा मिला जब कानपुर में इंजीनियरों को आखिरकार सीसामऊ नाले से निकलने वाले कचरे से छुटकारा मिला, इसे जाजमऊ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में बदल दिया गया है। इस नाले को एशिया का सबसे बड़ा और लगभग 128 साल पुराना माना जाता था। इस परियोजना के पूरा होने से नमामि गंगे परियोजना पर गहरा असर पड़ने की उम्मीद है।
एक जल निकाय को कुछ मापदंडों के आधार पर शुद्ध किया जा सकता है, जैसे विघटित ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), रासायनिक ऑक्सीजन की मांग (सीओडी), कुल निलंबित ठोस (टीडीएस), रंग, पीएच, विद्युतीकरण और विघटित ठोस पदार्थ (टीडीएस)। सामान्य रूप में हम सभी जानते हैं कि ऑक्सीजन जलीय जीवन के लिए या अन्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसके बिना हम आमतौर पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।
जल में ऑक्सीजन घुला हुआ है जिसका उपयोग विभिन्न जलीय जीवों द्वारा किया जाता है। इसलिए जब जल निकाय में ऑक्सीजन की कमी होगी तो पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) पर इसका व्यापक दुष्प्रभाव होगा। पूरा जलीय जीवन ही संकट में आ जायेगा। जल निकाय में सीवेज और अन्य औद्योगिक अपशिष्ट के घुले होने से ऑक्सीजन की कमी के कारण जीवित जलीय प्राणियों के लिए अस्वास्थ्यकर स्थिति बन रही है।
जब सीवेज से कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ नदी के संपर्क में आता है, तो सूक्ष्म जीव कचरे को क्षीण करने के लिए तेजी से विकसित होने लगते हैं। इसके लिए जल निकाय से ऑक्सीजन की माँग बढ़ जाती है क्योंकि जल में सीवेज या कार्बनिक घटक बढ़ जाता है। परिणामतः, अधिक रोगाणुओं, सूक्ष्म जीवों द्वारा ऑक्सीजन की और अधिक आवश्यकता पड़ जाती है और इस प्रकार जल में घुली हुई ऑक्सीजन के कम होने के कारण BOD (Biological Oxygen Demand) मान बढ़ता है।
यदि रासायनिक और जैविक दोनों घटक हैं तो अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी और ऐसा करने के लिए पानी में घुलित ऑक्सीजन का अधिक होना ज़रूरी है। इसे पानी की रासायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी) कहा जाता है। टीएसएस, पीएच जल निकाय में शुद्धता और ऑक्सीजन मूल्य को भी बदल सकता है।
‘नमामि गंगे’ अभियान के एक हिस्से के रूप में, सभी प्रामाणिक निकाय, विशेष रूप से प्रत्येक राज्य में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय निकाय, द्वारा लगातार सूचित करने के आदेश हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए इन मापदंडों का पालन किया जा रहा है या नहीं रूटीन चेकअप करने का निर्देश दिया गया है। ताकि, यह सुनिश्चित किया जा सके कि बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार कौन-सी पहल करने की आवश्यकता है। पिछले 6 महीनों की वैज्ञानिक जाँच के अनुसार, अब हम कह सकते हैं कि अभियान सही तरीके से चल रहा है, और गंगा जल की गुणवत्ता में व्यापक बदलाव आया है।