AAP की जीत के बाद भी तुम मुझे क्लीन चिट नहीं दे रहे, बंगाल हारने का डर है?: EVM का पत्र नेताओं को

ईवीएम ने खिन्न होकर विपक्षी नेताओं को लिखा पत्र

नमस्कार भाजपा विरोधी नेताओं,

अब अपने परिचय में विशेष क्या बताऊँ? मैं ईवीएम हूँ। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन। मेरे दो यूनिट हैं- कण्ट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट। कण्ट्रोल यूनिट को पोलिंग अधिकारी के पास रखा जाता है, वहीं बैलेट वाली यूनिट को मतदाताओं के लिए रखा जाता है। लेकिन, इन तकनीकी बातों से आपको क्या मतलब? आप तो नेता हैं न। आप तो मानते हैं कि मैं ब्लूटूथ से भी हैक कर ली जाती हूँ। कुछ दिनों बाद आप ये कहेंगे कि मुझे उँगलियों के इशारों से भी नचाया जाता है। मैं हार का ठीकरा हूँ। मैं जीत में गौण हूँ। फिर भी मैं मौन हूँ।

जब हार होती है तो नायक नहीं, खलनायक हूँ मैं। जब जीत होती है, तो मेरी चर्चा ही नहीं होती। मैंने देखा था आम आदमी पार्टी के नेताओं को। दो दिनों तक उनका नाटक देखा, जब मैं ‘स्ट्रांग रूम्स’ में बंद थी। संजय सिंह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के कई तरह के दावे कर रहे थे। कह रहे थे कि मुझमें छेड़छाड़ की गई है। केजरीवाल का एक नेता तो मेरे पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने लगा। उसने कहा कि मैं प्रेग्नेंट हूँ। अगर नार्मल डिलीवरी हुई तो AAP जीतेगी और ऑपरेशन हुआ तो भाजपा।

खैर, अरविन्द केजरीवाल जीत गए। किसी ने नहीं कहा कि मैं अग्निपरीक्षा पास कर गई हूँ। किसी ने नहीं कहा कि मेरे साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है। किसी ने नहीं कहा कि मैं निष्पक्ष हूँ। कैसे कहेंगे? वो इतने ‘असुरक्षित’ हैं कि उन्हें अगली बार अपनी हार का डर है, कइयों को अगले कुछ चुनावों में भाजपा की जीत का डर है। ऐसे में, मुझे पवित्रता का सर्टिफिकेट देकर वो भला एक मुद्दे को हवा में क्यों उड़ा दें? मुझे फिर दोष दिया जाएगा। मैं मानसिक रूप से इनके लिए तैयार हूँ। बिहार में, बंगाल में, असम में। कहीं भी ऐसा मौक़ा आ सकता है।

भाजपा नेताओं ने भी हार स्वीकार किया। हारे हुए नेताओं को करना ही चाहिए। मनोज तिवारी और अमित शाह ने मुझ पर ऊँगली नहीं उठाई। क्या आप सब भी ऐसा नहीं कर सकते? दिग्विजय सिंह मुझे रोज भर-भर के गालियाँ देते हैं। प्रशांत भूषण का नाम लूंगी तो कहीं वो सुप्रीम कोर्ट में न चले जाएँ। अरे हाँ, केस तो हुआ ही था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वीवीपैट तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए। मुझे तो वहाँ तक घसीटा गया। जब राफेल फेल हो जाता है, तब मुझ पर ठीकरा फोड़ा जाता है।

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नेताओं, दिल्ली विधानसभा में तो एक खिलौने को हैक कर के मुझे हैक करने का दावा किया गया। जब चुनाव आयोग ने मुझे हैक करने की चुनौती दी तो तय समयसीमा तक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वो सामने आ सके। हाँ, एनसीपी और सीपीएम जैसे दलों ने ज़रूर कोशिश की लेकिन अंत में वो भी बहाने बना कर निकल लिए। मैं वो हूँ, जिसके आसानी से हैक किए जाने की बात की जाती है लेकिन कर कोई नहीं पाता। बेइज्जती का जो डर है। आलम देखिए, जिन्होंने मुझे हैक करने का दावा किया था, आज वही मेरे कारण जीत का जश्न मनाने में मशगूल हैं।

संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, हर जगह बलि का बकरा मुझे ही बनाया जाता है। एक दिन पहले मुझे गालियाँ दी जाती हैं, अगले ही दिन मनपसंद परिणाम आते ही उन बातों को भुला दिया जाता है। इस बार मेरी लाज बच गई। चलिए, दिल्ली चुनाव को वणक्कम।

अनुपम कुमार सिंह: भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।