मोतीलाल नेहरू ने अपने पास बिठाकर लिखवाई थी तुलसीदास से रामचरितमानस, दिग्विजय सिंह की जानकारी अधूरी!

मोती लाल नेहरू की इस अप्रकाशित पुस्तक में और भी कई बड़े खुलासे हैं, जिसे गोदी मीडिया छुपाती रही

अभी इस घटना को बहुत समय नहीं हुआ है, जब हमने आपके सामने फैक्ट चेकर वेबसाइट फॉल्ट न्यूज़ से सत्यापित करने के बाद यह रहस्यमयी खुलासा किया था कि स्वयं श्री जवाहरलाल नेहरू ने ही आजादी के दौरान बाहुबली रॉकेट की छुच्छी में आग लगाई थी। इस खुलासे के ठीक एक साल बाद आज हम आपके सामने प्रसिद्ध ग्रन्थ रामायण के बारे में एक बड़ा तथ्य लेकर आए हैं, जिसके लिए समस्त राष्ट्र वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का आभारी है।

दूरदर्शन चैनल पर रामायण धारावहिक के पुनः प्रसारण के बाद लोकप्रिय नेता दिग्विजय सिंह ने आदत से मजबूर होकर ट्वीट कर बताया कि रामानंद सागर ने यह धारावहिक तत्कालीन प्रधानमंत्री और राहुल गाँधी के स्वर्गीय पिता राजीव गाँधी के कहने पर बनाया था, लेकिन यह जानकारी अधूरी है। दअरसल दिग्विजय सिंह यह तथ्य सबके सामने रखना भूल गए कि रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास को पंडित जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ने अपने पास बिठाकर लिखवाई थी।

कुछ फैक्ट चेकर्स अभी भी रामचरितमानस की उस प्रति की तलाश में हैं, जो मोतीलाल नेहरू ने स्वयं तुलसीदास से लिखवाई थी किन्तु कोरोना वायरस के कारण देशभर में चल रहे लॉकडाउन से घरों में कैद होने की वजह से फैक्ट चेकर समुदाय उसे ढूँढ पाने में नाकामयाब रहा है।

जब हमने दिग्विजय सिंह के ट्वीट का ‘रिवर्स फैक्ट’ चेक किया तो पाया कि उन्होंने अमुक कारणों से मोतीलाल नेहरू के योगदान को राजीव गाँधी के योगदान से कम करने के लिए यह तथ्य सार्वजनिक नहीं किया।

हनुमान नहीं बल्कि जवाहर को याद दिलाया था जामवंत ने भूला हुआ बल

मोतीलाल नेहरू ने ही गोस्वामी तुलसीदास को उन सभी जगहों के बारे में बताया, जहाँ-जहाँ भगवान राम अपने वनवास के दौरान गए थे। मोतीलाल नेहरू ने अपनी एक अप्रकाशित जीवनी में इस बात का जिक्र किया था कि वास्तव में जामवंत ने समुद्र किनारे जिस व्यक्ति को उनका बल याद दिलाया था, वह रामभक्त हनुमान नहीं बल्कि मोतीलाल नेहरू के पुत्र जवाहरलाल नेहरू थे। इसके बाद ही वो एडविना माउण्टबेटन के साथ क़्वालिटी समय बिताने के बजाए स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे।

मोतीलाल नेहरू की इस अप्रकाशित जीवनी में और भी कई बड़े खुलासे होने बाकी थे लेकिन इसके प्रकाशित न होने के कारण यह सामने नहीं आ सकी और ये राज भी उन्हीं के साथ चले गए। जिस कारण दिग्विजय सिंह नेहरू भक्तिधारा के ज्यादा गीत नहीं गा सके।

मारीच नहीं था स्वर्ण मृग

उल्लेखनीय है कि मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में तुलसीदास द्वारा लिखी गई इस रामचरितमानस में यह भी खुलासा किया गया है कि रावण ने जिस स्वर्ण मृग को सीता माता के पास भेजा था, वह मारीच नहीं बल्कि दिग्विजय सिंह नाम का कोई असुर सेनापति था, जिसका आभास होने पर ही भगवान राम ने उसे असली तीर मारा था।

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