अर्नब पर हमला न होकर रवीश पर होता तो नेशनल-इंटरनेशनल मीडिया में चलते ये 4 हेडलाइन

अर्नब पर हमला और रवीश की काली नहीं होती स्क्रीन ही है अभी की पत्रकारिता!

आज घर से दफ्तर अर्थात शयनकक्ष से अध्ययन कक्ष तक आते-आते एक गाँधी कीड़ा, एक वामपंथी मक्खी और एक जिहादी मच्छर पीछे पड़ गए। आपस में भिनभिनाने लगे और कहने लगे हमसे जो टकराएगा उसका हश्र अर्नब सा हो जाएगा।

मैंने उनसे संवाद करने की कोशिश कि चाहे कोई वामपंथी हो या दक्षिण पंथी, हैं तो सब पत्रकार ही। सबका पेशा तो एक ही है। आप नेहरू-ब्रांड के जिहादी-वाम हैं और बाकी आरएसएस-समर्थित आतंकवादी।

मेरी ये बात मानो उनको नस्तर की तरह चुभ गया हो। फिर क्या था तीनों पील पड़े मुझ पर! वामपंथी मक्खी भिनभिनाने लगी – तुम पत्रकार हो, तुम्हें इन सांप्रदायिक लोगों का पक्ष लेने का कोई हक़ नहीं। ये कहकर वो मुझे घर के एक कोने से दूसरे कोने तक खदेड़ने लगे।

गाँधी कीड़ा बिना खड्ग-ढाल की आज़ादी दिलाने का एहसान याद दिलाने लगा। जिहादी मच्छर बड़े ही चालाकी से संविधान और सेक्युलरिज़्म की महानता के कीर्तन से ब्रेनवाश करने में जुटा रहा।जब उन्हें लगा कि मैं ब्रेनवाश-इम्यून हो चूका हूँ तो उन्होंने अपना प्रॉपर-गन्दा मशीनरी का इस्तेमाल करना शुरू किया। फिर शुरू हुआ धमकियों का दौर- तुम अगर ऐसे ही खुलेआम हमारे खिलाफ बोलोगे तो तुम्हें कहीं नौकरी नहीं मिलेगी। तुम जानते नहीं हो हम कितने पावरफुल हैं, हम तुम्हारा करियर बर्बाद कर देंगे।

जब मैंने बड़ी विनम्रता से कहा कि साहब मैंने तो इसीलिए सालों पहले नौकरी ढूँढना बंद कर दिया था। अगर आप को रोज़ी रोटी चलाने के लिए नौकरी की आवश्यकता हो तो बताएँ! इस पर चिढ़कर तिलिस्मी-तिकड़ी ने मच्छर को मेरे ऊपर ‘लूला’ दिया।

मैं प्राण-रक्षार्थ कभी घर के इस कोने से उस कोने तक भागता रहा। मैं चाहता तो मच्छर को निमिषमात्र में मसल सकता था लेकिन उससे फासिस्ट कहलाने का खतरा और बढ़ जाता। रेप्यूटेशन रक्षार्थ, मैं सोसाइटी के गेट की ओर लपका, लेकिन ये डर लिए कि बाहर की दुनिया – जहाँ मच्छरों और वामों का बोलबाला है – मुझ को आक्रांता कहकर लाठी बरसाएगी।

हमारे पूर्वजों की सहिष्णुता एवं शांति-प्रियता को कायरता का जामा पहनाकर, हमें शोषित और प्रताड़ित कर हमें ही आक्रांता बताने का ये चलन अब ख़त्म होना चाहिए। और ख़त्म हो कर रहेगा। इस रक्त-पिपासु तिकड़ी को ये बात कब समझ आएगी कि इनके धृतराष्ट्र सी पक्षपात-पूर्ण दुर्नीति और दु:शासन-प्रेरित चरित्रहरण का चलन, एक आम व्यक्ति को भी जनता के नज़र में खास बना देता है।

राजनीति में इन्होंने ये गलती मोदी के साथ की और पत्रकारिता में अर्नब के साथ वही कर रहे हैं। मोदी आपकी दशकों से चले आ रहे प्रॉपर-गन्दा के दमपर आज देश का प्रधानसेवक बन बैठा है, और आप अर्नब को मीडिया का मोदी बनाए बिना मानेंगे नहीं।

सोसाइटी के गार्डन एरिया में बैठा मैं इन्हीं विचारों में खोया था उसी वक़्त न्यूटन जैसा एक ख़याली सेव सर पर आ गिरा – अच्छा अगर ये अटैक अर्नब पर न होकर रवीश पर होता तो क्या देश का चौथा स्तम्भ अब तक भरभराकर गिर नहीं गया होता? इंटरनेशनल मीडिया अब तक कलेजा-फाड़ चीख नहीं रहा होता?

वॉशिंगटन पोस्ट “जर्नलिस्ट्स आर बुचर्ड अंडर मोदीज़् हिन्दू-फासिस्ट रूल

न्यू यॉर्क टाइम्स “हिन्दू-टेररिस्ट अटैक इंडियाज़् टॉप जर्नलिस्ट्”

अल जज़ीरा: “मुस्लिम उम्मा मस्ट टेक इंडिया टू टास्क”

टीआरटी: “दिस इस द बिगिनिंग ऑफ़ मुस्लिम जेनोसाइड इन इंडिया”

और उसके बाद ये आर्टिकल ‘द वायर’ के थ्रू ‘द टेलीग्राफ’ तक पहुँचेगा, फिर ‘द प्रिंट’ के माध्यम से लोगों को ‘स्क्रॉल’ करने को उकसाएगा। कालांतर में उसको फिर ‘न्यूजलाउन्ड्री’ में धुला जाएगा और फिर ‘ऑल्टन्यूज़’ की मृगतृष्णा-मानिंद अग्निपरीक्षा के उपरांत ‘द हिन्दू’ में छप जाएगा।

अथ: श्री महाभारत कथा…

Sanjay Pandey: A Small-Towner| Dreamer| Roving Reporter| Editor-Entrepreneur.