जहाँ अभी अल-अक्शा मस्जिद, वहाँ पहले था यहूदियों का मंदिर: जानिए कहाँ से शुरू हुआ येरुशलम विवाद

जहाँ आज अल अक्सा मस्जिद है, वहाँ कभी यहूदियों का मंदिर था।

इजराइल-फिलिस्तीन के बीच जारी संघर्ष का कारण सीमा विवाद के साथ-साथ यहूदियों और फिलिस्तीनी मुस्लिमों के बीच हुआ धार्मिक विभाजन भी इसका प्रमुख कारण है। येरुशलम में जहाँ अल अक्सा मस्जिद है उसी स्थान पर टेंपल माउंट पर ही यहूदियों का सेकेंड टेंपल हुआ करता था।

येरुशलम यहूदी और इस्लाम दोनों धर्मों का पवित्र स्थल माना जाता है और यही दोनो के बीच विवाद की असली जड़ भी है। यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान टेंपल माउंट येरुशलम के पुराने शहर में है। टेंपल माउंट कॉम्प्लेक्स में ही अल-अक्सा मस्जिद है, जो इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है। इसके अलावा वेस्टर्न वाल में यहूदियों को पूजा करने की अनुमति है। वहीं पर डोम ऑफ द रॉक इस्लामी श्राइन है, जिसके गुंबद पर सोना मढ़वाया गया है।

खास बात ये है कि जिस स्थान पर आज अल-अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ द रॉक हैं, उसी जगह टेंपल माउंट पर पहले एक यहूदी मंदिर था। यह यहूदियों का पवित्र स्थल था, जिसे दूसरा मंदिर भी कहा जाता है। उस मंदिर को यहूदी विद्रोह की सजा के रूप में 70 ईस्वी में रोमन साम्राज्य ने नष्ट कर दिया था। सेकेंड टेंपल का निर्माण 516 ईसा पूर्व में कराया गया था।

यहूदियों के सबसे पवित्र स्थल सेंकेंड टेंपल की नींव का पत्थर वहीं पर स्थित हैं, जहाँ वर्तमान में डोम ऑफ द रॉक स्थित है। हालाँकि, यहूदियों को इसे देखने की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह इस्लामिक दरगाह के अंदर स्थित है।

टेंपल माउंट में यहूदियों के प्रवेश पर प्रतिबंध के कारण पश्चिमी दीवार यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है। यहाँ पर ये लोग पूजा कर सकते हैं। दूसरे यहूदी मंदिर के विस्तार का सबूत राजा हेरोड द्वारा बनाई दीवार के अवशेष हैं। इसके अलावा कई अन्य सबूत भी हैं, जिनसे ये स्पष्ट होता है कि टेंपल माउंट पर अल अक्सा मस्जिद के स्थान पर यहूदियों का मंदिर ही था।

टेंपल माउंट पर मंदिर के अस्तित्व की पुष्टि करने वाले सबूत

येरुशलम में 1871 में टेंपल माउंट पर दरबार के पास ग्रीक अक्षरों से लिखे एक पत्थर की खोज की गई थी। इस शिलालेख की पहचान फ्रांसीसी पुरातत्वविद चार्ल्स साइमन क्लेरमोंट-गनेउ ने मंदिर की चेतावनी के तौर पर की थी। पत्थर के शिलालेख में उन लोगों के लिए निषेध को रेखांकित किया गया था, जो यहूदी राष्ट्र के नहीं थे, इस शिलालेख में 7 लाइनें लिखी गई हैं।

येरुशलम का मंदिर की चेतावनी वाला शिलालेख

अनुवाद में लिखा है, “किसी भी विदेशी को मंदिर परिसर के चारों ओर के पैरापेट और मंदिर के विभाजित परिसर के भीतर प्रवेश न करने दें। अगर इसका उल्लंघन करते हुए कोई पकड़ा जाता है तो उसे मौत की सजा दी जाएगी।” वर्तमान में इस पत्थर को इस्तांबुल के प्राचीन वस्तुओं के संग्रहालय में संरक्षित किया गया है। इस शिलालेख में मंदिर के होने का दावा किया गया है। शिलालेख के एक कम अच्छी तरह से बने संस्करण का एक आंशिक टुकड़ा 1936 में जे.एच. इलिफ़ ने येरुशलम में लायंस गेट के बाहर नई खुदाई के दौरान पाया था। वह 1931-48 तक फिलिस्तीन पुरातत्व संग्रहालय के रक्षक थे। फिलहाल यह शिलालेख इजराइल के संग्रहालय में रखा गया है।

एक अन्य प्राचीन शिलालेख, जिसे ट्रम्पेटिंग प्लेस शिलालेख कहा जाता है, आंशिक रूप से टेंपल माउंट के दक्षिण-पश्चिम कोने के नीचे खोजे गए एक पत्थर पर उकेरा गया था। इसमें हिब्रू वर्णमाला में दो पूर्ण शब्द और तीसरा अधूरा शब्द दिखाता है। इसकी खोज पहली शताब्दी के इतिहासकार जोसीफस ने की थी।

इसके अलावा टेंपल माउंट के चारों ओर राजा हेरोड द्वारा बनाए गए गेट और दीवारें सेकेंड ज्यूज टेंपल का सबूत हैं। इन दीवारों और गेटों के अलावा पश्चिमी और दक्षिणी दीवार, रॉबिंसन आर्क व सोलोमन साम्राज्य के अवशेष इस बात के सबूत हैं।

भले ही येरुशलम शहर 1967 से इजराइल का हिस्सा है, लेकिन टेंपल माउंट पर स्थित इस्लामिक श्राइन का प्रबंधन येरुशलम इस्लामिक वक्फ द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, वर्तमान में इजराइली सरकार गैर-मुसलमानों को सुरक्षा के मद्देनजर उस क्षेत्र में घुसने से रोकती है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया