अगर आपने तबरेज का नाम सुना है और रंजीत का नहीं तो जान लीजिए ‘उनका’ एजेंडा कामयाब रहा

तख्तियाँ तभी निकलती हैं जब पीड़ित 'तबरेज' हो, आरोपित 'अनवर' हो तो यही तख्तियाँ छिपा दी जाती हैं

मॉब लिंचिंग भी आजकल 2 तरह की हो गई है- ‘अच्छी’ लिंचिंग और ‘बुरी’ लिंचिंग। ‘अच्छी’ लिंचिंग वह है, जिसमें आरोपित हिन्दू हों और मृत व्यक्ति मुस्लिम। ‘बुरी’ लिंचिंग वह है, जिसमें इसका उल्टा हो। ‘अच्छी’ मॉब लिंचिंग पर हंगामा खड़ा किया जाता है, सरकार पर सवाल उठाए जाते हैं और ‘डर का माहौल’ साबित करने की कोशिश की जाती है। वहीं ‘बुरी’ मॉब लिंचिंग की ख़बर किसी कोने में पड़ी होती है, जिसे लेकर कोई आउटरेज नहीं होता।

मुंबई में एक ड्राइवर को सिर्फ़ इसीलिए मार डाला गया, क्योंकि साज़िश के तहत अफवाह फैलाया गया कि वह चोर है। यह साज़िश एक दूसरे बस के ड्राइवर ने की। इस मामले में अनवर, उसका भाई मिंटू सहित 4 लोग गिरफ़्तार किए गए हैं। यह घटना महाराष्ट्र के पालघर स्थित बोइसर की है। वहाँ एक बस ड्राइवर ने दूसरे ड्राइवर को लेकर हंगामा किया कि वह चोर है और उसके बस की बैटरी चुरा रहा था। इसके बाद कुछ लोगों ने उसे मार डाला।

मृतक का नाम रंजीत पांडेय है। रंजीत को जब मारा-पीटा जा रहा था तब वह काफ़ी मिन्नतें करता रहा, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी। उसे 20 मिनट तक मारा-पीटा जाता रहा। उसके पेट और छाती पर लात-घूसों की बरसात कर दी गई। अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई, लेकिन मरने से पहले उसने घटना को लेकर अपने परिवार वालों को सब कुछ बताया। आपने किसी मानवाधिकार संगठन, विपक्षी नेता, कथित एक्टिविस्ट या फिर मीडिया के लोगों से कहीं भी रंजीत का नाम सुना क्या? आपने नहीं सुना।

आपने इसीलिए रंजीत का नाम नहीं सुना, क्योंकि उसकी मॉब लिंचिंग को लेकर किसी ने आवाज़ ही नहीं उठाई। क्यों नहीं उठाई? क्योंकि आरोपितों में मुस्लिम शामिल हैं। गिरफ्तार आरोपितों में से 2 के नाम अनवर और मिंटू है, जो भाई हैं। अगर इस पर आउटरेज किया जाएगा तो लोगों को यह भी बताना पड़ेगा कि आरोपितों में अनवर और उसका भाई है। अब यही मामला बिगड़ जाएगा। फिर ‘डर का माहौल’ वाला वातावरण कैसे साबित किया जाएगा?

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‘डर का माहौल’ तो हिन्दुओं द्वारा किसी मुस्लिम की ‘मॉब लिंचिंग’ के बाद बनता है न? यही कारण है कि आपने रंजीत का नाम नहीं सुना है, लेकिब तबरेज का नाम सुना है। चोरी करने के आरोप में झारखण्ड में भीड़ ने
तबरेज को मारा था जिसके कारण कथित तौर पर उसकी मौत हो गई। तबरेज का बदला लेने के लिए कई शहरों में हंगामे हुए। झारखण्ड के सरायकेला में ओवैसी की पार्टी के कुछ नेता पहुँचे और उन्होंने खुलेआम गुंडागर्दी की। महिलाओं के साथ बलात्कार करने की धमकियाँ दी गईं। गाँव में दहशत का माहौल बनाया गया और पुरुष घर छोड़ कर पलायन करने को मजबूर हुए।

इसी तरह दंगा भड़काने की साज़िश के तहत कुछ लोगों ने टिक-टॉक वीडियो बना कर कहा कि तबरेज को मारे जाने के बाद अगर उसका बेटा आतंकवादी बन जाता है तो फिर किसी को ये पूछने का हक़ नहीं होगा कि मुस्लिम आतंकवादी क्यों बनते? अभिनेता एजाज़ ख़ान ने भी आरोपितों का साथ दिया। लेकिन, कहीं भी सोशल मीडिया पर आपने रंजीत पांडेय को लेकर कोई वीडियो देखा क्या, जिसमें उनकी हत्या को लेकर सवाल पूछे गए हों? नहीं। तबरेज के नाम में ऐसा क्या था जो रंजीत के नाम में नहीं है?

इसी तरह राँची के अरगोड़ा थाना क्षेत्र के हरमू फल मंडी के पीछे शेखर राम और बसंत राम को चार स्थानीय लोगों ने पकड़ा और उन्हें मज़हबी नारे लगाने को मजबूर किया। धार्मिक नारे न लगाने पर उन दोनों को चाकू मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। एक की गर्दन पर चाकू मारा तो दूसरे के हाथ को लहुलूहान कर दिया। ये घटना भी तबरेज की मॉब लिंचिंग का बदला लेने के लिए हुई। जब तबरेज की मॉब लिंचिंग बड़ी ख़बर बनी तो उसका बदला लेने के लिए जो वारदातें हुईं, वो ख़बर क्यों नहीं बनीं?

झारखण्ड में भीड़ द्वारा तबरेज अंसारी की हत्या के विरोध में मालेगाँव में 1 लाख मुस्लिम सड़कों पर उतरे। ये सभी मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ कड़े क़ानून बनाने की माँग लेकर सड़कों पर उतरे थे। रैली के आयोजकों ने कहा था कि तबरेज का मारा जाना ‘फाइनल ट्रिगर’ है और अब विरोध का समय आ गया है। जहाँ तबरेज की हत्या के बाद सिर्फ़ एक क्षेत्र में 1 लाख लोग सड़कों पर उतरे, रंजीत पांडेय की लिंचिंग के ख़िलाफ़ कितनों ने धरना दिया? क्या सिर्फ़ उसी मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन किया जाएगा, जिसमें आरोपित हिन्दू हों?

तबरेज को शहीद का दर्जा तक देने की भी माँग की गई। मेरठ में भीड़ द्वारा मज़हबी टिप्पणियाँ की गईं और उन्मादी नारे लगाए गए। बदमाशों ने इंस्पेक्टर तक को नहीं छोड़ा। इंस्पेक्टर को सरेआम गिरेबान पकड़ कर धमकाया गया। इंस्पेक्टर का गला पकड़े जाने के बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा

लेकिन, रंजीत पांडेय की मॉब लिंचिंग को लेकर सवाल नहीं पूछे जाएँगे, क्योंकि आरोपितों में अनवर शामिल है। गिरोह विशेष का नैरेटिव यह कहता है कि अनवर नाम सिर्फ़ और सिर्फ़ पीड़ित हो सकता है, आरोपित नहीं। आरोपित तो वो होता है जिसके नाना के फूफा के नाती के साढ़ू का पोता बजरंग दल के किसी कार्यकर्ता के मौसेरा भाई के साले का भांजा हो। उनका नैरेटिव यह भी कहता है कि अनवर सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘बेचारा’ हो सकता है। अगर वह आरोपित है तो उस ख़बर को किसी कोने में पटक दो।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.