चित्रकूट का पर्वत जो श्री राम के वरदान से बना कामदगिरि, यहाँ विराजमान कामतानाथ करते हैं भक्तों की हर इच्छा पूरी

चित्रकूट का कामदगिरि पर्वत जो सभी दिशाओं से धनुषाकार दिखाई देता है [इनसेट में भगवान कामतानाथ] (फोटो : यूपी पर्यटन/ट्विटर)

भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान लगभग 11 वर्ष मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित चित्रकूट में गुजारे। इस दौरान उनके साथ अनेकों साधु-संतों ने चित्रकूट को ही अपनी साधना स्थली बना लिया। यही कारण है कि चित्रकूट एक प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है, विशेषकर भगवान राम से जुड़े हुए तीर्थ स्थानों में। हालाँकि चित्रकूट सबसे अधिक अपने उस विशेष मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ भगवान राम के ही स्वरूप कामतानाथ विराजमान हैं और जहाँ भक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। चित्रकूट का यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है कामदगिरि पर्वत की तलहटी में, जिसकी परिक्रमा करने के लिए देश के कोने-कोने से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना होता रहता है।

कामदगिरि की परिक्रमा की शुरुआत होती है, चित्रकूट के प्रसिद्ध रामघाट में स्नान के साथ। रामघाट, मंदाकिनी और पयस्वनी नदी के संगम पर स्थित है। यह वही घाट है, जहाँ भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। श्रद्धालु इसी घाट पर स्नान करके कामतानाथ मंदिर में भगवान के दर्शन करते हैं और कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा प्रारंभ करते हैं। यह परिक्रमा 5 किलोमीटर की है, जिसे पूरा करने में लगभग डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है।

पर्वत को मिला था भगवान राम से आशीर्वाद

त्रेतायुग में जब भगवान राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण सहित वनवास के लिए गए तो उन्होंने अपने 14 वर्षों के वनवास में लगभग साढ़े 11 वर्ष चित्रकूट में व्यतीत किए। इस दौरान चित्रकूट साधु-संतों और ऋषि-मुनियों की पसंदीदा जगह बन गया। इसके बाद भगवान राम ने चित्रकूट छोड़ने का निर्णय लिया।

उनके इस निर्णय से चित्रकूट पर्वत दुःखी हो गया और भगवान राम से कहा कि जब तक वो वनवास के दौरान यहाँ रहे, तब तक यह भूमि अत्यंत पवित्र मानी जाती रही लेकिन उनके जाने के बाद इस भूमि को कौन पूछेगा? इस पर भगवान राम ने पर्वत को वरदान दिया और कहा, “अब आप कामद हो जाएँगे और जो भी आपकी परिक्रमा करेगा उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाएँगी और हमारी कृपा भी उस पर बनी रहेगी।“ इसी कारण इसे पर्वत कामदगिरि कहा जाने लगा और वहाँ विराजमान हुए कामतानाथ भगवान राम के ही स्वरूप हैं। कामदगिरि की एक विशेषता है कि इसे कहीं से भी देखने पर इसका आकार धनुष की भाँति ही दिखाई देता है।

परिक्रमा मार्ग पर हैं अनेक प्राचीन मंदिर

कामदगिरि पर्वत के परिक्रमा मार्ग में कई प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित हैं। उनमें से एक है चरण-पादुका मंदिर या भरत मिलाप मंदिर। यह वही स्थान है, जहाँ भगवान राम के छोटे भाई भरत उन्हें अयोध्या वापस ले जाने के लिए आए थे लेकिन भगवान राम ने वनवास पूरा करना ही स्वीकार किया। इस पर भरत ने भगवान राम की चरण पादुकाएँ माँग ली थी और यह घोषणा की थी भगवान राम की अनुपस्थिति में राजसिंहासन पर ये चरण पादुकाएँ ही सुशोभित होंगी।

इसके अलावा परिक्रमा मार्ग में राम-मुहल्ला, साक्षी गोपाल मंदिर, पीली कोठी और मुखारबिंदु भी स्थित हैं। परिक्रमा मार्ग में कई प्रकार की वस्तुओं और खाने-पीने की दुकानें भी स्थित हैं। कामदगिरि पर्वत की प्रमुख विशेषता है कि यहाँ चार दिशाओं में कामदगिरि के घने जंगल से बाहर निकालने के लिए चार अलग-अलग द्वार बनाए गए हैं। 

कामदगिरि पर्वत और कामतानाथ मंदिर के अलावा चित्रकूट में सती अनुसुईया, लक्ष्मण पहाड़ी, हनुमान धारा, सीता रसोई और गुप्त गोदावरी जैसे पवित्र स्थान भी स्थित हैं। कामदगिरि का परिक्रमा मार्ग उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है या यूँ कहें कि परिक्रमा का आधा हिस्सा यूपी में आता है और आधा एमपी में।

कैसे पहुँचे?

कामदगिरि पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाईअड्डा खजुराहो है, जिसकी दूरी मंदिर से लगभग 175 किमी है। खजुराहो से बस अथवा टैक्सी के माध्यम से कामदगिरि पहुँचा जा सकता है। ट्रेन से कामदगिरि पहुँचने के दो माध्यम हैं, पहला है चित्रकूट का कर्वी स्टेशन जिसकी मंदिर से दूरी लगभग 12 किमी है और दूसरा है सतना जंक्शन जो मंदिर से लगभग 77 किमी की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से भी चित्रकूट पहुँचना काफी आसान है। एमपी में सतना जिला (जहाँ चित्रकूट स्थित है) सभी प्रमुख बड़े शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। साथ ही यूपी के हिस्से का चित्रकूट भी सड़क मार्ग से प्रयागराज, कानपुर और दूसरे शहरों से सड़क के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.