कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर: देवी के लिए अपशब्दों-गालियों से भरे गीत, मंदिर की छत को पीटा जाता लाठी-डंडों से

केरल : कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर (फोटो : Rain Tree Holidays)

सनातन हिन्दू धर्म में भगवान को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। हिन्दू, सगुण और निर्गुण, दोनों रूपों में भगवान को मानते हैं और उनकी उपासना करते हैं। हमें बचपन से ही ईश्वर की भक्ति और उनका सम्मान करना सिखाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि केरल के त्रिशूर में एक मंदिर है, जहाँ स्थापित इष्टदेवी को अपशब्द कहे जाते हैं। मंदिर की इष्टदेवी कोई और नहीं बल्कि महाकाली का एक स्वरूप भद्रकाली हैं, जो अपने क्रोध के लिए जानी जाती हैं। हालाँकि श्री कुरुम्बा भगवती की खासियत यह है कि देवी भद्रकाली भक्तों के द्वारा कहे गए अपशब्दों से प्रसन्न होती हैं और यह प्रथा मंदिर के सालाना त्यौहार का एक हिस्सा है।

मंदिर का इतिहास

कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध इस मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दारुका नामक दैत्य से केरल क्षेत्र और यहाँ रहने वाले लोगों की रक्षा करने के लिए परशुराम ने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब महादेव के आदेश के अनुसार परशुराम ने इस तीर्थ स्थान का निर्माण कराया और देवी भद्रकाली की पूजा की। इसके बाद देवी ने दारुका दैत्य का नाश किया।

सनातन के महान संत आदि शंकराचार्य ने भी इस स्थान की यात्रा की थी। यहाँ उन्हें एक अत्यंत प्रभावशाली शक्ति का आभास हुआ था, तब उन्होंने यहाँ 5 श्रीचक्र स्थापित किए थे। माना जाता है कि आज भी इन 5 श्रीचक्रों के कारण मंदिर को शक्ति प्राप्त होती है। वर्तमान दृश्य मंदिर के बारे में भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि इस मंदिर को बाद में पश्चिमी चेर वंश के राजा चेरमन पेरुमल द्वारा निर्मित कराया गया।

मंदिर की जानकारी

10 एकड़ भूमि क्षेत्र के मध्य में बने कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर का निर्माण केरल वास्तुशैली में हुआ है। मंदिर परिसर चारों ओर से पीपल और बरगद के वृक्षों से घिरा हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में सप्तमातृकाएँ विराजमान हैं। इन सभी की प्रतिमाएँ उत्तरमुखी हैं। इसके अलावा मंदिर में भगवान गणेश और वीरभद्र भी स्थापित हैं। देवी भद्रकाली की आठ भुजाओं वाली प्रतिमा भी उत्तरमुखी है। इस प्रतिमा का निर्माण कटहल की लकड़ी से हुआ है। देवी की आठ भुजाएँ शस्त्रों और सनातन प्रतीक चिन्हों से सुसज्जित हैं।

मंदिर के त्यौहार

श्री कुरुम्बा भगवती मंदिर अपने त्यौहार के लिए ही जाना जाता है। दरअसल यहाँ मनाया जाने वाला ‘भरणि’ उत्सव कई मायनों में विशेष है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस त्यौहार के दौरान भक्त, देवी भद्रकाली को अपना ही रक्त समर्पित करते हैं। इसके अलावा इस त्यौहार में देवी भद्रकाली के लिए अपशब्दों से भरे गीत गाए जाते हैं। कोडुंगल्लूर भरणि उत्सव हर साल मार्च-अप्रैल (मीनम नाम के मलयालम मास) के दौरान मनाया जाता है। इस त्यौहार का पहला दिन ‘कोझिकल्लू मूडल’ के नाम से जाना जाता है। इस दौरान ‘वेलिचप्पड’ कहे जाने वाले देवी भद्रकाली के विशेष भक्त देवी को अपना रक्त समर्पित करते हैं। इन्हें देवी का प्रतिनिधि भी माना जाता है।

‘अस्वति कवु तीनडल’ त्यौहार का दूसरा दिन है। इस दिन राजशाही परिवार के सदस्य देवी भद्रकाली की पूजा करते हैं। मंदिर के अनोखे उत्सव के दौरान वेलिचप्पड मंदिर के आसपास तलवार हाथ में लेकर दौड़ते हैं और इस दौरान मंदिर की छत को भी लाठी-डंडों से पीटा जाता है। इसके अलावा देवी भद्रकाली के लिए अपशब्दों और गालियों से भरे गीत गाए जाते हैं। कहा जाता है कि इन अपशब्दों को सुनकर देवी भद्रकाली प्रसन्न होती हैं।

कैसे पहुँचें?

त्रिशूर पहुँचने के लिए नजदीकी हवाईअड्डा कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जो यहाँ से लगभग 50 किलोमीटर (किमी) की दूरी पर है। त्रिशूर रेलवे स्टेशन दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। त्रिशूर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 34 किमी है। इसके अलावा केरल के लगभग सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से त्रिशूर पहुँचना आसान है। राष्ट्रीय राजमार्ग 47 त्रिशूर के पास से ही होकर गुजरता है।

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.