बेटा बलात्कारी निकल गया तो श्रीकृष्ण ने घर में घुस किया उसका वध: दिवाली की एक कथा ये भी

नरकासुर विष्णु के वराह अवतार और पृथ्वी का पुत्र था, जिसका वध विष्णु के ही अवतार के हाथों हुआ

हमारी धरती के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जब पता चलता है कि कुल कितना भी अच्छा हो अथवा माँ-बाप कितने ही अच्छे हों, ज़रूरी नहीं है कि पुत्र भी उन्हीं सद्गुणों के साथ पैदा हो। ऋषि के कुल में असुर पैदा हो सकता है, उदाहरण के तौर पर रावण को लीजिए। लेकिन, अगर भगवान किसी बेटे को जन्म दें और वो बलात्कारी एवं पतित निकल जाए तो क्या किया जाएगा? जी हाँ, हमारे इतिहास में ऐसा हुआ है। इसे जानने का इससे अच्छा मौक़ा नहीं हो सकता, क्योंकि ये कथा दिवाली से ही जुड़ी है। भगवान विष्णु के एक अवतार ने जिस बेटे को जन्म दिया, उनके दूसरे अवतार को उसी बेटे का वध करना पड़ा, ऐसा हमारे पुराणों में वर्णित है।

सीधा कहानी पर आते हैं। भौमासुर नामक एक राक्षस था। उसका नाम नरकासुर था। नरक चतुर्दशी नरकासुर वध की याद में ही मनाई जाती है। यह दीपावली पर्व का ही एक हिस्सा है। कहानी कुछ यूँ शुरू होती है कि देवराज इंद्र भौमासुर के अत्याचारों से त्रस्त हो चुके थे और उन्होंने श्रीकृष्ण के पास जाकर इसकी शिकायत की। श्रीकृष्ण को उन्होंने बताया कि भौमासुर बलात्कारी हो गया है और अन्य राजाओं की स्त्रियों का हरण करता है। इंद्र ने यह भी बताया कि वह उनके प्रिय हाथी ‘ऐरावत’ को भी छीनना चाहता है।

विष्णुपुराण, भागवतपुराण और ब्रह्मपुराण में इसका उल्लेख है। भागवत पुराण के 59वें अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा भौमासुर के वध को विस्तृत तरीके से बताया गया है। भौमासुर के पास कई लूटी हुई बहुमूल्य चीजें थीं। उसके पास वरुण का छत्र था। उसने माता अदिति के कुण्डल लूट लिए थे। साथ ही उसने मेरु पर्वत पर स्थित वो जगह भी छीन ली थी, जो देवताओं को प्रिय था। चूँकि, जब भगवान विष्णु वराह के रूप में उत्पन्न हुए थे, तब उनके स्पर्श के कारण वह पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।

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पृथ्वी देवी ने ख़ुद इस बात को स्वीकार किया है और ये प्रकरण भी पुराणों में वर्णित है। भागवत पुराण में राजा परीक्षित को कहानी सुनाते हुए ऋषि शुकदेव ने बताया कि किस तरह श्रीकृष्ण गरुड़ पर सवार होकर और सुदर्शन चक्र लेकर उसकी राजधानी गए। भौमासुर प्राग्ज्योतिषपुर का राजा था। कहते हैं, जहाँ से पृथ्वी के गर्भ में माँ जानकी अर्थात सीता का जन्म हुआ था, वहीं पर भौमासुर का भी जन्म हुआ था (भागवत 10.2.2; 36.63)। इस तरह से भौमासुर और सीता एक ही गर्भ से पैदा होने के कारण भाई-बहन हुए। हालाँकि, बचपन में उसे भी राजा जनक ने ही पाला था, लेकिन बाद में पृथ्वी उसे ले गई और वह राजा बना।

भौमासुर की संगति भी अच्छी नहीं थी। वह बाणासुर और कंस जैसे दुष्टों का मित्र था। इस कारण उसकी भी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी। दरअसल, उसे ऋषि वशिष्ठ ने विष्णु के हाथों मारे जाने का श्राप दिया था। भागवत पुराण में उसके राज्य की घेराबंदी का जो जिक्र है, वो आजकल के लोगों को भी सोचने को मजबूर कर सकता है। उसके राज्य को सबसे पहले तो पहाड़ों से घेराबंदी की गई थी। अर्थात, पहला रक्षा कवच पहाड़ों से तैयार किया गया था। उसके बाद आग और विद्युत् की चहारदीवारी से घेराबंदी की गई थी। उसके बाद वायु, अर्थात गैस को उसके भीतर रखा गया था। सच में ये घेराबंदी काफ़ी दुर्गम थी। इसका जिक्र संस्कृत में कुछ यूँ किया गया है:

"गिरिदुर्गैः शस्त्रदुर्गैर्जलाग्न्यनिलदुर्गमम् 
मुरपाशायुतैर्घोरैर्दृढैः सर्वत आवृतम्"

इसके अलावा वहाँ बहुत सारे यंत्र भी रखे हुए थे। हालाँकि, उन्हें छिन्न-भिन्न करना श्रीकृष्ण जैसे योद्धा के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी और उन्होंने इसके लिए बाणों और चक्र का प्रयोग किया। फिर उनका सामना मुर नामक दैत्य से हुआ। मुर ने गरुड़ पर वार किया लेकिन श्रीकृष्ण ने पाँच मुख वाले उस राक्षस को मार गिराया। उसके बाद उसके सात पुत्रों से श्रीकृष्ण का युद्ध हुआ। मुर राक्षस को मार गिराने के कारण ही उनका नाम मुरारी भी कहा गया। भौमासुर ख़ुद पागल हाथियों के साथ युद्ध करने बाहर निकला, लेकिन उसे भी भगवान श्रीकृष्ण ने मार गिराया। उसके बाद पृथ्वी वहाँ प्रकट हुई और उन्होंने भौमासुर के बेटे के प्राण की रक्षा कर वंश बचाने का निवेदन दिया।

श्रीकृष्ण ने निवेदन स्वीकार करते हुए भौमासुर के पुत्र भगदत्त को प्राणदान दे दिया। जब वह महल के अंदर पहुँचे तो उन्होंने पाया कि नरकासुर ने 16,000 स्त्रियों को बंधक बना रखा था। श्रीकृष्ण को देखते ही उन सबने एकमत से मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया, ऐसा विवरण भागवत पुराण में मिलता है। इसके लिए ये श्लोक देखें:

"तम्प्रविष्टं स्त्रियो वीक्ष्य नरवर्यं विमोहिताः 
मनसा वव्रिरेऽभीष्टं पतिं दैवोपसादितम्"

बताया गया है कि इसके बाद श्रीकृष्ण ने उन सभी स्त्रियों को द्वारका भेज दिया, जहाँ उनके रहने-सहने की पूरी व्यवस्था की गई और उन्हें उचित सम्मान दिया गया। यह भी वर्णन है कि उन स्त्रियों के साथ समय व्यतीत करने के लिए श्रीकृष्ण ने उतने ही रूप धारण किए थे। श्रीकृष्ण अपनी उन पत्नियों के साथ ठीक वैसा ही आचरण करते थे, जैसा एक गृहस्थ पुरुष अपनी पत्नियों के साथ करते थे। वे सभी भी कृष्ण के प्रति उतना ही प्रेम रखती थीं। इसीलिए, यह मिथक कि श्रीकृष्ण ने उन 16,000 स्त्रियों को पहले विवाह का प्रस्ताव किया, वो ग़लत है। दरअसल, उन्होंने पहले ही उन्हें देखते मात्र ही अपने मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया था।

भगवान श्रीकृष्ण के इस प्रकरण से हमें यह सीख मिलती है कि संतान भले ही भगवान की ही क्यों न हो, पूरी जनसंख्या का भार ढोने वाली पृथ्वी की ही क्यों न हो, ज़रूरी नहीं कि वो दुष्ट न निकले। उसी पृथ्वी की संतान माता सीता जहाँ अनंत काल के लिए एक आदर्श महिला की छवि पेश करती हैं, उसी पृथ्वी का पुत्र नरकासुर अथवा भौमासुर आतंक का साम्राज्य कायम करता है और स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करता है। इस पूरे प्रकरण को परीक्षित ने शुकदेवजी के मुँह से सुना। बता दें कि परीक्षित पांडवों के वंशज थे और उनके रहते ही कलियुग का आरम्भ हुआ था। उससे पहले द्वापर युग था, जिसमें महाभारत जैसा बड़ा युद्ध हुआ और श्रीकृष्ण के रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया था।

रेफरेंस : भागवत पुराण (तीसरा अध्याय, श्लोक 3), भागवत पुराण (59वाँ अध्याय, पूरा)

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.