रावण ने तो कुम्भकर्ण की एक न सुनी, राहुल गाँधी को ज़रूर सुननी चाहिए… संसद में कॉन्ग्रेस नेता ने बोला खुला झूठ, पढ़िए रामायण में क्या लिखा है

वाल्मीकि रामायण से वो संवाद, जो राहुल गाँधी को साबित करता है झूठा

हाल ही में संसद में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ, जिसमें राहुल गाँधी ने भी भाषण दिया। जहाँ मोदी सरकार ने विश्वासमत आसानी से जीत लिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 घंटे से भी ज़्यादा लंबा भाषण देते हुए विपक्ष की बखिया उधेड़ दी और उन्हें ट्रॉल भी किया। राहुल गाँधी ने अपने भाषण के दौरान रामायण के पात्रों रावण और कुम्भकर्ण को लेकर कुछ ऐसा कहा, जिसकी सच्चाई स्पष्ट करनी ज़रूरी है क्योंकि इससे लोग भ्रमित हो सकते हैं।

आइए, पहले जानते हैं कि राहुल गाँधी ने क्या कहा, “रावण 2 लोगों की सुनता था – मेघनाद और कुम्भकर्म। ऐसे ही नरेंद्र मोदी 2 लोगों की सुनते हैं – अमित शाह और गौतम अडानी। लंका को हनुमान ने नहीं जलाया था, लंका को रावण के अहंकार ने जलाया था। रावण को राम ने नहीं मारा था, रावण के अहंकार ने रावण को मारा था। आप पूरे देश में केरोसिन फेंक रहे हो। आपने मणिपुर में केरोसिन फेंकी और फिर चिंगारी लगा दी। अब फिर हरियाणा में कर रहे हो। आप पूरे देश में भारत माता की हत्या कर रहे हो।”

इस दौरान रावण को उसके अहंकार द्वारा मारने या लंका को रावण के अहंकार द्वारा जलाने की बातें बहस का मुद्दा हो सकती हैं कि इन्हें किन अर्थों में कहा गया है और इसकी क्या व्याख्या है, लेकिन रावण सिर्फ मेघनाद और कुम्भकर्ण की सुनता था – ये शायद ही पचे। आइए, यहाँ हम वाल्मीकि रामायण से समझते हैं कि कैसे राहुल गाँधी जो कह रहे हैं उसका एकदम उलटा हुआ था। अर्थात, रावण ने कुम्भकर्ण की सुनी ही नहीं।

कुम्भकर्ण-रावण संवाद: दशानन ने अपने भाई की एक न सुनी

रामायण की कहानी किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है और न ही पात्रों का परिचय कराने की। ये तो सभी को पता ही है कि विशाल शरीर वाला कुम्भकर्ण आधे साल सोता ही रहता था और उसे जगाने के लिए बड़े जतन करने पड़ते थे। भगवान श्रीराम से युद्ध में कमजोर पड़ने के बाद रावण ने अपनी सेना के माध्यम से उसे जगाया। कुम्भकर्ण जब रावण के महल में पहुँचे तो वो अपने पुष्पक विमान पर चिंतित बैठा हुआ था। उसने पूछा कि आखिर ऐसी क्या विपत्ति आ गई है कि उसे जगाया गया है?

फिर रावण ने उसे बताया कि वानर-ऋक्ष सेना समुद्र पर पुल बाँध कर आ पहुँची है और कई राक्षस मारे गए हैं। रावण ने जब अपना दुखड़ा रो दिया तो कुम्भकर्ण जोर से हँस पड़ा। उसने कहा कि हम सबने तुम्हें समझाया था लेकिन तुमने अपना हित चाहने वालों की बातों को नज़रअंदाज़ कर के इन दुष्परिणामों को न्योता दिया है। उसने कहा कि जैसे पापियों को नरक मिलता है, वैसे ही तुम्हारे पापों को सज़ा तुम्हारे पास बड़ी जल्दी ही आ पहुँची है। वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 63वें सर्ग में आपको रावण एवं कुम्भकर्ण का ये संवाद मिल जाएगा। उदाहरण के लिए, आप इस सर्ग का चौथा, पाँचवाँ और छठा श्लोक देखिए:

प्रथमम् वै महाराज कृत्यमेतदचिन्तितम्।
केवलम् वीर्यदर्पेणनानुबन्धो विचिन्तितः।।
यः पश्चात्पूर्वकार्याणि कुर्यादैश्वर्यमास्थितः।
पूर्वं चोत्तरकार्याणि न स वेद नयानयौ।।
देशकालविहीनानि कर्माणि विपरीतवत्।
क्रियमाणानि दुष्यन्ति हवीम्ष्यप्रयतेष्विव।।

इसका भावार्थ है, “महाराज, केवल बल के घमंड में आकर तुमने पहले इस पापकर्म की परवाह नहीं की। इसके परिणाम के संबंध में कुछ भी सोच-विचार नहीं किया। जो ऐश्वर्य के अभिमान में आकर पहले करने योग्य कार्यों को पीछे करता है और पीछे करने योग्य कार्यों को पहले कर डालता है, वो नीति-अनीति को नहीं जानता है। उचित देश-काल न होने पर जो कार्य विपरीत स्थिति में किए जाते हैं, वो संस्कारहीन अग्नियों में होम किए गए हविष्य की भाँति केवल दुःख का ही कारण बनते हैं।”

सोचिए, अपने बड़े भाई को समझाने के लिए कुम्भकर्ण ने कितने जतन किए, अगर वो कुम्भकर्ण की सुन लेता तो क्या उसका विनाश होता? इतना ही नहीं, आगे भी कुम्भकर्ण उसे समझाते हुए कहता है कि सचिवों की सलाह लेकर ही राजा को आगे बढ़ना चाहिए। अपनी बुद्धि से सुहृदों की पहचान कर उनकी बात सुनने वाला राजा ही इसका विवेक कर पाता है कि क्या करना है और क्या नहीं – ये कुम्भकर्ण ने उसे समझाया। बता दें कि विभीषण के समझाने पर रावण ने उसे अपमानित किया था और लात मार कर भगा दिया था।

कुम्भकर्ण आगे रावण को समझाते हुए कहता है कि धर्म-अर्थ, अर्थ-धर्म और अर्थ-काम जैसे द्वंद्वों का नीतिज्ञ पुरुष को उपयुक्त समय में ही सेवन करना चाहिए। उसने समझाया कि इन तीनों में धर्म ही श्रेष्ठ है, इसीलिए अर्थ और काम की उपेक्षा करनी भी पड़े धर्म के लिए तो करना चाहिए। उसने कह दिया कि अगर ये समझ नहीं है तो शास्त्रों का अध्ययन व्यर्थ गया। यहाँ ये बताना आवश्यक है कि शास्त्रों के हिसाब से सुबह धर्म का, दोपहर में अर्थ और रात में काम के सेवन का विधान बनाया गया है। हमेशा काम का सेवन करने वाला अधम माना गया है।

रावण ने अपने चतुर मंत्रियों की भी एक न सुनी, उस पर भी कुम्भकर्ण ने उसे लताड़ा। उसने बार-बार सलाह दिया कि अपने मंत्रियों की बात सुननी चाहिए और परिणाम विचार कर कार्य करना चाहिए। साथ ही उसने बताया है कि किन मंत्रियों की बात नहीं सुननी चाहिए – जो पशु की तरह तरह मंत्रिमंडल में सम्मिलित कर लिए गए हों, शास्त्र की बातें न जानते हों, धृष्टतावश बातें बनाते हों, प्रचुर संपत्ति चाहते हों और अर्थशास्त्र का ज्ञान जिन्हें नहीं हो।

कुम्भकर्ण ने रावण को यहाँ तक समझाया है कि दुश्मन को कमजोर समझ कर अपनी रक्षा का प्रबंधन न करने वाला राजा भी पद से हटा दिया जाता है। उसने स्पष्ट कह दिया कि मंदोदरी (रावण की पत्नी) और विभीषण ने उसके हित की बात कही थी। इस पर रावण ने पिछली बातें बिसार कर भावनात्मक बातें की और संकट में पड़े की सहायता वाली बात कही। तब जाकर कुम्भकर्ण ने युद्ध में जाने का निर्णय लिया और एक भाई होने के नाते आश्वासन दिया कि शत्रु उसके मरने के बाद ही रावण तक पहुँच पाएँगे।

रावण ने कुम्भकर्ण की बात नहीं मानी, गलत हैं राहुल गाँधी

तो इससे साफ़ है कि रावण ने कुम्भकर्ण की बात नहीं मानी। जैसा कि इस संवाद से परिलक्षित होता है, पहले भी उसने अपने छोटे भाई की सलाह को नहीं माना था। बार-बार समझाए जाने के बाद वो इमोशनल अत्याचार पर उतर आया और रिश्तों की दुहाई देने लगा। कुम्भकर्ण को भी कहना पड़ा कि वो स्नेहवश ये बातें कह रहा है, जो उसके लिए ही है। कुम्भकर्ण युद्ध में गया और लड़ते हुए मारा गया। रावण की जिद के कारण उसकी भी जान गई, अंत में रावण भी मारा गया।

अब राहुल गाँधी ने कौन सी रामायण पढ़ी है, ये तो समझ से पड़े है। एक तो कुम्भककर्ण ज़्यादातर सोता ही रहता था, ऊपर से रावण ने उसकी सलाह नहीं मानी। फिर, ये बयान किस तरह ठीक हुआ कि रावण हमेशा कुम्भकर्ण की बातें सुनता था? राहुल गाँधी रामायण-महाभारत को पढ़े बिना न सिर्फ इनका अर्थ बदल देना चाहते हैं, बल्कि ऐसे बयानों से युवाओं के मन में भी तरह-तरह की भ्रांतियाँ बैठेंगी और वो सही कथा से दूर होंगे।

अगर राहुल गाँधी ने तुलसीदास की रामचरितमानस भी पढ़ी होती तो उन्हें पता होता कि रावण ने कुम्भकर्ण से कहा – “अजहूँ तात त्यागि अभिमाना। भजहु राम होइहि कल्याना॥” अर्थात – अभी भी अभिमान का त्याग कर के श्रीराम का भजन करो, कल्याण होगा। लेकिन, राहुल गाँधी कुछ ऐसा कह दिया जो न तो वाल्मीकि रामायण में है और न ही तुलसीदास की रामचरितमानस में है। इस प्रसंग से साफ़ है कि राहुल गाँधी की रीलॉन्चिंग फिर फेल हुई।

रावण ने भले ही कुम्भकर्ण की नहीं सुनी, लेकिन राहुल गाँधी को ज़रूर सुननी चाहिए। राहुल गाँधी के आसपास ज़रूर ऐसे लोगों का जमावड़ा है, जो चाटुकारिता के कारण उन्हें सच्चाई नहीं बताते, धन के लालच में रहते हैं, जिन्हें चीजों का ज्ञान नहीं है और गलत सलाह देते हैं। राहुल गाँधी को इनसे दूर रहना चाहिए, क्योंकि कुम्भकर्ण यही बता गया है। रावण से भले ही न सुनी, राहुल गाँधी ज़रूर सुनें कुम्भकर्ण की और अपने आसपास से ऐसे लोगों को हटाएँ।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.