‘राम का मुकाबला करने के लिए शिव’: हिन्दुओं को बाँटने के लिए नया हथियार लेकर आई कॉन्ग्रेस, खड़गे को अपने प्रत्याशी का नाम याद नहीं पर प्रोपेगंडा नहीं भूले

शिव और राम के बीच युद्ध की कल्पना करने वाले कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे थोड़ा हिन्दू शास्त्रों का ज्ञान भी ले लें

भगवान राम को लेकर कॉन्ग्रेस की घृणा कोई छिपी हुई नहीं है। आज़ादी के बाद जब तक कॉन्ग्रेस का शासन रहा, अयोध्या मामले का निपटारा नहीं हो पाया। जब राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई, तब कॉन्ग्रेस नेताओं ने इसका न्योता ही ठुकरा दिया। कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अब राम और शिव के बीच कटुता की कल्पना कर रहे हैं। हिन्दू शास्त्रों से अनभिज्ञ ये नेता लगातार अपनी अनर्गल बयानबाजी के कारण कुख्यात हैं।

अपने ही उम्मीदवार का नाम भूले मल्लिकार्जुन खड़गे

असल में मल्लिकार्जुन खड़गे छत्तीसगढ़ का जांजगीर-चांपा में मंगलवार (30 अप्रैल, 2024) को एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। वहाँ से कॉन्ग्रेस पार्टी ने डॉ शिवकुमार डहरिया को प्रत्याशी बनाया है। उनका मुकाबला भाजपा के कमलेश जांगड़े से है। 2019 के लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटें भाजपा ने जीती थीं, जबकि 2 पर कॉन्ग्रेस का कब्ज़ा रहा था। जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र पर तो पिछले 20 वर्षों, यानी 4 चुनावों से भाजपा का ही कब्ज़ा है, जबकि उसने 3 बार उम्मीदवार बदले।

यहाँ तक कि मल्लिकार्जुन खड़गे जनसभा करने तो आ गए, लेकिन उन्हें अपने ही उम्मीदवार का नाम तक नहीं पता था। उन्होंने 2 बार अपने उम्मीदवार से उनका नाम पूछा, तब जाकर वो उनका पूरा नाम ले पाए। खड़गे ने कहा, “इनका भी नाम शिव है, ये बराबर में राम का मुकाबला कर सकते हैं। क्योंकि ये शिव हैं, मेरा नाम भी मल्लिकार्जुन है यानी मैं भी शिव हूँ।” इस दौरान उन्होंने भी ध्यान दिलाया कि आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन नाम से एक ज्योतिर्लिंग भी है।

हालाँकि, इस दौरान मल्लिकार्जुन खड़गे भूल गए कि राम और शिव का मुकाबला कराने की बात कह कर उन्होंने हिन्दू समाज की भावनाओं को ठेस पहुँचाया है। वो हिन्दू समाज, जिसने कभी राम और शिव को अलग-अलग कर के नहीं देखा। तमिलनाडु में स्थित ‘रामेश्वरम’ ज्योतिर्लिंग के भी 2 अर्थ हैं – पहले, राम जिसके ईश्वर हैं और दूसरा, राम के जो ईश्वर हैं। जो राम और शिव में भेद कर के देखते हैं, उन्हें अविवेकी कहा जाता है। ये हिन्दुओं को बाँटने की नई नीति है।

राम और शिव के संबंध: तुलसीदास की नज़र में

जब हम अयोध्या के राजा श्रीराम और कैलाश पर्वत पर विराजने वाले भगवान शिव की बात करते हैं तो हमें रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास को पढ़ना पड़ेगा। उन्होंने बड़े ही अच्छे ढंग से इसे प्रस्तुत किया है। शिव धनुष तोड़ने के बाद ऋषि परशुराम क्रोधित हो उठे थे और उनका लक्ष्मण से वाद-विवाद हुआ था। अंत में जब उन्होंने श्रीराम को पहचाना तो उन्होंने उनकी प्रशंसा में जो शब्द कहे, वो देखने लायक है। बालकाण्ड के इस प्रसंग में परशुराम, भगवान राम के बारे में कहते हैं:

इसका अर्थ है – “मैं एक मुख से आपकी क्या प्रशंसा करूँ? हे महादेव के मनरूपी मानसरोवर के हंस! आपकी जय हो।” जिन राम को खुद परशुराम ने महादेव के मन रूपी मनसरोवस का हंस कहा है, आज मल्लिकार्जुन खड़गे उन्हें राम और महादेव को आपस में लड़ाने की बातें कर रहे हैं? ये कितना हास्यास्पद है। ये दिखाता है कि इन्हें न तो हिन्दू धर्म की कदर है, न हिन्दू धर्मावलम्बियों की। इसी तरह यहाँ एक अन्य प्रसंग का जिक्र करना भी आवश्यक है।

ये प्रसंग है सेतु रचना के दौरान का। भगवान श्रीराम उससे पहले वहाँ न सिर्फ भगवान शिव के लिंग की स्थापना करते हैं, बल्कि उनका पूजन भी संपन्न करते हैं। इस दौरान वो कहते हैं – “सिव समान प्रिय मोहि न दूजा“, अर्थात उन्हें भगवान शिव से अधिक प्रिय कोई नहीं है। भगवान राम के परम भक्त हनुमान जी भी शिव के ही अंश थे। राम स्पष्ट कहते हैं कि उनके और शिव में किसी एक से घृणा और किसी एक में श्रद्धा हो तो वो व्यक्ति नरक में जाता है। लंकाकाण्ड की ये चौपाई देखिए:

इसका अर्थ है – “जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकर से विमुख होकर (विरोध करके) जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है।” ये खुद भगवान राम के शब्द हैं। अब आप समझ जाइए, मल्लिकार्जुन खड़गे क्या हैं। वैसे कॉन्ग्रेस और इससे जुड़े लोग तो तुलसीदास को भी गाली देते हैं। राजद के चंद्रशेखर यादव और सपा में रहे स्वामी प्रसाद मौर्य से बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है इसका।

हो सकता है कि तुलसीदास का लिखा ऐसे लोगों को विश्वसनीय न लगे। उनके लिए महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण’ से भी प्रसंग उठाया जा सकता है। युद्धकाण्ड में एक प्रसंग है जब मृत्यु के पश्चात दशरथ दिव्य रूप में अपने बेटे राम से मिलने आते हैं। इसकी सूचना राम को कोई और नहीं बल्कि स्वयं महादेव ही देते हैं। उन्होंने रावण वध के लिए राम की प्रशंसा की है, जबकि राम भक्त था शिव का। राम की प्रशंसा करते हुए शिव कहते हैं:

इसका अर्थ है – “शत्रुओंको संताप देने वाले, विशाल वक्ष स्थल से सुशोभित, महाबाहु कमलनयन! आप धर्मात्माओं में श्रेष्ठ हैं। आपने रावण वध रूप कार्य सम्पन्न कर दिया—यह बड़े सौभाग्य की बात है।” ये स्वयं महादेव के शब्द हैं। इसके बाद वो कहते हैं कि रावण का आतंक सारे लोकों के लिए एक बढ़े हुए अंधकार के समान था, जिसे आपने युद्ध में मिटा दिया। इस दौरान वो उन्हें अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह भी देते हैं और अयोध्या में जाकर राज्याभिषेक करने को भी कहते हैं।

सनातन विरोधी है I.N.D.I. गठबंधन

इस दौरान हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर I.N.D.I. गठबंधन का कोई भी नेता हिन्दू धर्म की बात करता है तो इसके पीछे उसकी कोई न कोई साजिश रहती है। कभी ये दलितों को हिन्दुओं से अलग बताते हैं, कभी ये कहते हैं कि लोग मंदिरों में लड़कियाँ छेड़ने के लिए जाते हैं। और तो और, DMK नेता उदयनिधि स्टालिन तो सनातन धर्म को डेंगू-मलेरिया बता कर इसे खत्म करने की बात तक कर देते हैं। चुनाव आते ही ये खुद को हिन्दू हितैषी बताने लगते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी चुनावी रैलियों में सनातन विरोधी I.N.D.I. गठबंधन पर इन्हीं कारणों से लगातार हमला बोल रहे हैं। उनकी सरकार ने काशी और उज्जैन में कॉरिडोर बनवाया है, कामाख्या कॉरिडोर बन रहा है। तीर्थस्थलों का विकास हो रहा है, अयोध्या धार्मिक पर्यटन का हब बना है। इससे विकास भी हो रहा है। ‘विकास भी, विरासत भी’ नारे के उलट विपक्षी दल केवल अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, तभी ये राम और शिव को आपस में लड़ते हुए दिखाना चाहते हैं।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.