फराह खान नहीं चाहती थी कि ‘मैं हूँ ना’ फिल्म का विलेन मुस्लिम हो

निर्देशक फराह ख़ान (बाएँ) ने सुनिश्चित किया कि 'मैं हूँ ना' में सुनील शेट्टी (दाएँ) का किरदार मुस्लिम न हो

बॉलीवुड में हिन्दुओं को बदनाम करने का खेल दशकों से चल रहा है। जहाँ एक तरफ पंडितों को चुगली करने वाला दिखाया जाता है वहीं दूसरी तरफ मौलवियों को एक सीधा-सादा ईमानदार इंसान के तौर पर चित्रित किया जाता है। ‘ओम शांति ओम’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ जैसी फ़िल्मों का निर्देशन कर चुकीं फराह ख़ान ने 2004 में आई अपनी फ़िल्म ‘मैं हूँ ना’ को लेकर बड़ा खुलासा किया है। इस फ़िल्म में शाहरुख़ ख़ान और सुष्मिता सेन ने लीड रोल निभाया था, वहीं सुनील शेट्टी विलेन के किरादर में नज़र आए थे। जाएद ख़ान, नसीरुद्दीन शाह और अमृता राव इस फ़िल्म में सहायक किरदारों में नज़र आए थे।

फराह ख़ान ने ‘ऑडिबल सुनो’ के पॉडकास्ट ‘पिक्चर के पीछे’ में कहा कि उन्होंने ये सुनिश्चित किया था कि ‘मैं हूँ ना’ का मुख्य विलेन वाला किरदार मुस्लिम न हो। फराह नहीं चाहती थीं कि इस फ़िल्म का विलेन मुस्लिम हो। इसमें मुख्य विलेन के सहायक विलेन का सरनेम ख़ान होता है, जिसे अंत में पता चलता है कि उसे बहकाया जा रहा था। फिर वो देश के प्रति अपने प्यार को प्रदर्शित करता है और आतंकवाद को अलविदा कह देता है। इस फ़िल्म में सुनील शेट्टी के किरदार का नाम ‘राघवन’ था। फ़िल्म में दिखाया गया था कि ‘मुट्ठी भर लोग’ भारत-पाकिस्तान के रिश्ते को ख़राब करना चाहते हैं, जिनसे शाहरुख़ ख़ान का किरदार निपटता है।

इसमें ज़ाएद ख़ान की भूमिका के लिए ऋतिक रोशन को एप्रोच किया गया था, लेकिन उन्होंने सहायक किरदार निभाने से इनकार कर दिया था। फराह ख़ान ने बताया कि वो इस फ़िल्म का दूसरा भाग भी बनाना चाहती हैं लेकिन उनके पास लंबे समय से कोई कहानी ही नहीं आई है।

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कुल मिलकर देखें तो फराह ख़ान ने कुछ नया नहीं कहा है। ईसाइयों और मुस्लिमों को लेकर तो बॉलीवुड ख़ासा संजीदा रहता है, लेकिन जहाँ बात हिन्दुओं की आती है तो उनकी भावनाओं का सम्मान नहीं किया जाता। जैसे, हाल ही में फराह ख़ान, रवीना टंडन और भारती सिंह ने ईसाइयों की पवित्र पुस्तक ‘बाइबिल’ के एक शब्द को लेकर कॉमेडी किया था। इसके बाद देश भर में ईसाइयों ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया था। सोशल मीडिया पर माफ़ी माँगने से भी जब काम नहीं चला तब तीनों हस्तियों ने रोमन कैथोलिक चर्च के भारतीय कार्डिनल ओसवाल्ड ग्रेसियस से मिल कर लिखित में माफ़ीनामा सौंपा था। क्यों?

क्योंकि विवाद ईसाई समुदाय से जुड़ा था। लेकिन जैन मुनि तरुण सागर पर विवादित टिप्पणी करने वाला संगीतकार तब उनकी चौखट पर पहुॅंचा जब उसे पुलिसिया कार्रवाई का डर सताने लगा। लेकिन, जब मामला ईसाई या मुस्लिम धर्म से जुड़ा रहता है तो इन्हें माफी मॉंगने में सेकेंड भर देरी नहीं लगती। विवाद मुस्लिम अथवा ईसाई समुदाय से जुड़ा हो अथवा उनके विरोध का डर हो तो एक भी बॉलीवुड सितारा रिस्क नहीं लेना चाहता। वहीं जब बात बहुसंख्यक समुदाय की हो, तब लाख प्रदर्शनों के बावजूद वो माफ़ी नहीं माँगते और दिखाते हैं कि ‘देखो, हम उपद्रवियों के सामने नहीं झुक रहे।’ वो ऐसा क्यों करते हैं? सोचिए!

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया