Laxmii: तर्क-हॉरर तलाशना बहिष्कार का कारण तलाशने से कहीं अधिक मुश्किल, सीक्वल की संभावना है एकमात्र डरावनी बात

लक्ष्मी फिल्म में अक्षय कुमार आसिफ का किरदार निभा रहे हैं, जिसके भीतर एक किन्नर की आत्मा समा जाती है

कोई फिल्म अपने आप ही इतनी ज्यादा वाहियात हो कि उसके बॉयकॉट की जरूरत ही ना पड़े। उसे दर्शकों को देखने के बाद फैसला लेने दिया जाय कि भविष्य में अमुक कलाकार के फिल्म चयन की सजा आपको अपनी जेब और अपने बहमूल्य (तकरीबन) ढाई घंटों के रूप में आखिर क्यों नहीं देनी चाहिए! अक्षय कुमार अभिनीत Laxmii (लक्ष्मी) फिल्म भी ऐसी ही किसी मनोदशा का सबसे बेहतरीन उदाहरण कही जा सकती है।

Laxmii फिल्म में तर्क और हॉरर तलाशना इसके बहिष्कार का कारण तलाशने से कहीं ज्यादा परेशान कर देने वाला काम था। मैं निजी तौर पर अब उन लोगों का विरोध करना चाहता हूँ जिन्होंने कहा कि इस फिल्म का बॉयकॉट इसकी पटकथा के कारण किया जाना चाहिए।

जिस फिल्म में कोई कथा ही न हो उसकी पटकथा का बहिष्कार करना मानवीय क्षमताओं को चुनौती देने वाली बात है। त्वरित प्रतिक्रिया और संवाद के इस दौर में सिर्फ विवाद के दम पर कोई फिल्म बना देने का फैसला करना वास्तव में एक चुनौती भरा और साहसिक कदम ठहराया जा सकता है। किन्नरों को लेकर समाज के नजरिए को लेकर ये फिल्म एक अच्छा संदेश जरूर देती है।

Laxmii की ‘कहानी’

अक्षय कुमार द्वारा प्रोड्यूस्ड फिल्म ‘लक्ष्मी’ फॉक्सस्टार स्टूडियो, तुषार कपूर और केप ऑफ गुड फिल्म्स बैनर तले बनी है। फिल्म में अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी के अलावा शरद केलकर, अश्विनी कल्सेकर, मनू ऋषि और आयशा रजा भी हैं।

अक्षय कुमार आसिफ़ नाम के एक व्यक्ति का किरदार निभा रहे हैं, जिसका विवाह रश्मि नाम की एक हिन्दू युवती से हुआ है। आसिफ़ इस फिल्म में कहता है कि उसका काम लोगों के मन से भूत-प्रेत का वहम निकालने का है। इस क्रम में, फिल्म की शुरूआती पन्द्रह मिनट में ही आसिफ़ एक हिन्दू ‘ढोंगी बाबा’ के ढोंग का भी पर्दाफाश कर अपनी बात को साबित करता है।

अक्षय की पत्नी यानी, रश्मि के किरदार में कियारा आडवाणी हैं। रश्मि के परिवार को ‘आसिफ़’ में बहुत रूचि नहीं है। आसिफ हर बात पर बोलता नजर आता है, ‘माँ कसम चूड़ियाँ पहन लूँगा’। और फिर जब उसके अंदर एक किन्नर की आत्मा प्रवेश करती है तो आसिफ को चूड़ियाँ पहननी ही पड़ती हैं।

कहानी के नाम पर जबरन ठूँसे गए ‘पोटेंशियल विवादित’ दृश्य

‘आत्मा’ और ‘हॉरर’ के नाम पर फिल्म में कई ऐसे घटनाक्रम बनाए गए हैं, जो फिल्म से ज्यादा एक सांस्कृतिक और सामाजिक विवाद पर चर्चा जैसे दृश्य प्रतीत होते हैं। यानी, फिल्म में दृश्य अपनी कहानी नहीं कहते बल्कि कहीं पर बैठकर उन विषयों पर ज्ञान देते लोग नजर आते हैं।

ऐसे ही एक दृश्य में अक्षय कुमार यानी, आसिफ अपनी पत्नी रश्मि से ‘प्रगतिशील चर्चा’ करते हुए नजर आ रहे हैं। आसिफ अपनी पत्नी रश्मि से कहता है, “ये अभी तक हिन्दू-मुस्लिम में अटके हुए हैं।”

यह दृश्य हाल ही में चर्चा में आए ‘लव-जिहाद’ जैसे विषय के नाम पर पब्लिसिटी उठाने के लिए बिना अधिक मेहनत के ही जबरन ठूँसा हुआ प्रतीत होता है। इसके अलावा, आसिफ एक हिन्दू बाबा को ढोंगी साबित कर देता है जबकि एक मुस्लिम झाड़-फूँक वाला इंसान आसिफ के भीतर बैठी आत्मा को चुटकियों में ठिकाने लगा देता है।

मंदिर के पुजारी गुंडों की सहायता करते हैं जबकि ‘पीर बाबा’ आसिफ और उसके परिवार की मदद करता है। एक हिन्दू परिवार में जन्मी ‘लक्ष्मी’, जो कि किन्नर है, अपमानित कर घर से निकाल दी जाती है। जबकि एक ‘अब्दुल’ लक्ष्मी को अपने घर में जगह देकर उसे ‘महान’ बनाने का सपना दिखाकर उसको पालता है।

इस पूरे कथानक के बीच ना ही आसिफ़ के मुस्लिम और रश्मि के हिन्दू होने की जरूरत को लेकर कोई तर्क है, ना ही एक किन्नर के हिन्दू परिवार में पैदा होकर एक अब्दुल के उसे अपनाने के बीच कोई सम्बन्ध बैठता नजर आता है। हाँ, फिल्म के आखिर में भगवान शिव को लेकर फिल्माए गए एक गाने से तमाम अजेंडे की क्षतिपूर्ति करने की कोशिश अवश्य की गई है।

जहाँ तक हॉरर मूवी के नाम पर ‘डर’ पैदा करने की बात है तो लक्ष्मी फिल्म में एकमात्र भयावह बात इसके सिक्वल की सम्भावना है। लक्ष्मी फिल्म के दक्षिण भारतीय फिल्म को उठाकर ‘कॉपी-पेस्ट’ कर एक विवादित रंग में ढालने का असफल प्रयास है। इस फिल्म को देखकर हास्य पैदा होता है, वह भी दृश्यों के कारण नहीं बल्कि अक्षय कुमार जैसे अभिनेता की ऐसी फिल्मों में अभिनय करने की सहमती के कारण ही!

जहाँ तक फिल्मों में या कला में हिन्दू घृणा और हिन्दू विरोधी अजेंडे की बात है तो उसे हम यदि किनारे रख दें तब भी इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं जिसे लेकर बहुत ज्यादा चर्चा की जा सकती है। हालाँकि, यह इस फिल्म की एकमात्र उपलब्धी अवश्य कही जा सकती है कि बिना किसी ठोस कथा, डायलोग, संगीत और हॉरर के भी हम इस पर चर्चा कर रहे हैं।

मैं समझता हूँ कि लक्ष्मी (Laxmii) फिल्म इतनी घटिया है कि इसका बहिष्कार तक करना जरुरी नहीं है। यह हिन्दू विरोधी फिल्म के नाम पर महज एक ‘वान्ना बी हिन्दू-विरोधी फिल्म’ से अधिक कुछ नहीं। अक्षय कुमार की इस फिल्म को गुमनामी में अपनी मौत स्वयं मर जाना चाहिए।

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