30 और 31 मई को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के शहर कन्याकुमारी के प्रवास पर रहेंगे। देश में चल रहे लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम चरण की ओर है, सिर्फ सातवें चरण का मतदान बाकि है। अपने इतने व्यस्त कार्यक्रम के बीच प्रधानमंत्री मोदी का कन्याकुमारी जाना कोई साधारण घटनाक्रम नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कन्याकुमारी में ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ में स्थित स्वामी विवेकानंद की मूर्ति ओर ‘ध्यान मंडपम’ में ध्यान ओर साधना करने वाले हैं। इस स्मारक के साथ स्वामी विवेकानंद का नाम जुड़ा हुआ है क्योंकि उन्होंने भी यहाँ ध्यान ओर साधना की थी।
अपने सम्पूर्ण भारत के प्रवास के बाद जब स्वामी विवेकानंद दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी पहुँचे तो उन्होंने माता कन्याकुमारी मंदिर के दर्शन किए और फिर समुद्र के बीच में स्थित शिला पर तैर कर गए। इस शिला पर 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद ने साधना करने के बाद भारत के पुनरुत्थान के लिए अपना कार्य शुरू किया।
स्वामी विवेकानंद की ध्यानस्थली होने के अतरिक्त इस शिला की दो और विशेषताएँ हैं। पहली यहाँ माता कन्याकुमारी के ‘श्रीपाद’ आज भी विद्यमान हैं। और दूसरी, यह शिला ‘तीन सागरों’ के संगम के बीचोंबीच स्थित है।
दक्षिण भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी में स्थित इस शिला पर बाद में स्वामी विवेकानंद की जन्म शताब्दी पर उनका स्मारक बनाने का विचार आया। 1972 में ‘विवेकानंद केंद्र’ की स्थापना करके इस स्मारक को जीवंत करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक माननीय एकनाथ रानाडे ने किया था।
स्वामी विवेकानंद का संन्यासी जीवन से पूर्व का नाम भी नरेंद्र था और भारत के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र हैं। जगह भी वही है, शिला भी वही है और चिंतन का विषय भी। ध्यान और चिंतन भारतवासियों के लिए जीवन पद्धति का भाग है। लेकिन अधिकतर व्यक्ति अपनी आत्मोन्नति और आत्मविकास के लिए ध्यान और चिंतन करते हैं।
स्वामी विवेकानंद का कन्याकुमारी की शिला पर किया हुआ ध्यान इसलिए इतना प्रसिद्ध और चर्चित हुआ क्योंकि यह ध्यान और चिंतन व्यक्तिगत लाभ और हानि पर न केंद्रित होते हुए राष्ट्र के पुनरुत्थान पर केंद्रित था। उस समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था। राजनीतिक गुलामी के साथ-साथ आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर भी भारत अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था। भारतीय नवसंतति आत्मसम्मान, आत्मगौरव और आत्मविश्वास खो चुकी थी। उस समय स्वामी विवेकानंद ने उनके अंदर अतीत के प्रति गर्व और भविष्य के प्रति विश्वास जागृत किया था। उन्होंने कहा था:
“मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी में है। उनमें से मेरे कार्यकर्ता आएँगे। वे शेरों की तरह पूरी समस्या का समाधान करेंगे।”
आज भारत को स्वाधीन हुए 75 वर्षों से ज्यादा हो गया है। हर क्षेत्र में भारत ने उन्नति की है। चाहे वह एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति के तौर पर हो या फिर अन्य क्षेत्र। कृषि, दूध उत्पादन, उद्योग, वाणिज्य, विज्ञान, अंतरिक्ष मिशन, सेना, खेल – हर क्षेत्र में हमने वैश्विक पटल पर झंडे गाड़े हैं। आज भारत के पास विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा के तौर पर ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ भी है। विश्व के सबसे बड़े रेल और सड़क नेटवर्क वाले देशों की श्रेणी में भी भारत का नाम आता है।
भारत आज एक विकासशील देश है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उसने ‘विकसित भारत’ बनने की हुंकार भरी है। यह मात्र स्वप्न नहीं है बल्कि संकल्प है। इसका एक उदाहरण है विश्व के अनेकों देशों का भारत के प्रति बढ़ता विश्वास, जिसकी एक झलक हमें G20 सम्मेलन में दिखी भी। इतिहास में भारत अकेला ऐसा देश है, जो भले ही विकासशील देशों की श्रेणी में आता है लेकिन उसे ‘वर्ल्ड लीडर’ के तौर पर देखा जा रहा है।
इसलिए प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान और चिंतन व्यक्तिगत ना रहते हुए ‘विकसित भारत’ पर केंद्रित होगा। स्वामी विवेकानंद ने पश्चिम के सामने हुंकार भरी थी कि आने वाली शताब्दी भारत की होगी। उस स्वप्न को अब पूर्ण करना होगा। इसलिए चाहे वह स्वामी विवेकानंद हों या अब प्रधानमंत्री मोदी… चिंतन का विषय व्यक्तिगत नहीं राष्ट्रीय है, जिसका केंद्र बिंदु भारत माता हैं।
स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शहर शिकागो में आयोजित ‘विश्व धर्म महासभा’ में जो भारतीय संस्कृति का परिचय करवाया, उसी क्रम में 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ का प्रस्ताव रख कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे आगे बढ़ाया। इसकी सफलता हमें 11 दिसम्बर 2014 को मिली, जब संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्य देशों द्वारा 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।
विवेकानंद शिला स्मारक: संघर्ष और निर्माण की कहानी
एकनाथ रानडे की पुस्तक ‘कथा विवेकानंद शिला स्मारक की’ हमें स्मारक निर्माण के विभिन्न पहलुओं से अवगत करवाती है। इस स्मारक के निर्माण का विचार स्वामी विवेकानंद की जन्म शताब्दी पर उत्पन्न हुआ, जो 1970 में माननीय एकनाथ रानाडे के प्रयासों से पूर्ण हुआ।
तमिलनाडु के तब के मुख्यमंत्री भक्तवसलम ने उस शिला पर निर्माण करने से स्पष्ट मना कर दिया था। इनके अलावे केंद्रीय सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हुमायूँ कबीर ने ‘शिला पर स्मारक प्राकृतिक सौंदर्य को खराब कर देगा’ कह कर बाधाएँ खड़ी की थीं। अंततः जीत लेकिन एकनाथ रानडे के दृढ़ निश्चय की ही हुई।
अपने कुशल प्रबंधन, धैर्य एवं पवित्रता के बल पर माननीय एकनाथ रानाडे ने इस मुद्दे को राजनीति से दूर रखते हुए विभिन्न स्तरों पर स्मारक के लिए लोक संग्रह किया। रानाडे ने विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों को अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर ‘भारतीयता की विचारधारा’ में पिरो दिया और तीन दिन में 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तब के गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास पहुँच गए। जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों ने स्मारक बनने की इच्छा प्रकट की तो संदेश स्पष्ट था कि पूरा देश स्मारक की आकांक्षा करता है।
समाज को स्मारक से जोड़ने के लिए लगभग 30 लाख लोगों ने 1 रुपया, 2 रुपए और 5 रुपए भेंट स्वरूप दिए। उस समय के लगभग 1% युवा जनसंख्या ने इसमें भाग लिया। रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानंद महाराज ने स्मारक को प्रतिष्ठित किया और इसका औपचारिक उद्घाटन 2 सितंबर, 1970 को भारत के राष्ट्रपति श्री वीवी गिरि ने किया।