दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर: 100 एकड़ में फैला श्रीपुरम और 15000 किग्रा सोने से बना श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर

वेल्लोर का श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर (फोटो साभार : Sripuram.org)

भारत के हिन्दू मंदिर न केवल भक्ति और सनातन की महान परंपराओं का केंद्र होते हैं बल्कि उनकी वास्तुकला, वैभव, विशालता और संरचना भी महान होती है। अब मदुरै के मीनाक्षी मंदिर को ही देख लीजिए, इतने विशाल गोपुरम और मंदिर का भव्य परिसर देख कर आप आश्चर्यचकित रह जाएँगे। ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित है, श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर। वेल्लोर से 7 किमी दूर थिरूमलाई कोडी में स्थित है श्रीपुरम आध्यात्मिक केंद्र। यहीं शुद्ध सोने से बना श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर है। इसे दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। संसार में कोई ऐसा मंदिर नहीं है जिसे बनाने में इतना सोना लगा हो।

श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर (फोटो साभार : Sripuram.org)

मंदिर का निर्माण और संरचना

भारत के दूसरे मंदिरों की तरह इस स्वर्ण मंदिर का कोई प्राचीन इतिहास नहीं है लेकिन इसकी सुंदर संरचना और दिव्यता इसे हिंदुओं का एक पसंदीदा तीर्थ क्षेत्र बनाती है। इस मंदिर का निर्माण वेल्लोर के चैरिटेबल ट्रस्ट श्री नारायणी पीडम द्वारा कराया गया है। इस ट्रस्ट की प्रमुख हैं आध्यात्मिक गुरु श्री शक्ति अम्मा या नारायणी अम्मा।

मंदिर में विराजित स्वर्ण लक्ष्मी (फोटो साभार : Sripuram.org)

वेल्लोर से 7 किमी दूर पहाड़ियों के तलहटी में लगभग 100 एकड़ क्षेत्र में है आध्यात्मिक केंद्र श्रीपुरम। श्रीपुरम परिसर में ही स्थित है श्री नारायणी मंदिर। मंदिर के निर्माण में 15,000 किग्रा सोने का उपयोग हुआ है। मंदिर को बनाने के लिए पहले सोने को सलाई और बहुत ही पतली शीट में बदला गया जिसे तांबे की प्लेट के ऊपर सजाया गया और साथ ही कारीगरों द्वारा बड़ी ही सूक्ष्मता से कारीगरी की गई है। मंदिर की नक्काशी ही इसे अद्भुत बनाती है।

रात्रि के समय स्वर्ण मंदिर की मनमोहक छवि (फोटो साभार : Sripuram.org)

श्रीपुरम में एक तारानुमा पथ है जिसकी लंबाई लगभग 1.8 किमी है और जिस पर चलकर मंदिर पर पहुँचा जा सकता है। इस पूरे मार्ग में तमाम धर्म और शास्त्र की बातें पढ़ने को मिलती हैं। मंदिर परिसर में एक 27 फुट ऊँची दीपमालिका भी है। इसे जलाने पर मंदिर वास्तव में माता लक्ष्मी का निवास स्थान लगने लगता है। सन् 2000 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था और 24 अगस्त को इसे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया था।

मंदिर के चारों ओर बना तारानुमा पथ (फोटो साभार : Sripuram.org)

मंदिर में मुख्य रूप से माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है। दर्शनार्थी मंदिर परिसर के दक्षिण से प्रवेश कर घड़ी की सुई की दिशा में (क्लाक वाईज) घूमते हुए पूर्व दिशा तक आते हैं, जहाँ से मंदिर के अंदर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन करने के बाद फिर पूर्व में आकर दक्षिण से ही बाहर आ जाते हैं। दरअसल मंदिर का एक-एक भाग वैदिक नियमों के अनुसार बनाया गया है। श्रीपुरम में ही एक सामान्य अस्पताल और शोध केंद्र भी है।

देवी लक्ष्मी (फोटो साभार : Sripuram.org)

कैसे पहुँचे?

वेल्लोर का निकटतम हवाईअड्डा तिरुपति में है जो यहाँ से लगभग 120 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा चेन्नई का अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा भी वेल्लोर से लगभग 145 किमी की दूरी पर है। वेल्लोर पुडुच्चेरी से 160 किमी और बेंगलुरु से 200 किमी की दूरी पर स्थित है। वेल्लोर का काटपाडी रेलवे स्टेशन दक्षिण भारत का सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन है। श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर से काटपाडी रेलवे स्टेशन की दूरी 7 किमी ही है। इसके अलावा वेल्लोर सड़क मार्ग से दक्षिण भारत के लगभग हर शहर से जुड़ा हुआ है।     

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.