प्रोपेगेंडा ‘खतरे में मुसलमान’ का, पर भारत में हिंदुओं की हिस्सेदारी 8% घटी: इस्लामी आबादी का शेयर 5 फीसदी बढ़ा, ईसाई भी फले-फूले

भारत में बढ़ी मुस्लिमों की जनसंख्या (प्रतीकात्मक फोटो साभार: डॉन)

भारत में खतरे में मुसलमान नैरेटिव उतना ही पुराना है, जितनी पुरानी तुष्टिकरण की राजनीति है। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनने के बाद इस नैरेटिव को और हवा दी गई है। शायद ही कोई दिन बीतता है जब मुस्लिम पीड़ित का प्रोपेगेंडा न चलाया जाता हो। लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है। भारत की जनसंख्या में मुस्लिमों की हिस्सेदारी बढ़ी है। वहीं हिंदुओं का हिस्सा घटा है।

यह वास्तविकता एक अध्ययन से सामने आई है। इससे जुड़े आँकड़े प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की साइट पर उपलब्ध हैं। इसमें 1950 से लेकर 2015 के बीच भारत में जनसांख्यिकी में आए बदलाव के बारे में जानकारी दी गई है।

ये अध्य्यन समझाता है कि पिछले 65 साल में हिंदू किसी के लिए खतरा नहीं बने, उलटा देश की जनसंख्या बढ़ने के बावजूद उनका प्रतिशत पहले के मुकाबले कम हुआ है। इस रिपोर्ट से वो सारे दावे भी धराशायी होते है जो ये कहते रहे कि हिंदुओं के तादाद में ज्यादा होने से मुस्लिमों पर खतरा हो सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, 1950 से लेकर 2015 के बीच, भारत में बहुसंख्यक आबादी में 7.82% की उलेखनीय गिरावट आई है। पहले हिंदू 84.68 फीसदी थे और अब सिर्फ 78.06 रह गए हैं। जबकि इसी अवधि के दौरान अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी में वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट बताती है कि 1950 में मुस्लिम आबादी का हिस्सा 9.84 प्रतिशत था और 2015 में बढ़कर 14.09 प्रतिशत हो गया।

इसी तरह ईसाई समुदाय भी 2.24% से 2.36% (5.38%) तक पहुँचा है। सिखों की जनसंख्या में हिस्सेदारी भी 1.24% से बढ़कर 1.85% (6.58) हुई है। बौद्ध समुदाय भी 0.05% से 0.81% तक पहुँचा है। वहीं पारसी और जैनों में हिंदुओं की तरह आँकड़े में गिरते देखे गए हैं। जैनों की पहले जो संख्या 0.45% थी वो अब 0.36 हो गई है और पारसियों की 0.03% से गिरकर 0.004 तक आ गई।

रिपोर्ट में प्रकाशित अंश

अब इन आँकड़ों से यह तो स्पष्ट हो गया है कि भारत में रहने वाले हिंदू किसी के लिए खतरा नहीं रहे। अगर ऐसा होता तो अल्पसंख्यकों की संख्या में ऐसी बढ़त नहीं देखने को मिलती। इसके अलावा इस बात से ये भी साबित होता है कि हिंदू हर धर्म के प्रति सहिष्णु हैं क्योंकि भारत में कभी ऐसी साजिशों का खुलासा नहीं हुआ कि वो दूसरे मजहब के लोगों को लालच देकर अपने धर्म में परिवर्तित करवा रहे हैं… उलटा इस बात के प्रमाण जरूर हैं कि दूसरे मजहब के लोग हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराने के लिए बकायदा प्लान के तहत काम करते हैं औ उन्हें धर्म पथ से भ्रमित करने की कोशिश करते रहे हैं या उन्हें जबरन अपना मजहब कबूल करवाते हैं।

ऐसे प्रयासों का ही एक नतीजा रिपोर्टों के आँकड़ों में हिंदुओं की जनसंख्या में हिस्सेदारी कम होती मिलती है और दूसरे समुदाय की बढ़ी हुई। पिछले दिनों ऐसे कई मामले सामने आए जब खुलेआम इस्लामी कट्टरपंथी ने सरेआम भारत को इस्लामी मुल्क बनाने की मंशा को जगजाहिर किया, सीमाओं पर ‘मुस्लिम पट्टी’ बनाने की साजिश रची गई। भारत को शरिया के हिसाब से चलने की नसीहत दी और हिंदुओं को काफिर कहकर उनके प्रति नफरत भरी। भारत में ये स्थिति अभी के समय में भले ही चिंताजनक नहीं लग रही हो, लेकिन भविष्य में इसके नतीजे हिंदुओं के लिए बुरे हो सकते हैं।

कुछ लोग शायद सोचें समुदाय की हिस्सेदारी 7-8 फीसद कम-ज्यादा होने का बवाल नहीं मचाया जाना चाहिए। लेकिन, इस बात को गौर से समझिए कि जिस रिपोर्ट के आधार पर आपको ये पता चलता है कि भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं की संख्या पिछले 65 सालों में कम हुई है और अल्पसंख्यक मुस्लिमों की गिनती बढ़ी है। वही रिपोर्ट के अगर कुछ और हिस्सों को पढ़ें तो देश के पड़ोसी मुल्कों में हुए जनसंख्या बदलाव की जानकारी भी आपको मिलेगी।

आपके देश में हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद लगातार कम हो रहे हैं और दूसरी और अल्पसंख्यकों की संख्या बढ़ रही है। अगर ये सामान्य होता तो ऐसे आँकड़े हर देश में देखने को मिलते। मगर नहीं, आप अगर इस्लामी मुल्कों से तुलना करेंगे तो आपको पता चलेगा कि ये सामान्य बदलाव नहीं है।

बांग्लादेश की बहुसंख्यक आबादी 1950 में 76 फीसद थी, आज भी उतनी की उतनी है। लेकिन हिंदुओं के साथ ऐसा नहीं है। 1950 में उस क्षेत्र में 23% हिंदू थे और अब केवल 8% बचे हैं। इसी प्रकार से पाकिस्तान में 1950 में कुल मुस्लिमों की आबादी 84% थी और अब 93% हो गई है वो भी तब जब पाकिस्तान से 1971 में बांग्लादेश अलग हो गया है। जबकि हिंदुओं की जनसंख्या में हिस्सेदारी पाकिस्तान में 65 साल पहले 13% थी और अब सिर्फ 2% रह गई है। अफगानिस्तान में भी मुस्लिम बहुल हैं और उनमें भी 0.3 का ही लेकिन बढ़त देखने को मिली है। वो 1950 में 99.4 थे और अब 99.7 हो गए हैं।

तो ऐसा नहीं है कि जिस देश में जो समुदाय बहुसंख्यक होता है उनके आँकड़े बढ़ना-घटना सामान्य चीज है। अगर ये सामान्य होता तो भारत में भी इसकी झलक देखने को मिलती ही… या फिर उस नेपाल में जहाँ भारत की तरह हिंदुओं की आबादी घटी है। 1950 में नेपाल में हिंदुओं की संख्या 84% थी जो 2015 में 81% ही रह गई। इसके अलावा सबसे बड़ी बात जिस पर हमें विचार करने की जरूरत है वो ये है कि एक तरफ पड़ोसी मुल्कों और हमारे देश में मुस्लिमों की पॉपुलेशन लगातार बढ़ रही है और दूसरी तरफ भारत और नेपाल में हिंदुओं की तादाद तब भी घटी हुई है जब इस्लामी मुल्कों से सताए जाने के बाद वहाँ के हिंदू भी यहाँ आश्रय लेने यहाँ आ रहे हैं।