सेवा के मूर्ति बता राइस बैग छिपाए, मदर मदर का तमगा दे मिशनरी में बच्चों को बाँधकर रखना छिपायाः जिस टेरेसा को इंदिरा की इमरजेंसी में भी दिखी थी ‘खुशी’, वह ‘संत’ कैसे

मदर का तमगा देकर छिपाया टेरेसा का असली चेहरा (फाइल फोटो/ साभार: The Guardian)

1910 में 26 अगस्त को अल्बेनिया के स्काप्जे में एक लड़की पैदा हुई। नाम रखा गया- गोंझा बोयाजिजू। दुनिया ने जाना ‘मदर टेरेसा’ के नाम से। उसे करुणा और सेवाभाव की मूर्ति के तौर पर वैसे ही प्रचारित किया गया, जैसे संत वेलेंटाइन को प्रेम का मसीहा बताया जाता है।

इसकी आड़ में मदर टेरेसा का ‘चावल के बोरों’ वाला परिचय छिपा लिया गया। यह नहीं बताया गया कि टेरेसा ‘मदर’ नहीं, कलकत्ता की ‘पिशाच’ थी। भोपाल गैस त्रासदी का समर्थन किया था। करोड़ों रुपयों की हेराफेरी की थी। उसकी मिशनरी में बच्चे बाँध कर रखे जाते थे। नन खुद को कोड़े मारती थीं। वह एक ऐसे पादरी की ‘रक्षक’ थी, जिस पर बच्चे के यौन शोषण का आरोप था।

मदर टेरेसा की दिल का दौरा पड़ने के कारण 5 सितंबर 1997 को मौत हो गई थी। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उसकी मौत के बाद यह सिलसिला बंद हो गया। उसकी ‘मिशनरी ऑफ चैरिटी’ पर बच्चों के खरीद-फरोख्त का आरोप है। ‘मदर टेरेसा वेलफेयर ट्रस्ट’ के शेल्टर होम में बच्चियों के यौन शोषण की खबर तो पिछले साल ही सामने आई थी। दिसंबर 2021 में गुजरात में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के बाल गृह पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगा था। आरोप था कि यहाँ पर लड़कियों को गले में क्रॉस बाँध जबरन बाइबल पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें ईसाई धर्म अपनाने का लालच दिया जाता है। हिंदू लड़कियों को मांसाहारी भोजन दिया जाता है। 

‘The Turning: The Sisters Who Left’ नामक पॉडकास्ट में मदर टेरेसा के ऐसे ही डार्क साइड को दिखाया गया है। इसमें एक महिला की कहानी है, जो अपने समाज की मजहबी व्यवस्था से बाहर निकलना चाहती है और मदर टेरेसा की मिशनरी में फँस जाती है।

सबसे ज्यादा अत्याचार तो मिशनरी में ननों के साथ होता था। इस पॉडकास्ट में दिखाया गया है कि ननों को मरीजों और बच्चों को छूने तक की मनाही थी और न ही वो किसी से दोस्ती कर सकती थीं। जिन बच्चों की वो देखभाल करती थीं, उन्हें ही छूने की इजाजत नहीं थी। इन ननों को खुद पर ही कोड़े बरसाने का निर्देश दिया जाता था और एक दशक में 1 बार ही वो अपने परिवार से मिलने घर जा सकती थीं।  ननों को काँटों वाली चेन से खुद लो बाँध कर मात्र एक मग पानी से स्नान करना होता था। ननों की भर्ती के बाद उनके बाल शेव कर के जला डाला जाता था।

टेरेसा पर आम जनता का ध्यान शायद 1969 में आई बीबीसी की एक डाक्यूमेंट्री फिल्म (समथिंग वंडरफुल फॉर गॉड) से शुरू हुआ था। उनका कोलकाता स्थित संस्थान पीड़ितों का इलाज नहीं करता था बल्कि उन्हें बताता था कि उन्हें पापों के लिए ईश्वरीय दंड मिला है, जिसे उन्हें बिना शिकायत झेलना चाहिए। नॉबेल पुरस्कार लेते वक्त टेरेसा ने 1979 में कहा था कि आज के दौर में शांति के लिए सबसे बड़ा ख़तरा गर्भपात है।

‘टेरेसा शोषित और वंचित वर्ग की हितैषी थीं’ – ऐसी तमाम कहानियों के विपरीत तानाशाहों के साथ भी उसके बहुत अच्छे संबंध थे। अपने जीवन के दौरान, उसने अक्सर क्रूर तानाशाहों का समर्थन किया और इस तरह अपने अत्याचार को वैधता का लिबास देने का प्रयास किया। 1971-86 के बीच पुलिस राज्य के रूप में हैती पर शासन करने वाले दुवैलियर के साथ टेरेसा के अच्छे संबंध थे। 1981 में अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने शासन को ‘गरीबों का दोस्त’ बताया, वही शासन जिसके शासकों ने 1986 के विद्रोह के बाद लाखों डॉलर के लिए हैतियों को लूट लिया था।

जेसुइट पादरी डोनल्ड जे मग्वायर मदर टेरेसा का आध्यात्मिक सलाहकार था। उसने 11 साल के एक लड़के का यौन शोषण किया – एक बार नहीं, हजारों बार। उसके खिलाफ यौन संबंधों के बारे में जब रिपोर्ट आई थी, तब मदर टेरेसा ने सभी आरोपों को असत्य बताया था। इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि जब इंदिरा गाँधी सरकार ने इमरजेंसी लगाई थी तब मदर टेरेसा ने कहा था, “लोग इससे खुश हैं। उनके पास ज्यादा रोजगार है और हड़तालें भी कम हो रही हैं।”