चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित हो गया चंद्रयान-3, लैंडिंग की तारीख़ भी जान लीजिए: दुनिया के 3 देश ही कर चुके हैं ये कारनामा

चंद्रयान-3

भारत का महत्वाकांक्षी चंद्रयान-3 अपने अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ गया है। लॉन्चिंग के 22 दिन बाद आज यानी 5 अगस्त 2023 की शाम करीब 7:15 बजे चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। चंद्रयान-3 पृथ्वी से 14 जुलाई 2023 को लॉन्च हुआ था।

चंद्रयान-3 को 1 अगस्त 2023 की रात करीब 12 बजे पृथ्वी की ऑर्बिट से चाँद की ओर भेजा गया था। इससे पहले वह ऐसी अंडाकार कक्षा में घूम रहा था, जिसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 236 किलोमीटर और सबसे ज्यादा दूरी 1 लाख 27 हजार 603 किलोमीटर थी। चंद्रयान-3 चंद्रमा पर 23 अगस्त को लैंड करेगा।

चंद्रमा की ऑर्बिट में भेजने के लिए यान की स्पीड कम की गई, ताकि यह चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण में खुद समायोजित कर सके। स्पीड कम करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने यान के थ्रस्टर को 20-25 मिनट तक फायर किया था। चंद्रमा पर लैंडिंग से पहले चंद्रयान 4 बार अपनी ऑर्बिट बदलेगा। इसरो ने इसकी जानकारी दी।

ISRO ने अपने X पोस्ट में लिखा, “MOX, ISTRAC, यह चंद्रयान-3 है। मैं चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण महसूस कर रहा हूँ। चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हो गया है। अब 6 अगस्त 2023 को रात करीब 11 बजे चंद्रयान की ऑर्बिट को कम किया जाएगा।”

इसरो ने बताया कि पेरिल्यून में रेट्रो-बर्निंग का कमांड मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (MOX), ISTRAC, बेंगलुरु से दिया गया था। पेरिल्यून वह पॉइंट है, जिस पर चंद्रमा की कक्षा में एक यान चंद्रमा के सबसे करीब होता है। रेट्रो-बर्निंग यान के थ्रस्टर को विपरीत दिशा में फायर किया जाता है। इससे उसकी स्पीड कम हो जाती है।

पृथ्वी की ऑर्बिट से चंद्रमा की ओर भेजने की प्रकिया ट्रांसलूनर इंजेक्शन कहलाता है। इसके लिए बेंगलुरु में स्थित इसरो के हेडक्वार्टर से वैज्ञानिकों ने चंद्रयान का इंजन कुछ देर के लिए चालू किया था। इंजन फायरिंग तब की गई जब चंद्रयान पृथ्वी से 236 km की दूरी पर था।

चंद्रयान-3 में लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल हैं। लैंडर और रोवर चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे और 14 दिन तक वहाँ की जानकारी पृथ्वी पर भेजेंगे। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहकर धरती से आने वाले रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा। इस मिशन के जरिए इसरो पता लगाएगा कि चाँद की सतह पर भूकंप कैसे आते हैं। यह चंद्रमा की मिट्टी का भी अध्ययन करेगा।

चंद्रमा के साउथ पोल पर यान भेजने का एक खास उद्देश्य है। इस ध्रुव के कई हिस्सों पर सूर्य की रोशनी नहीं पहुँचती है। इस कारण इसका तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से चला जाता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहाँ बर्फ के रूप में अभी भी पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था।

अगर सब कुछ ठीक रहा तो चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला दुनिया का पहला यान बन जाएगा। चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी स्पेसक्राफ्ट भूमध्यरेखीय क्षेत्र में उतरे हैं। भारत अगर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करा लेता है तो वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया चौथा देश बन जाएगा।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया