हालिया समय में शायद भारत के बाकी सारे सरकारी संस्थानों को मिलाकर उतनी सफलताएँ नहीं हाथ नहीं लगी हैं, जितनी अकेले इसरो ने हासिल की हैं। एक के बाद एक नए मील के पत्थर गाड़ती भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने एक और सफलता हासिल करते हुए भारत की ख़ुफ़िया सैटेलाईट राईसैट-2बीआर1 को उसकी कक्षा में स्थापित किया है।
अंतरिक्ष, विज्ञान और तकनीकी व अपने कार्य में आम लोगों के बीच अभूतपूर्व रुचि और उत्साह को देखते हुए इसरो ने अपने ट्विटर हैंडल के माध्यम से लोगों के इस लॉन्च को लाइव देखने का भी प्रबंध किया हुआ था।
https://twitter.com/isro/status/1204695105535238144?ref_src=twsrc%5Etfwमीडिया की खबरों के अनुसार भारत की सैटेलाइट के अलावा इसरो के लॉन्च व्हीकल ने 9 विदेशी सैटेलाइटों को भी ‘लिफ़्ट’ देते हुए उन्हें उनकी कक्षा तक भेजा है। यह इसरो की सफलताओं की उस शृंखला में एक और मनका है, जिसके तहत इसरो दूसरे देशों (यहाँ तक कि कई बार विकसित देशों) के उपग्रहों को उनके देश के वैज्ञानिकों और स्पेस एजेंसियों से भी सस्ते और प्रभावी रूप से अंतरिक्ष में पहुँचा देता है।
इन 9 उपग्रहों में 6 केवल अमेरिका के हैं, जबकि एक-एक इटली और अपनी अभियांत्रिकी के लिए मशहूर जापान और इज़राइल के भी हैं। गौरतलब है कि अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा अंतरिक्ष अभियानों के क्षेत्र में दुनिया की अग्रणी मानी जाती है। लेकिन हाल के वर्षों में ऐसे अनेक मौके आए हैं, जब अमेरिका ने नासा की बजाय इसरो की सहायता से अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे हैं।
यह लॉन्चिंग आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा रॉकेट पोर्ट के लांचिंग सेंटर से हुई है। RISAT2-BR1 के पहले तक भारत को बादल घिर आने की स्थिति में ज़मीनी तस्वीरों के लिए कनाडाई उपग्रहों से मिली तस्वीरों पर निर्भर रहना पड़ता था क्योंकि युद्धक विमानों का वर्तमान बेड़ा इसमें सक्षम नहीं है। यह स्वीकार्य स्थिति नहीं है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सैन्य संबंधों में कोई स्थाई मित्र या शत्रु नहीं होता। अगर भारत को कल को ऐसे किसी देश से युद्ध करना पड़ जाए जिसके खिलाफ कनाडा सहायता न करना चाहे तो खराब मौसम में भारत के युद्धक विमान अंधे हो जाते।
यह समस्या भारत की इस साल फरवरी में हुई बालाकोट एयर स्ट्राइक के दौरान भी खड़ी हुई थी।
यह लॉन्च इसरो का 50वाँ था। इस खास मौके पर इसरो के अध्यक्ष के शिवन ने एक किताब भी लॉन्च की, जिसमें पूर्वकाल की उपलब्धियों का ज़िक्र है।