‘पीड़ित को सुने बिना SC/ST केस में नहीं दी जा सकती है बेल’: दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द किया निचली अदालत का फैसला

SC/ST एक्ट को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला (फोटो साभार: Architectural Digest)

दिल्ली उच्च न्यायालय ने SC/ST एक्ट को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत पीड़ित को सुने बिना आरोपित को जमानत नहीं दी जा सकती है। हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को नोटिस दिए बिना आरोपित को बेल नहीं दी जा सकती। जस्टिस नवीन चावला ने बुधवार (14 फरवरी, 2024) को एक मामले की सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया।

असल में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार), 354B (सार्वजनिक रूप से किसी महिला को नग्न करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एक शख्स के ऊपर मामला दर्ज किया गया था। साथ ही इसमें SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(w)(i) (किसी दलित/जनजातीय समाज की महिला को गलत तरीके से छूना) और 3(2)(v) (दलित/जनजातीय समाज की महिला का अपमान करना) भी लगाई गई थी। शिकायतकर्ता महिला का कहना था कि उसे नोटिस दिए बिना निचली अदालत ने आदेश पारित कर दिया।

अदालत ने कहा कि जज को पहले उक्त महिला को सुनना चाहिए, उसके बाद जमानत को लेकर कोई फैसला सुनना चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपित की जमानत रद्द करते हुए वापस निचली अदालत में मामले को भेज दिया। हालाँकि, ये भी कहा गया कि आरोपित को अगले 15 दिनों में हिरासत में न लिया जाए, या फिर जब तक स्पेशल जज कोई अगला आदेश नहीं दे देते। पीड़िता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पैस, मिहिर सैमसन, असवारी सोढ़ी और गार्गी सेठी पेश हुईं।

वहीं सरकार की तरफ से इस मामले में एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (APP) शोएब हैदर ने प्रतिनिधित्व किया। वहीं आरोपित की तरफ से अदालत में सीनियर एडवोकेट कर्मण्य सिंह चौधरी, ऋतिक और लविश ने पैरवी की। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट को खत्म कर दिया था, लेकिन भारी विरोध के बाद इसे केंद्र सरकार को वापस लाना पड़ा था। कई बार एससी-एसटी एक्ट के दुरूपयोग की खबरें भी आती रही हैं। कई संगठन इसके खिलाफ अब भी मुखर हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया