रुई में बाँधा शव, तेल डाल जला दिया, निहत्थों के सीने पर दागी गोली : कारसेवक बलिदानियों को याद कर रो पड़ीं साध्वी ऋतंभरा, कहा- राम मंदिर कोई सामान्य मंदिर नहीं

कारसेवकों का बलिदान याद कर रोईं साध्वी ऋतंभरा और पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी (तस्वीर साभार: सुशांत सिन्हा/x / लल्लनटॉप)

अयोध्या में राम मंदिर बनने पर हर जगह उत्साह है। लोग तैयारी में जुटे में हैं कि 22 जनवरी को जब प्रभु श्रीराम अपने धाम लौटेंगे तो घर-घर दीवाली मनेगी। लेकिन क्या आप जानते हैं प्रभु श्रीराम को उनका सही स्थान मिलना या उनका मंदिर बनना इतनी आसान बात नहीं थी। ये संभव हो पाया है सिर्फ कारसेवकों के बलिदान से।

कारसेवकों के साथ आज से 32 साल पहले कितनी वीभत्सता हुई होगी इसका हम लोग अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों में कई बातें प्रकाशित हैं जिन्हें पढ़कर उस समय का अंदाजा लगा सकते हैं लेकिन बर्बरता के बारे में यदि जानना है तो फिर प्रत्यक्षदर्शियों से पूछिए या फिर कारसेवकों के परिवारों से।

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत वायरल है। इसमें दिखाया जा रहा है कि अयोध्या में कारसेवकों को गोलियों से छलनी कर करके सरयू नदी में बहा दिया गया था। बाद में उनका शव बड़ी मशक्कत के बाद निकला। कुछ शव पहचान आ रहे थे और कुछ इतने गल गए थे कि पता तक नहीं लग पा रहा था। वो एक कंकाल हो चुके थे। शेयर होती वीडियो बेहद डरावनी है और मन में सवाल छोड़ती है कि आखिर उन कारसेवकों के साथ हुआ क्या होगा।

राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी साध्वी ऋतंभरा ने हाल ही में इस संबंध में सुशांत सिन्हा के साक्षात्कार में खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि ये मंदिर सामान्य मंदिर नहीं है। 500 साल तक लगातार हिंदुओं ने एक जगह माथा टेका, वहाँ परिक्रमा की, मंदिर के लिए संकल्प लिए। ये भारतीयों के खंडित स्वाभिमान की पुन: स्थापना है।

उनसे जब पूछा गया कि जब कारसेवकों पर गोली चली तो क्या नहीं लगा कि ये तो चरम हो गया। इस पर साध्वी ऋतंभरा कहती हैं कि उनके सीने पर गोली उतारी गई थी। रेत की बोरियाँ भरकर उनके सरयू में डुबोया गया। गुरू भाई को उठाकर ले गए उसमें उन्होंने रुई बाँधी और फिर तेल डालकर उन्हें जला डाला गया, बेटियों के छाती में छल्ले दागे गए थे। साध्वी ऋतंभरा कहती हैं कि उन निहत्थों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। घर के चिराग जब घर को आग लगाते तब बहुत बुरा लगता है।

इसी तरह राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही है वैसे वैसे उन सभी लोगों के बयान प्रासंगित हो गए हैं जिन्होंने उस नरसंहार को करीब से देखा। राम मंदिर आंदोलन को करीब से रिपोर्ट करने वाले महेंद्र त्रिपाठी उन्हीं लोगों में से एक हैं। वो आज भी कारसेवकों की तस्वीर देखते-दिखाते रोने लगते हैं।

लल्लनटॉप से की बातचीत की एक छोटी क्लिप में वो कारसेवकों के साथ हुई बर्बरता की तस्वीरें दिखाकर कहते हैं- “मैंने ये सब खुद फोटो खींची थीं। सरदार परम सिंह भुल्लर को मैंने लिखा है- कारसेवकों का हत्यारा। जब मुझे किसी ने इसके बारे में बताया तो मैंने फोटो के साथ ये लिखकर रखा ताकि लोगों को पता रहे गोली कौन चलवाया।”

महेंद्र कहते हैं, “आज 32 वर्ष बीत गए हैं लेकिन जब-जब मैं ये बातें याद करता हूँ तो मेरे रौंगते खड़े हो जाते हैं। कई दिनों तक मैं सो नहीं पाता था। मुझे लगता था कारसेवकों को मेरे आगे गोली चल रही है। मैं उन्हें बचा रहा हूँ।” इतना कहकर वो फफक पड़ते हैं।

मालूम रहे कि राम मंदिर वाकई कोई सामान्य मंदिर नहीं है। ये एक कई पूरी पीढ़ी का संघर्ष है जिसे आज चरितार्थ होते देखा जा रहा है। कारसेवकों का बलिदान है जिन्हें 32 वर्ष बाद जाकर सम्मान मिला है। उन परिवारों के आँसुओं का हिसाब है जो इस मंदिर के लिए लोगों ने बहाये। ऑपइंडिया उन लोगों के दर्द पर ग्राउंड रिपोर्ट्स भी कर रहा है। आप इस लिंक पर क्लिक कर उसे पढ़ सकते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया