जिस टूथपेस्ट से आप मुँह धोते हैं, वो वेज है या नॉन वेज… इसके लेबल के लिए कंपनियाँ बाध्य नहीं: हाईकोर्ट में CDSCO

साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट (किसी भी तरह का कॉस्मेटिक बनाने वाली कंपनी) जैसे उत्पादों पर वेज या नॉन-वेज का लेबल लगाने के लिए बाध्य नहीं?

सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन- सीडीएससीओ (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO) ने कहा है कि कॉस्मेटिक बनाने वाली कंपनियों को अपने उत्पादों पर वेज या नॉन-वेज का लेवल लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। सीडीएससीओ ने दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि कंपनियाँ इसे स्वेच्छा से लगा सकती हैं।

जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की पीठ के समक्ष CDSCO ने अपनी ऐफिडेविट में कहा कि पिछले साल 13 अप्रैल को इस संबंध में ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (Drugs Technical Advisory Board- DTAB) के साथ बैठक की गई थी, लेकिन इसके लिए वह तैयार नहीं हुआ। DTAB का कहना है कि वेज और नॉन-वेज को लेकर पैकेट पर डॉट लगाने से जटिलताएँ बढ़ेंगी और संबंधित पक्षों पर इसका बोझ बढ़ेगा।

दरअसल, कॉस्मेटिक कंपनियों को अपने उत्पादों पर वेज और नॉन-वेज का लेवल लगाने संबंधी एक एडवाइजरी 10 दिसंबर को जारी की गई थी, जिसमें कहा था कि साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट आदि पर वेज के लिए ग्रीन और नॉन-वेज के लिए रेड डॉट का इस्तेमाल स्वैच्छिक आधार पर करना चाहिए। इसके बाद मामले को लेकर दिल्ली के हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी।

इस एडवाइजरी के खिलाफ गैर-सरकारी संस्था ‘राम गौ रक्षक दल’ ने याचिका दायर कर कॉस्मेटिक प्रोडक्ट पर वेज और नॉन-वेज आइटम के इस्तेमाल के लिए लेबल लगाने की माँग की थी। इसके साथ ही यह माँग की गई थी कि इन उत्पादों की निर्माण-प्रक्रिया में किन-किन चीजों का इस्तेमाल किया गया है, इनके बारे में भी जानकारी दी जाए।

राम गौ रक्षा दल की ओर से वकील रजत अनेजा द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि देश के नागरिकों को ये जाने का अधिकार है कि वे जो भोजन करते हैं, कॉस्मेटिक और इत्र का उपयोग करते हैं या कपड़े पहनते हैं, उनमें किन-किन चीजों का इस्तेमाल किया गया हैं। कॉस्मेटिक कंपनियों को बताना चाहिए कि उनके प्रोडक्ट में किसी जानवर के शरीर के अंगों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं। यह जानना एक नागरिक का मौलिक अधिकार है।

इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने 9 दिसंबर को सभी फूड बिजनेस इकाइयों को फूड आइटम में प्रयोग होने वाली प्रत्येक वस्तु के बारे में जानकारी देना अनिवार्य कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि बिजनेस ऑपरेटर आपकी थाली में कुछ और तो नहीं डाल रहा है, यह प्रत्येक व्यक्ति को यह जानने का अधिकार है कि वह क्या खा रहा है।

कोर्ट ने कहा था कि खाद्य सामग्रियों में जिन-जिन चीजों का प्रयोग हुआ है, उनके बारे में लिखित कोड होना चाहिए और यह भी बताया जाना चाहिए कि उन चीजों का स्रोत क्या है। यानी फूड में इस्तेमाल चीजों को पौधों, लेबोरेटरी या जानवरों से प्राप्त किया गया है या कहीं और से, इसके बारे में बताना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 31 जनवरी की तारीख तय की है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया