नहीं मिल रहा प्याज का भाव, दुःखी किसानों ने PM मोदी से लगाई गुहार: ‘किसान आंदोलन’ वाले कहते थे – मंडी ही बेस्ट, ‘कृषि कानूनों’ से ऐसे मिल सकती थी मदद

महाराष्ट्र में प्याज की लगातार गिरती कीमतों से परेशान किसानों ने मोदी सरकार से लगाई मदद की गुहार (फोटो साभार: ANI)

केंद्र सरकार द्वारा साल 2020 में लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ उत्तर भारत के ​किसानों ने कई म​हीनों तक आंदोलन किया। किसान इसे वापस लेने की माँग पर अड़े रहे। उन्होंने मंडी सिस्टम को किसानों के लिए अच्छा बताया। वहीं, केंद्र सरकार चाहती थी कि मंडी से बिचौलिए हट जाएँ, ताकि किसानों को सीधा फायदा पहुँच सके। लेकिन उनकी वजह से अब म​हाराष्ट्र के किसानों को मंडी के बिचौलिए के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वे मंडी में प्याज के उचित दाम नहीं मिलने से बेहद दुखी हैं और मोदी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, महाराष्ट्र में प्याज की कीमतों में लगातार गिरावट के विरोध में किसानों ने सोमवार (27 फरवरी, 2023) को लासलगाँव और नंदगाँव कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) में प्याज की ब्रिकी रोक दी। करीब डेढ़ घंटे के आंदोलन के बाद नंदगाँव मंडी में नीलामी फिर से शुरू हो गई। लेकिन देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगाँव में अभी तक यह प्रक्रिया फिर से शुरू नहीं हो सकी है। किसानों ने कहा कि उन्हें मंत्री दादा भुसे (District Guardian Minister Dada Bhuse) ने एक सप्ताह के भीतर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के समक्ष अपनी माँगों को उठाने का भरोसा दिलाया है।

दरअसल, लासलगाँव (एपीएमसी) में किसानों ने प्याज की नीलामी प्रक्रिया इसलिए रोक दी है, क्योंकि उन्हें पहले की तरह दाम नहीं मिलने पर काफी नुकसान हो रहा है। सोमवार को जब लासलगाँव मंडी खुली तो प्याज की न्यूनतम कीमतें 200 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुँच गईं। इस दौरान प्याज का अधिकतम मूल्य 800 रुपए प्रति क्विंटल और औसत मूल्य 400 से 450 रुपए क्विंटल रहा। प्याज की इन ताजा कीमतों को लेकर किसानों में काफी रोष है। वे इसका विरोध करते हुए धरना-प्रदर्शन पर बैठ गए हैं।

एक किसान ने समाचार एजेंसी एएनआई ​को बताया, “हमें प्याज उगाने के लिए प्रति एकड़ 50000 रुपए की लागत आती है, जबकि प्याज बेचकर हम केवल 10000 से 20000 रुपए ही कमा पाते हैं। अब ऐसा वक्त आ गया है कि जब हम आत्महत्या पर करने का विचार कर रहे हैं। मोदी सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए।”

इस वक्त महाराष्ट्र के किसान मोदी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, जबकि सरकार उनके हितों को ध्यान में रखते हुए ​ही नए कृषि कानून लाई थी। इसके आने के बाद किसान सीधे तौर पर कंपनियों से डील कर सकते थे। उन्हें किसी मंडी सिस्टम या बिचौलिए के जरिए अपना माल बेचने की जरूरत नहीं थी। लेकिन उस वक्त आंदोलन कर रहे किसानों का कहना था कि सरकार के इस कदम से खेती प्राइवेट बन जाएगी और इससे उन्हें कोई फायदा नहीं होगा।

किसानों ने दावा किया था कि मंडी में जो एजेंट हैं, वो उनके ही लोग हैं। यानी उनके बीच में से निकलकर ही एजेंट बने हैं। उनका उनसे अलग लेवल का संबंध है। अगर किसी किसान को खेती के लिए पैसे चाहिए या फिर परिवार में किसी तरह की इमरजेंसी होने पर मदद चाहिए तो ये आढ़ती ही किसानों की मदद करते हैं। फिर चाहे उधार देना हो या फिर फसल का दाम एडवांस में दे देना हो मंडियों में मौजूद आढ़ती उनकी मदद करते हैं।

गौरतलब है कि किसानों का आंदोलन नहीं रुकने के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को देश को संबोधित करते हुए इसे वापस लेने की घोषणा की। उन्होंने आंदोलनरत किसानों से अपने-अपने घर लौटने का आग्रह किया। साथ ही किसानों के एक वर्ग को इन कानूनों के बारे में नहीं समझा पाने के लिए देश से माफी भी माँगी।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया