भारत के कुछ राज्यों में हिंदुओं को माइनॉरिटी श्रेणी में रखे जाने की माँग पर आखिरकार केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि ये प्रदेश भाषा व संख्या के आधार पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक होने का तमगा दे सकते हैं। उन्हें इसकी स्वतंत्रता है।
केंद्र सरकार ने अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका पर दिया जिसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मणिपुर, और पंजाब में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के तथ्य पर गौर करवाया था और ये भी बताया था कि कैसे माइनॉरिटी होने के बाद भी उन्हें दरकिनार किया जाता है।
राज्य, जहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हैं
केवल ऑँकड़ों की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार, मिजोरम में हिंदू 2.75% हैं, वहीं नागालैंड में 8.75% , मेघालय में 11.53 %, अरुणाचल प्रदेश में 29%, मणिपुर में 31.39% हैं। इसी तरह पंजाब में हिंदुओं की संख्या 38.40%, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में हिंदू 28.44% और लक्षद्वीप में 2.5% हैं। इन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम होने की वजह से इनका उल्लेख विशेष तौर पर याचिका में किया गया है। लेकिन देश में कुछ ऐसे राज्य भी हैं जहाँ की जनसांख्यिकी में तेजी से बदलाव हो रहा है और संभव है कि वहाँ कुछ सालों में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएँ।
अन्य राज्यों में मुस्लिम आबादी की बढ़ोतरी
उदाहरण के लिए बंगाल को लीजिए। कुछ दिन पहले ही ऑर्गेनाइजर मैग्जीन के पत्रकार प्रणय कुमार ने बंगाल के कुछ राज्य जैसे जलपायगुड़ी, सिलीगुड़ी, इस्लामपुर, मालदा टाउन, मुर्शिदाबाद आदि जगहों पर विजिट किया था। जहाँ उन्होंने जनसांख्यिकी में तेजी से हो रहे बदलाव को नोटिस किया। उन्होंने पाया कि रोहिंग्या घुसपैठियों की तादाद पिछले सालों में बहुत बढ़ी है जिससे मुस्लिमों की संख्या में बढ़ोतरी हुई और हिंदुओं को अपनी जगह छोड़ जाना पड़ा। इससे पहले उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता को बढ़ाया था।
नेपाल से सटे क्षेत्रों में हो रहे बदलावों को असामान्य बताते हुए गृह मंत्रालय तक रिपोर्ट गई थी। रिपोर्ट में कुमाऊँ के तीन क्षेत्र- ऊधमसिंह नगर, चम्पावत व पिथौरगढ़ को संवेदनशील श्रेणी में रखा गया था। जबकि पिथौरगढ़ के दो कस्बे धारचूला व जौलजीवी को अतिसंवेदनशील श्रेणी में रखा गया था। इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी कई इलाकों में हो रहे बदलावों पर चिंता जताई गई थी जहाँ अचानक मजहबी संस्थानों के खुलने में इजाफा देखा गया था।
साल 2020 में SC ने खारिज कर दी थी याचिका
बता दें कि पहली बार नहीं है जब कई राज्यों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने की माँग पर गौर करवाया गया हो। इससे पहले साल 2020 के फरवरी माह में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की याचिका दाखिल हुई थी जिसे कोर्ट द्वारा खारिज किया गया था और कहा गया था कि याचिकाकर्ता उन राज्यों के हाई कोर्ट में जाएँ जहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हैं। उस समय भी अश्विनी उपाध्याय ने इस बात याचिका डाली थी। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय आँकड़ों के अनुसार, देश की बहुसंख्यक आबादी कई राज्यों में अल्पसंख्यक है। ऐसे में उन्हें वो सुविधा नहीं मिल पाती जो राज्य अल्पसंख्यकों को देते हैं।